मनोज भावुक की भोजपुरी ग़ज़लें पढ़ना जैसे अपने गांव के खपरैल वाले मिट्टी के घर में रहना है । उस की सोंधी महक और लाचारी से गुज़रना है । जैसे कोई मकड़ी अपने ही बुने जाले में उलझ जाए मनोज भावुक की ग़ज़लें वैसे ही उलझाती हुई अपनी गिरफ़्त में ले लेती हैं । गांव की पगडंडी पर बुलाती हैं , खेत के मेड़ पर दौड़ाती हुई अचानक किसी भांस में पैर डाल देती हैं । जैसे पैर नहीं , मन गीली मिट्टी से लथपथ हो जाता है । लेकिन मनोज की ग़ज़लों की व्यथा-कथा ख़त्म नहीं होती । वह लिखते ही हैं , ' बात पर बात होता बात ओराते नइखे / कवनो दिक्कत के समाधान भेंटाते नइखे । ' गांव से शहर आ कर शहर की मुश्किलों और उस से उपजे तनाव को भी मनोज की ग़ज़लें ऐसे बांचती हैं गोया कोई वैद्य किसी मरीज की नब्ज़ टटोल कर उस की बीमारी , उस का दुःख , उस का अपमान , उस का बुझा-बुझा मन , उस का घात-प्रतिघात बांच रहा हो । गतरे गतर घाव की तफ़सील बांच रहा हो । मनोज भावुक की भोजपुरी ग़ज़लों का जो गांव कनेक्शन है , जो भोजपुरी शब्दों और भावनाओं का फेवीक्विक है वह बड़ा अनमोल है । भूले हुए ज़ख्मों का जो पता वह देते रहते हैं अपनी ग़ज़लों में वह और उस में भी कारपोरेट कल्चर की जो सर्द और भयावह छौंक है उसे बिसरे हुए भोजपुरी शब्दों का घी लपेट कर जब वह परोसते हैं तो मन के भीतर चल रही खदबदाहट और अकुलाहट को और आंच मिलती है । जैसे कलेजा फाट पड़ता है :
जब से शहर में आइल तब से बा अउँजियाइल
रोटी बदे दुलरुआ खूंटा से बा बन्हाइल
तिस पर जब उन की ग़ज़ल जब वैद्य बन कर बताती है , ' गोबरे गणेश बा इहां / अब उहे विशेष बा इहां । ' गांव से शहर आ कर नौकरी की चकाचौंध में खो गया आदमी कैसी-कैसी यातनाओं को बांचता है और उस में किसी शिकार की तरह फंस कर कैसे भयभीत होता जाता है इस की बड़ी बारीक़ी से पड़ताल करती हैं मनोज भावुक की ग़ज़लें । एक ग़ज़ल के दो शेर देखें :
शूगर बढ़ल रहत बा, बी.पी. बढ़ल रहत बा
ग़जबे के जॉब बाटे किडनी ले बा डेराइल
पेटवे से बा कनेक्शन एह जॉब के, एही से
सहमल बा शेर अउरी गीदड़ बा फनफनाइल
मनोज भावुक की ग़ज़लों में जो साझी तकलीफ़ है , जो ओस सा टटकापन है , जो भोजपुरी शब्दों की नरमी है , दुःख की मद्धिम-मद्धिम आह है और जो उस की आंच है वह दुर्लभ ही नहीं अलभ्य भी है । यहां मनोज भावुक की आठ ग़ज़लें एक साथ पेश करते हुए मनोज भावुक से कहना चाहता हूं , जियS बघेला , जीयS ! ख़ूब लिखS और करेजा काढ़ि लS !
मनोज भावुक की आठ ग़ज़लें
1
बात पर बात होता बात ओराते नइखे
कवनो दिक्कत के समाधान भेंटाते नइखे
भोर के आस में जे बूढ़ भइल, सोचत बा
मर गइल का बा सुरुज रात ई जाते नइखे
लोग सिखले बा बजावे के सिरिफ ताली का
सामने जुल्म के अब मुठ्ठी बन्हाते नइखे
मन के धृतराष्ट्र के आँखिन से सभे देखत बा
भीम असली ह कि लोहा के, चिन्हाते नइखे
बर्फ हs, भाप हs, पानी हs कि कुछुओ ना हs
जिन्दगी का हवे, ई राज बुझाते नइखे
दफ्न बा दिल में तजुर्बा त बहुत, ए ‘भावुक’
छंद के बंध में सब काहें समाते नइखे
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2
गोबरे गणेश बा इहां
अब उहे विशेष बा इहां
बा कहां इहां प आदमी
आदमी के भेष बा इहां
जानवर में प्रेम बा मगर
आदमी में द्वेष बा इहां
यार तू संभल-संभल चलs
डेगे-डेगे ठेस बा इहां
जिंदगी अगर हs जेल तs
हर केहू प केस बा इहां
बा कहां प जिंदगी ‘मनोज’
आदमी के रेस बा इहां
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3
दर्द उबल के जब छलकेला गज़ल कहेलें भावुक जी
जब-जब जे महसूस करेलें उहे लिखेलें भावुक जी
टुकड़ा-टुकड़ा, किस्त-किस्त में जीये-मुयेलें भावुक जी
जिनिगी फाटे रोज -रोज आ रोज सियेलें भावुक जी
अपना जाने बड़का-बड़का काम करेलें भावुक जी
चलनी में पानी बरिसन से रोज भरेलें भावुक जी
हिरनीला बउराइल मन भटकावे जाने कहां- कहां
गिरत-उठत अनजान सफर में चलत रहेलें भावुक जी
कुछुओ कर लीं, होई ऊहे ,जवन लिखल बा किस्मत में
इहे सोच के अक्सर कुछुओ ना सोचेलें भावुक जी
