फ़ोटो : निखिलेश त्रिवेदी |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
विरोध का सुर ऐसा कश्मीर को आज़ादी दिलाने लगे
जान से प्यारा पाकिस्तान का वह गीत अब गाने लगे
महिसासुर दिवस मनाते-मनाते मन इतना बढ़ गया
आतंकवादी अफजल गुरु को भी शहीद बताने लगे
एक यही लोग हैं पढ़े-लिखे बाक़ी दुनिया जाहिल है
जो इन से असहमत हुआ उसे फासिस्ट बताने लगे
राष्ट्र शब्द सुनते ही भड़क जाते तर्कातीत हो जाते
भगवा का भूत दिखा कर हर किसी को डराने लगे
मनबढ़ हैं अराजक हैं ब्लैकमेलिंग के एक्सपर्ट पुराने
यथा स्थिति तोड़ी गई तो ख़ूब तेज़-तेज़ चिल्लाने लगे
कुतर्क की खेती पर जन्म सिद्ध अधिकार इन का है
खेती छीन ली गई इन के हाथ से बदस्तूर बौराने लगे
बचाव के रास्ते जब सारे बंद हो गए तो वह क्या करें
आजमाया दांव है पुराना अब संघी-संघी चिल्लाने लगे
भारत की बर्बादी तक जंग लड़ने की तैयारी उन की है
आंख में धूल झोंक पूरी उस्तादी से सब को बरगलाने लगे
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