फ़ोटो : संतोष जाना |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
उदारता देखिए देश बीवी सब गिफ़्ट करना चाहते हैं
इशरत को बेटी अफजल को दामाद बताना चाहते हैं
गांधी को तो कभी नहीं मानते पर गोडसे को जानते हैं
दुकान सजाने के लिए वह उमर ख़ालिद को चाहते हैं
सिर्फ़ संगठन ज़रूरी है इन के लिए भी उन के लिए भी
देश समाज की ऐसी तैसी करना दोनों ही लोग जानते हैं
न उन को अहिंसा पसंद है न शांति वह हिंसा के पुजारी
आग जैसे भी लगे बस किसी सूरत आग लगाना चाहते हैं
अपनी कमीज़ को सर्वदा सफ़ेद बताने की बीमारी है उन्हें
सीनाज़ोरी और बेशर्मी का वह शो रूम खोलना चाहते हैं
[ 22 फ़रवरी , 2016 ]
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