मेरे सरोकारनामा ब्लॉग को बनाने वाले , उसे रच कर मुझे अप्रतिम पंख और
पहचान देने वाले , दुनिया भर में मेरे लिखे को पहुंचाने वाले , मुझे असंख्य और आत्मीय पाठकों से मिलवाने वाले ज्ञानेंद्र
त्रिपाठी जापान से कई बरस बाद जब परसों भारत आए तो कल शाम लखनऊ में मेरे घर
भी आए ।
जापान में वह पी एच डी कर रहे थे । पी एच डी उन की पूरी हो गई है ।
जापान में ही उन को बहुत अच्छी सी नौकरी भी मिल गई है । अभी महीने भर वह
भारत में रहेंगे । उन का कैरियर , उन का जीवन ख़ूब सुंदर और सुखमय हो यही
कामना करता हूं । बांसगांव की मुनमुन उपन्यास पढ़ कर ज्ञानेंद्र
ने मुझ से बात की थी । तब के दिनों दिल्ली के एक इंजीनियरिंग कालेज में वह
पढ़ाते थे । उपन्यास उन को इतना अच्छा लगा कि वह एक दिन अचानक लखनऊ आ गए
मुझ से मिलने । फिर मेरा सारा लिखा पढ़ने लगे । एक दिन उन का फ़ोन आया कि आप
अपना ख़ुद का ब्लॉग क्यों नहीं बना लेते और अपनी सारी रचनाएं एक जगह उस पर
डाल देते ? मैं ने बताया कि यह सब मुझे नहीं आता । तो कहने लगे कि इज़ाज़त
दीजिए तो मैं आप का ब्लॉग बना देता हूं । बस आप एक नाम सुझा दीजिए , अपनी
पसंद का ।
मैं ने उन्हें सरोकार बताया । पर पता चला कि सरोकार नाम से एक
ब्लॉग पहले ही से था । तो फिर सरोकारनामा बताया । यह नाम मिल गया । और पलक
झपकते ही ज्ञानेंद्र ने सरोकारनामा नाम से मेरा ब्लॉग बना दिया । कई सारी
रचनाएं पोस्ट कीं । फिर मुझे पोस्ट करना सिखाया । बाद के दिनों में बलिया
के डाक्टर ओमप्रकाश सिंह जी भी मेरी मदद में आ खड़े हुए । वह भी लोक कवि अब
गाते नहीं उपन्यास पढ़ कर परिचित हुए थे । फिर तो यह सरोकारनामा का सफ़र कभी
रुका नहीं , यह सफ़र कभी झुका नहीं । कहना चाहता हूं कि जियो ज्ञानेंद्र ,
जहां भी रहो सर्वदा ख़ुश और मस्त रहो । ज्ञानेंद्र के साथ अवकाश प्राप्त
प्राचार्य और फेसबुक मित्र देवनाथ द्विवेदी जी भी थे । कुछ चित्र :
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-02-2016) को "नमस्कार का चमत्कार" (चर्चा अंक-2265) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'