Saturday, 13 February 2016

वैलेंटाईन की बांसुरी बज रही बहुत मीठी तुम चली आओ

फ़ोटो : सुलोचना वर्मा
 
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

प्रेम के वृक्ष पर कोंपल नई अभी खिली है तुम चली आओ
वैलेंटाईन की बांसुरी बज रही बहुत मीठी तुम चली आओ

सीटी बजाती हवा है लहराते हुए बादल पत्तों में खनक है 
घाट बंधी नाव खुल गई है झूमती नदी है तुम  चली आओ

मछुवारे घूमते हैं नदी किनारे कंधे पर भारी जाल डाले  
प्रेम नदी में मछली कूद रही है मुसलसल तुम चली आओ
 
घंटियां बज रही  हैं जैसे मंदिर में तुम्हारी आवाज़ आती है
दिल की घाटी में खिले सारे फूल बुलाते हैं तुम चली आओ

आम में मंजरियां आ गई हैं मादक महुआ अब फूलने को है
गोद में बच्चा किलकारियां मारता बहुत है तुम चली आओ

नए पत्ते आने के पहले पुराने टूट जाते हैं कि साथी छूट जाते हैं
बाग़ में पत्ते टूटे बहुत हैं कि जैसे मैं हूं लेकिन तुम चली आओ

मछुवारे बैठे हैं तालाब में कंटिया बिछाए चारा भी लगाए हैं 
ओस सूख रही है पत्तों से दूब घायल बहुत है तुम चली आओ

 [ 14 फ़रवरी , 2016 ]

No comments:

Post a Comment