Sunday, 28 February 2016

आग बन कर मन को दहकाने लगे हैं


ग़ज़ल

गुलमोहर में भी फूल अब आने लगे हैं
आग बन कर मन को दहकाने लगे हैं

यह मौसम है कि मौसम की महक है
पलाश वन भी मन को सुलगाने लगे हैं

तुम्हारी याद है कि यादों का चंदन वन
चंदन की तरह मन को महकाने लगे हैं

एक दिन है एक रात है सूरज चांद भी
एक तुम्हारा काजल सब बौराने लगे हैं

फागुनी हवा में उड़ता तुम्हारा आंचल है
मादक हवा में मेरे बोल तुतलाने लगे हैं

महफ़िल में तुम्हारे हुस्न की दस्तक है
चूम लिया है तुम्हें लोग घबराने लगे हैं

तुम कहां हो कैसी हो किस नगरी में हो 
यह मौसमी गाने हम को सताने लगे हैं

[ 29 फ़रवरी , 2016 ]

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