Friday, 29 April 2016

प्यार का वेंटिलेटर पर अचानक चले जाना अच्छा नहीं लगता


फ़ोटो : अनिल रिसाल सिंह

ग़ज़ल 

मुहब्ब्त में यातना की सांस ले कर जीना अच्छा नहीं लगता
प्यार का वेंटिलेटर पर अचानक चले जाना अच्छा नहीं लगता

उल्फ़त गफलत नखरा ज़िद और नहीं की भी एक हद होती है 
महबूब का बार-बार अपमानित होते रहना अच्छा नहीं लगता

प्यार में जलना जलाना लड़ना झगड़ना मिलना बिछड़ना होता है
लेकिन तुम्हारी उपेक्षा की आंच में जलना हमें अच्छा नहीं लगता 

साथ जीने की तमन्ना टूट जाती है एक अहंकार की चोट से
इतने  गुरुर और अकड़ में रह कर जीना अच्छा नहीं लगता

प्यार का आकाश उड़ान भरने से मिलता कहां है किसी को
पक्षी बन कर बेसबब अकेले उड़ते रहना अच्छा नहीं लगता

अच्छी बहुत लगती मिठाई हमें सर्वदा शुगर भी है तो क्या
लेकिन मिठास कडुवाहट में बदल जाए अच्छा नहीं लगता

बहती नदी हो चांदनी की रात हो ठंडी हवा और तमन्ना भी
माशूका हरदम रूठी रहे बात बेबात तो अच्छा नहीं लगता 

मुहब्ब्त ठहरा हुआ जल नहीं बढ़ती इच्छाओं की धरती है
प्यार में भिखारी बन कर बेसबब घूमना अच्छा नहीं लगता

भीग जाते थे कभी बारिश का नाम सुन कर भी हम लेकिन
बारिश का नाम सुन कर  भीगना अब  अच्छा नहीं लगता
 
पागल होता है हर कोई प्यार के व्यवहार में हर कहीं हरदम
नशे में लेकिन बेसुध हो कर लड़खड़ाना अच्छा नहीं लगता
 
बाग़ में कोयल गाती रहती है चिड़िया खिलखिलाती है बहुत
कड़ी धूप में तड़प कर किसी का बैठ जाना अच्छा नहीं लगता

नगर नगर भटकने से तो अच्छा है किसी जंगल में खो जाना
बच्चा रोता रहे मां हंसती रहे यह मंज़र कभी अच्छा नहीं लगता



[ 29 अप्रैल , 2016 ]

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