मदीना में इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों में से एक, पैगंबर की मस्जिद के बाहर एक आत्मघाती बम हमला |
कुछ फेसबुकिया नोट्स
- सभी मुस्लिम दोस्तों से गुज़ारिश है और कि मशवरा भी कि कुरआन और इस्लाम की हिफाज़त और फख्र करने में कोई दिक्कत नहीं है । अच्छी बात है। ज़रुर कीजिए । बाखुशी कीजिए। किसी को कोई गुरेज़ नहीं है । लेकिन यह जो कुरआन और इस्लाम की दुहाई दे कर पूरी दुनिया में खुले आम निर्दोष और मासूम लोगों का कत्ले आम जारी है उस की सिद्धांत और व्यवहार में कड़े शब्दों में मज़म्मत कीजिए। भारत में आप को अपनी शर्म और चेहरा छुपाने के लिए भाजपा और संघ का कंधा है । भारत से बाहर अमरीका का कंधा है । लेकिन क्या पूरी दुनिया ही संघी और अमरीकी है ? अपनी बीमारी को समझिए , इस का इलाज कीजिए । ख़ुद को बदलिए। मुंह में राम , बगल में छुरी बहुत हो गया । इस्लाम को मानने वाले अब एक असभ्य और कबीलाई पहचान में शुमार हो रहे हैं पूरी दुनिया में । इस कुफ्र से बचिए । संघी और अमरीकी साज़िश का आप का कुतर्क अब आप को मुंह चिढ़ा रहा है । बेशर्मी और कुतर्की हठ छोड़ कर इस बात को समझिए और अपने को दुरुस्त कीजिए । अपने समाज को सभ्य बनाईए। मनुष्यता का सम्मान करना सीखिए । अब आप के कुतर्क के दिन हवा हुए । दुनिया अब इस हिंसा से डरने से इंकार कर रही है । आप को सभ्य समाज से बेदखल कर रही है । इस ख़तरे को समझिए दोस्तों । अगर कोई आप और आप के इस्लाम को कंडम कर रहा है तो उस के गुस्से और उस की तकलीफ को समझिए। उस की बात को दिल पर मत लीजिए । अमरीका , फ़्रांस , भारत में हुए कत्ले आम भूल जाईए । लेकिन बांग्लादेश और सऊदी अरब में मदीना की हिंसा ने समय की दीवार पर जो ताज़ा इबारत लिखी है उस को पढ़िए और कुतर्क करने से शर्म कीजिए । मनुष्यता और मनुष्य रहेंगे तभी मज़हब रहेगा और आप भी । आप जानते हैं कि अब दुनिया को रमजान के महीने और जुमे की नमाज़ से डर लगने लगा है । दुनिया को इस डर से बचाना आप सब की ज़िम्मेदारी है । नहीं इस्लाम को तो आप लोग इस तरह तो गाली बना देने के रास्ते पर चल पड़े हैं । इस सफ़र को खत्म करना आप के ही हाथ है । दुनिया को बदसूरत बनाने और अपने को बदबूदार बनाने से बचिए। अगर हमारी देह में कहीं कोई कोढ़ या कैंसर हो गया है तो वह छुपाने से , परदा डाल देने से नहीं ठीक हो सकता । उस की पहचान कर उस का कारगर इलाज करने से ठीक होगा । सो हिंसा का खुल कर विरोध कीजिए , बचाव नहीं । दुनिया और मनुष्यता के साथ चलना सीखिए ।
मदीना में इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों में से एक, पैगंबर की मस्जिद के बाहर एक आत्मघाती बम हमला |
- इस्लाम अब तो हद कर दी है तुम ने । मदीना में पैगंबर मोहम्मद की मस्ज़िद भी नहीं छोड़ी। इफ़्तार के समय धमाका हुआ मदीना में । सऊदी अरब के कतीफ़ शहर में भी मस्जिद के सामने धमाका। सऊदी अरब में अमरीकी दूतावास के सामने भी धमाका । यह रमजान है कि क्या है ? कोई उपयुक्त विशेषण नहीं सूझ रहा । तो क्या भूख आदमी को वहशी बना देती है ? रमजान को कुफ्र का महीना बना दिया है इन आततायियों ने । मनुष्यता से इतनी दुश्मनी ? कम से कम यहां तो लोग कुरआन की आयत याद रखे रहे होंगे ।
कुरआन की आयत
तारिशी
20 लोगों की गला रेत कर निर्मम हत्या
और भारत के सेक्यूलर गैंग की ख़ास ख़ामोशी !
तारिशी
20 लोगों की गला रेत कर निर्मम हत्या
और भारत के सेक्यूलर गैंग की ख़ास ख़ामोशी !
