ग़ज़ल
आम के बौर दहक कर मन में आग लगाते हैं
मिलन के मंगल दिन हैं लेकिन बहुत लजाते हैं
यह वसंत यह उमंग यह दहकता हुआ मौसम
तुम्हारे साथ समय बिताने के दिन हैं बताते हैं
तुम को देखना महसूसना जीना कितना सुहाना
दिल बहकता बहुत है फागुन के दिन बुलाते हैं
नदी दुबली होती जाती है जैसे तुम्हारे विरह में
लिपट कर नदी रोती बहुत है किनारे बताते हैं
प्रेम के दिन कैसे उड़ जाते हैं कपूर की तरह
शेष तो बस ख़ुशबू रहती है यह लोग बताते हैं
प्रेम में कच्ची दशहरी भी सर्वदा मीठी लगती है
बाग़ के सारे आम पकेंगे बहुत उम्मीद जगाते हैं
बाग़ के सारे आम पकेंगे बहुत उम्मीद जगाते हैं
[ 11 फ़रवरी , 2016 ]
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