फ़ोटो : शोभित चावला |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
सब इसी कुएं में पड़े हैं निकलने का रास्ता कहां जानते हैं
सेक्यूलर दिखने की बीमारी से लोग उबरना कहां चाहते हैं
धरती पर नहीं आसमान में रहते सच से कोई वास्ता नहीं
बंद दरवाज़ों में रहने वाले धूप में निकलना कहां चाहते हैं
जानते सारे लोग हैं कि यह मुश्किल बहुत बड़ी है सिर पर
डाक्टर ख़ुद बीमार हैं बीमारी से निपटना कहां जानते हैं
तुष्टिकरण का कैंसर लास्ट स्टेज पर है अब इस देश में
समाज विज्ञानी भी इस नासूर का निदान कहां जानते हैं
बड़े-बड़े घायल हैं बड़े-बड़े कुर्बान पर वोट बैंक का गड्ढा
कैसे भरें किस से भरें इस तोड़ का रास्ता कहां जानते हैं
फ़िल्में दग़ाबाज़ हैं लंपट हैं खोखली हैं उन की कहानियां
मीडिया सिर्फ़ दलाल है यह बात सब लोग कहां जानते हैं
[ 22 फ़रवरी , 2016 ]
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " डरो ... कि डरना जरूरी है ... " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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