Sunday 21 February 2016

लहराती और लचकती हुई तुम कइन जैसी हो


फ़ोटो : अनिर्बन दत्ता

 ग़ज़ल

वसंत विदा हुआ नहीं है दिखती चईत जैसी हो
लहराती और लचकती हुई तुम कइन जैसी हो

रात रानी महकी हो रात भर जैसे बेला के साथ
घर के दुआर पर फुदकती तुम गौरैया जैसी हो

महुआबारी की बहार में झूमती झामती हुई तुम
ग़रीब बच्चे के गले में महुआ की माला जैसी हो

हरसिंगार की तरह प्यार में निर्झर झरती हुई तुम
मनुहार में भीगी आग लगाती गुलमोहर जैसी हो

तुम्हारा आना मिलना और झटके से लिपट जाना 
मचलती बाहों में गोया नदी में आई बाढ़ जैसी हो

[ 21 फ़रवरी , 2016 ]

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