फ़ोटो : संजय धवन |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
पहले सेक्यूलर में दलित मिलाया अब देशद्रोह को गांठ रहे हैं
अभिव्यक्ति का पंचांग कुछ इस तरह हंस-हंस कर बांच रहे हैं
खुले आम भारत के टुकड़े-टुकड़े करने का आह्वान हिला देता है
पर वह ऐसे ज़िक्र करते हैं इस का जैसे ठंड में आग ताप रहे हैं
उन के पास फंडिंग का मीटर है एंटी एस्टिब्लिश्मेंट का एजेंडा है
देशभक्ति के भूगोल को किसी बेईमान पटवारी की तरह नाप रहे हैं
एन जी ओ में किस आंदोलन से कितना पैसा आया है या आएगा
क्रांतिकारी लोग चार्टर्ड अकाउंटेंट के साथ गुणा-भाग जांच रहे हैं
यह रोजगार है उन का बस यही कमाई है देश टूटे रहे उन को क्या
लत के मारे भटके लोग हैं बेगानी शादी में वह कूद-कूद नाच रहे हैं
ज़ज़्बात देश समाज इन की राय में कमज़ोर बेकार फिजूल बातें हैं
पूर्वग्रह के मारे हुए हैं उन के अपने कमिटमेंट हैं और हांफ रहे हैं
[ 21 फ़रवरी , 2016 ]
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-02-2016) को "जिन खोजा तीन पाइया" (चर्चा अंक-2260) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'