Monday, 29 February 2016

लोग तो मिलते ही रहते हैं हरदम ख़ुद से मिले बहुत दिन हुए

फ़ोटो : नूर मुहम्मद नूर

 ग़ज़ल 

गांव से चिट्ठी नहीं रोज फ़ोन आता है गांव गए बहुत दिन हुए
लोग तो मिलते ही रहते हैं हरदम ख़ुद से मिले बहुत दिन हुए

कब जाएंगे मिलेंगे दूब से जिएंगे जीवन खुले आसमान का
मेड़ की दूब तो पुकारती बहुत है दूब को छुए बहुत दिन हुए

दूब का दूध पीना लोग कहां जानते हमने पिया हम जानते हैं
प्रेम का बादल पागल बन कर झमाझम बरसे बहुत दिन हुए

वह अब भी गाती होगी क्या वैसे ही झलुआ पर ख़ूब झूम-झूम
सिवान अमराई पुरवाई जवानी यह सब जिए बहुत दिन हुए

विकास मनरेगा मोबाईल सब लेकिन गांव सूना है जवानी से
कभी दुपहरिया बाग़ में किसी कोयल को कूके बहुत दिन हुए

दुःख पहले भी थे पर इतने भी कहां थे कि न सूरज दिखे न चांद
बादल मुश्किलों के इतने सारे कि सुख से मिले बहुत दिन हुए 

[ 1 मार्च , 2016 ]

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