Tuesday, 16 February 2016

तुम्हारी प्रेम नदी में साईबेरियन पक्षी की तरह हम उड़े हैं


फ़ोटो : अनिल रिसाल सिंह

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

पतझड़ गुज़र गया है पेड़ों से हम टूटे पत्तों पर ही  खड़े हैं 
तुम्हारी प्रेम नदी में साईबेरियन पक्षी की तरह हम उड़े हैं

हम तो चुप खड़े हैं पर पत्ते चुप नहीं रहते बोलते बहुत हैं
इंतज़ार की बेकल नदी में नहाए तुम्हारे स्वागत में खड़े हैं 
 
इंतज़ार याद और प्यार के मस्त  बादल आंखों में बसे हैं
पांव दोनों थक गए तुम्हारे इंतज़ार में हम कब से खड़े हैं
 
डरते रहते हैं पर मरते हैं बहुत तुम्हारे लिए दिन रात हम
हरदम अकुलाए रहते हैं पानी में जैसे आग लगाए खड़े हैं 

तुम्हारी ख्वाहिश तुम्हारी फरमाइश और आज़माइश में हम
जैसे पर्वत की छाती पर देवदार हैं हम सीना ताने हुए खड़े हैं 

इंतज़ार की नींद तोड़ती हैं यादों की गठरी खोलती हैं हवाएं 
आम में बौर गेहूं में बालियां सरसो के फूल मदमाते खड़े हैं 

प्यार की धरती गुहराती है तुम्हें तुम भी उड़ आओ जहां भी हो 
सिमट आओ प्रेम के निर्मल आकाश में बाहें फैलाए हुए खड़े हैं 

हम प्रेम के पक्षी हैं धरती आकाश नदी समुद्र सब यहां बराबर हैं
तुम हमें जितना सताओ तुम्हारे लिए मीलों आकाश में हम उड़े हैं 

तुम्हें पाने की लालसा में तुम्हारा इंतज़ार परीक्षा देने जैसा ही है
तुम चाहे जितना भुलाओ  तुम्हारे दिल में नगीने की तरह जड़े  हैं


[ 17 फ़रवरी , 2016 ]

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