आँच लगे जब कस के तब जाके पाके कच्चा घइला
अइसे दुख के दुपहरिया में जरत रहेंलें भावुक जी
पटना,दिल्ली,बंबे,लंदन अउर अफ्रीका याद आवे
जिनगी के बीतल पन्ना जब भी पलटेलें भावुक जी
जिक्र चले जब भी वसंत के हो जालें बेचैन बहुत
आँख मूंद के जाने का-का याद करेलें भावुक जी
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4
जिनिगी के जख्म, पीर, जमाना के घात बा
हमरा गजल में आज के दुनिया के बात बा
कउअन के काँव-काँव बगइचा में भर गइल
कोइल के कूक ना कबो कतहीं सुनात बा
अर्थी के साथ बाज रहल धुन बिआह के
अब एह अनेति पर केहू कहँवाँ सिहात बा
संवेदना के लाश प कुर्सी के गोड़ बा
मालूम ना, ई लोग का कइसे सहात बा
'भावुक' ना बा हुनर कि लिखीं गीत आ गजल
का जाने कइसे बात हिया के लिखात बा
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5
हमरा सँगे अजीब करामात हो गइल
सूरज खड़ा बा सामने आ रात हो गइल
परिचय हमार पूछ रहल बा घरे के लोग
अइसन हमार हाय रे, औकात हो गइल
जमकल रहित करेज में कहिया ले ई भला
अच्छे भइल जे दर्द के बरसात हो गइल
'भावुक' हो! हमरा वास्ते बाटे बहुत कठिन
भीतर जहर उतार के सुकरात हो गइल
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6
शेर जाल में फँस जाला तऽ सियरो आँख देखावेला
बुरा वक्त जब आ जाला तऽ अन्हरो राह बतावेला
कबो-कबो होला अइसन जे छोटके कामे आवेला
देखीं ना, सागर, इनार में, इनरे प्यास बुझावेला
सूरज से ताकतवाला के बाटे दुनिया में , बाकिर
धुंध, कुहासा, बदरी, गरहन उनको ऊपर आवेला
कबो-कबो होला अइसन जे सोना उहँवे निकलेला
बदगुमान में लोग जहाँ पर लात मार के आवेला
पास रहेलऽ तब तऽ तहरा से होला रगड़ा-झगड़ा
दूर कहीं जालऽ तऽ काहे तहरे याद सतावेला
पटना से दिल्ली, दिल्ली से बंबे, बंबे से लन्दन
'भावुक' हो आउर कुछुवो ना, पइसे नाच नचावेला
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7
हिया में जब धइल गइल तनी-तनी सा बात के
असर बहुत-बहुत भइल तनी-तनी सा बात के
कहीं प फूल झर गइल कहीं प फूल खिल गइल
अलग-अलग असर भइल तनी-तनी सा बात के
जे जिन्दगी के हाल-चाल उम्र भर लिखत रहल
ऊ राज ना समझ सकल तनी-तनी सा बात के
ई मन बहुत मइल भइल तनी-तनी सा बात से
बेकार में ढोअल गइल तनी-तनी सा बात के
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8
जब से शहर में आइल तब से बा अउँजियाइल
रोटी बदे दुलरुआ खूंटा से बा बन्हाइल
गदहो के बाप बोले, दिनवो के रात बोले
सुग्गा बनल ई मनई पिंजड़ा में बा पोसाइल
शूगर बढ़ल रहत बा, बी.पी. बढ़ल रहत बा
ग़जबे के जॉब बाटे किडनी ले बा डेराइल
पेटवे से बा कनेक्शन एह जॉब के, एही से
सहमल बा शेर अउरी गीदड़ बा फनफनाइल
जे सुर में सुर मिलावल, जे मुंह में मुंह सटावल
ओही के बा तरक्की , ओह पर बहार आइल
मीटिंग के बदले मेटिंग, सर्विस के बदले सेटिंग
जेकरा में ई हुनर बा, ऊ हर जगह फुलाइल
अंधेर राज में बा चमचन के पूछ भलहीं
बेरा प यार हरदम टैलेंट कामे आइल
अन्हियार के मिटावे, सूरज उहे कहाला
ओही से बाटे दुनिया, ऊहे सदा पुजाइल
अइसे त फेसबुक पर बाड़न हजार साथी
संकट में जब खोजाइल, केहू नजर ना आइल
नेटे प देख लिहलस माई के काम- किरिया
बबुआ बा व्यस्त अतना लंदन से आ न पाइल
साथी के घात से बा गतरे गतर घवाहिल
रिश्तन के जालसाजी भावुक के ना बुझाइल
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मनोज भावुक
जन्म - 2 जनवरी 1976, कौसड़ , सीवान , बिहार
प्रकाशित पुस्तक - तस्वीरी जिंदगी के (ग़ज़ल-संग्रह ) और चलनी में पानी (कविता - संग्रह )
पहले युगांडा और लन्दन में इंजिनियर। अब मीडिया / टीवी चैनल और फिल्मों में सक्रिय
वक्तव्य
जब जब बेचैनी होला त ग़ज़ल के गोदी में आपन सर रख देनी। कुछ आराम मिल जाला।
संपर्क
EMAIL- manojsinghbhawuk@yahoo.co.uk
Mob - 09971955234
मनोज भावुक |
बढ़िया आलेख के संगे मनोज के ग़ज़ल के प्रस्तुति। बधाई आ शुभकामना।
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