Thursday 11 February 2016

मिलन के मंगल दिन हैं लेकिन बहुत लजाते हैं




ग़ज़ल 
आम के बौर दहक कर मन में आग लगाते हैं 
मिलन के मंगल दिन हैं लेकिन बहुत लजाते हैं 

यह वसंत यह उमंग यह दहकता हुआ मौसम 
तुम्हारे साथ समय बिताने के दिन हैं बताते हैं 

तुम को देखना महसूसना जीना कितना सुहाना 
दिल बहकता बहुत है फागुन के दिन बुलाते हैं

नदी दुबली होती जाती है जैसे तुम्हारे विरह में 
लिपट कर नदी रोती बहुत है किनारे बताते हैं

प्रेम के दिन कैसे  उड़ जाते हैं कपूर की तरह
शेष तो बस ख़ुशबू रहती है यह लोग बताते हैं 

प्रेम में कच्ची दशहरी भी सर्वदा मीठी लगती है 
 बाग़ के सारे आम पकेंगे बहुत उम्मीद जगाते हैं


[ 11 फ़रवरी , 2016 ]

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