मेरे सरोकारनामा ब्लॉग को बनाने वाले , उसे रच कर मुझे अप्रतिम पंख और
पहचान देने वाले , दुनिया भर में मेरे लिखे को पहुंचाने वाले , मुझे असंख्य और आत्मीय पाठकों से मिलवाने वाले ज्ञानेंद्र
त्रिपाठी जापान से कई बरस बाद जब परसों भारत आए तो कल शाम लखनऊ में मेरे घर
भी आए ।
जापान में वह पी एच डी कर रहे थे । पी एच डी उन की पूरी हो गई है ।
जापान में ही उन को बहुत अच्छी सी नौकरी भी मिल गई है । अभी महीने भर वह
भारत में रहेंगे । उन का कैरियर , उन का जीवन ख़ूब सुंदर और सुखमय हो यही
कामना करता हूं । बांसगांव की मुनमुन उपन्यास पढ़ कर ज्ञानेंद्र
ने मुझ से बात की थी । तब के दिनों दिल्ली के एक इंजीनियरिंग कालेज में वह
पढ़ाते थे । उपन्यास उन को इतना अच्छा लगा कि वह एक दिन अचानक लखनऊ आ गए
मुझ से मिलने । फिर मेरा सारा लिखा पढ़ने लगे । एक दिन उन का फ़ोन आया कि आप
अपना ख़ुद का ब्लॉग क्यों नहीं बना लेते और अपनी सारी रचनाएं एक जगह उस पर
डाल देते ? मैं ने बताया कि यह सब मुझे नहीं आता । तो कहने लगे कि इज़ाज़त
दीजिए तो मैं आप का ब्लॉग बना देता हूं । बस आप एक नाम सुझा दीजिए , अपनी
पसंद का ।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-02-2016) को "नमस्कार का चमत्कार" (चर्चा अंक-2265) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'