- इन दिनों आतंकवादी घटनाओं या हिंसात्मक ख़बरों के बचाव में बहुत से मुसलमान पुरखों की वतनपरस्ती का गुणगान ले कर बैठ जाते हैं । कई सारे कुतर्क और हठ ले कर बैठ जाते हैं । अपने गरेबान में झांकने से डरते हैं कि बचते हैं कहना कठिन है । सेक्यूलरिज्म की ढाल अलग है , सल्तनत की आंच अलग है । ऐसे लोगों को एक मशवरा है कि पुरखों की वतनपरस्ती ढूढने के बजाय आज के मुसलमानों को कुतर्क , हठ , अराजकता और हिंसा छोड़ कर मनुष्यता सीखने की कोशिश करनी चाहिए । सोचना चाहिए कि सिर्फ़ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में मुसलमान क्यों बदनाम हो कर बदबू कर रहा है ? जहर बन कर क्यों समूची दुनिया को डस रहा है। ढाका की वहशत अभी ताज़ा है । ग्रेट ब्रिटेन इस वहशत की आग में पिघल कर टूट रहा है। सोवियत संघ टूट चुका है । सीरिया , फिलिस्तीन , फ़्रांस , अमरीका , पाकिस्तान , अफगानिस्तान , इरान , इराक हर कहीं खून खराबा आख़िर क्या बताता है । गरज यह कि जन्नत जैसी दुनिया जहन्नुम बनती जा रही है । सो मित्रों , कुतर्क का रुख छोड़ कर ज़रा आराम से सोचिए । सिर्फ़ मुसलमान हो कर नहीं । इस लिए भी कि पुरखों और बुजुर्गों की दुआओं से अज्मतें नहीं मिलतीं , अपने कर्मों से मिलती हैं । मनुष्यता सीखिए , अपना चेहरा साफ कीजिए । इस लिए भी कि यह दुनिया जितनी हमारी है , उतनी ही आप की भी है । कभी ऐसे भी सोच कर देखिए न । ग़लत बात को ग़लत और सही बात को सही कहना सीखिए । धर्म के पिजड़े से बाहर निकलिए। बेहतर दुनिया के लिए । कुतर्क , सेक्यूलरिज्म और मज़हब की आड़ में वहशी और दहशतगर्द लोगों की पैरवी बंद कीजिए । इन लोगों और इन की मानसिकता को कंडम कीजिए । मनुष्यता बड़ी है , हिंदू-मुसलमान नहीं । मनुष्यता बचेगी , मनुष्य बचेगा तभी हिंदू-मुसलमान भी बचेगा । दुनिया को ज़न्नत ही रहने दीजिए , जहन्नुम न बनने दीजिए । लेकिन अब बंद भी कीजिए यह बुजदिली । बिसमिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम !
- यह जो किसिम-किसिम के भंडारे में लोग जा कर भक्ति भाव से खा आते हैं या किसिम-किसिम के रोजा इफ़्तार में जा कर रोजा खोलते हैं उन सभी लोगों को यह बात अच्छी तरह जान लेना चाहिए कि यह भंडारा और रोजा इफ़्तार सर्वदा ही हरामखोर और भ्रष्ट लोगों के पैसे से आयोजित होते हैं । कोई ईमानदार आदमी न तो भंडारा आयोजित कर सकता है , न रोजा इफ़्तार। ईमानदार आदमी तो अपना और अपने परिवार का किसी तरह पेट भर ले यही बहुत है । तो अगर लोग सचमुच धार्मिक हैं , धर्म में आस्था रखते हैं तो इन भंडारे और रोजा इफ्तारों में जा कर लोग अपराध करते हैं , गुनाह करते हैं । अपना धर्म नष्ट करते हैं । बंद करना चाहिए यह गुनाह । हराम है यह ।
- भारत में कम्युनिस्ट और सेक्यूलर दो तरह के होते हैं । एक हिंदू कम्युनिस्ट और सेक्यूलर । दूसरा मुस्लिम कम्युनिस्ट और सेक्यूलर । हिंदू वाला कम्युनिस्ट और सेक्यूलर ग़लती से भी पूजा पाठ , आरती आदि कर ले तो वह भटक जाता है । गालियां और जूता खाने का हकदार हो जाता है । कहा जाता है कि भटक गया , हिंदू हो गया , कम्युनल हो गया आदि-इत्यादि । लेकिन मुस्लिम कम्युनिस्ट और सेक्यूलर रमजान , रोजा , इफ़्तार , नमाज , मोहर्रम , गाय का मांस आदि-इत्यादि डंके की चोट पर कर सकता है । हरामखोर और भ्रष्ट नेताओं की हराम की इफ़्तार खा कर भी रोजा पाक कह सकता है । कोई हर्ज नहीं है । वह कभी नहीं भटकता । उलटे नया-नया सेक्यूलर बना हिंदू भी इबादत कर के रोजा इफ़्तार कर के , करवा के कम्युनिस्ट और सेक्यूलर होने की अपनी डिग्री बढ़ा लेता है । लगे हाथ गाय का मांस खाने की पैरवी भी कर ले तो क्या कहने ! औरतों पर तीन तलाक़ के जुर्म की पैरवी कर के शरियत ख़ातिर , पर्सनल ला ख़ातिर खून बहाने को सर्वदा तैयार रहे तो और बढ़िया ! कोई नुक्ता-ची करे तो उसे संघी घोषित कर देने की , कम्युनल कह देने की समृद्ध परंपरा है ही । करना क्या है ? खैर अपनी-अपनी आस्था है , अपना-अपना चयन है , अपना-अपना भटकाव है । मुझे इस पर कुछ नहीं कहना । भारत एक आज़ाद देश है । सभी को अपनी-अपनी करने की छूट है । जो जैसा चाहे करे , दिन रात करता रहे । हमें क्या । फ़िलहाल तो यहां कुछ फ़ोटो लुक कीजिए और मज़ा लीजिए । और हां , एक बात सर्वदा याद रखिए धर्म एक अफीम है । लेकिन सुविधानुसार। सब के लिए नहीं ।
आदरणीय सर जी...क्या बयाँ किया है आपने, बहुत ही बढ़िया सर...ऐसे जर्नालिस्ट आजकल ढ़ूंढ़ने से भी नहीं मिलते..धन्यवाद आपका ।
ReplyDelete