फ़ोटो : निखिलेश त्रिवेदी |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
मंज़र उदास करता है पर कुछ लोग पहचाने गए
देश में रहते खाते हैं पर देशद्रोह से पहचाने गए
आतंकवादी अफजल का फांसी दिवस बहाना था
देशद्रोहियों के इगो मसाज खातिर वह जाने गए
सिर से पांव तक जहर भरा पड़ा है इन के भीतर
मनुष्यता से नहीं जाति और मज़हब से जाने गए
उन को कामरेड की गिरफ़्तारी पर रंज है बेइंतिहा
लेकिन देशद्रोही नारों से मुहब्बत के लिए जाने गए
पढ़े-लिखे होने का दावा बहुत है इसी की रंगबाजी
वफ़ादारी नहीं देश से गद्दारी के लिए वह जाने गए
हर तरफ आग धुआं हर तरफ तकलीफ और घुटन
वह तो हल्ला बोल कर वेलेंटाईन का गीत गाने लगे
जाति मजहब की दरारें और देश में पड़ी दरार और
जब लोग पिल पड़े हैं चारो तरफ से तो घबराने लगे
[ 14 फ़रवरी , 2016 ]
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