Saturday 20 February 2016

सच यह है कि रवीश कुमार भी दलाल पथ के यात्री हैं

दयानंद पांडेय 


रवीश कुमार

ब्लैक स्क्रीन प्रोग्राम कर के रवीश कुमार कुछ मित्रों की राय में हीरो बन गए हैं । लेकिन क्या सचमुच ? एक मशहूर कविता के रंग में जो डूब कर कहूं तो क्या थे रवीश और  क्या हो गए हैं , क्या होंगे अभी ! बाक़ी तो सब ठीक है लेकिन रवीश ने जो गंवाया है , उस का भी कोई हिसाब है क्या ? 

रवीश कुमार के कार्यक्रम के स्लोगन को ही जो उधार ले कर कहूं कि सच यह है कि ये अंधेरा ही आज के टी वी की तस्वीर है ! कि देश और देशभक्ति को मज़ाक में तब्दील कर दिया गया है । बहस का विषय बना दिया गया है । जैसे कोई चुराया हुआ बच्चा हो देशभक्ति कि असली मां कौन ?  रवीश कुमार एंड कंपनी को शर्म आनी चाहिए । 

आप को क्या लगता है कि बिना प्रणव राय की मर्जी के रवीश कुमार एन डी टी वी में सांस भी ले सकते हैं ? 

एक समय था कि इंडियन एक्सप्रेस में अरुण शौरी का बड़ा बोलबाला था । उन की न्यूज़ स्टोरी बड़ा हंगामा काटती रहती थीं । बाद के दिनों में वह जब इंडियन एक्सप्रेस से कुछ विवाद के बाद अलग हुए तो एक इंटरव्यू में डींग मारते हुए कह गए कि मैं अपनी स्टोरी के लिए कहीं जाता नहीं था , स्टोरी मेरी मेज़ पर चल कर आ जाती थी । रामनाथ गोयनका से पूछा गया अरुण शौरी की इस डींग के बारे में तो गोयनका ने जवाब दिया कि अरुण शौरी यह बात तो सच बोल रहा है क्यों कि उसे सारी स्टोरी तो मैं ही भेजता था , बस वह अपने नाम से छाप लेता था । अब अरुण शौरी चुप थे । लगभग हर मीडिया संस्थान में कोई कितना बड़ा तोप क्यों न हो उस की हैसियत रामनाथ गोयनका के आगे अरुण शौरी जैसी ही होती है । बड़े-बड़े मीडिया मालिकान ख़बरों के मामले में एडीटर और एंकर को डांट कर डिक्टेट करते हैं । हालत यह है कि कोई कितना बड़ा तोप एडीटर भी नगर निगम के एक मामूली बाबू के ख़िलाफ़ ख़बर छापने की हिमाकत नहीं कर सकता अगर मालिकान के हित वहां टकरा गए हैं । विनोद मेहता जब पायनियर के चीफ़ एडीटर थे तब उन्हें एल एम थापर ने दिल्ली नगर निगम के एक बाबू के ख़िलाफ़ ख़बर छापने के लिए रोक दिया था । सोचिए कि कहां थापर , कहां नगर निगम का बाबू और कहां विनोद मेहता जैसा एडीटर ! लेकिन यह बात विनोद मेहता ने मुझे ख़ुद बताई थी । तब मैं भी पायनियर के सहयोगी प्रकाशन स्वतंत्र भारत में था । मैं इंडियन एक्सप्रेस के सहयोगी प्रकाशन जनसत्ता में भी प्रभाष जोशी के समय में रहा हूं । इंडियन एक्सप्रेस , जनसत्ता के भी तमाम सारे ऐसे वाकये हैं मेरे पास । पायनियर आदि के भी । पर यहां बात अभी क्रांतिकारी बाबू रवीश कुमार की हो रही है तो यह सब फिर कभी और । 

अभी तो रवीश कुमार पर । वह भी बहुत थोड़ा सा । विस्तार से फिर कभी ।

रवीश कुमार प्रणव राय के पिंजरे के वह तोता हैं जो उन के ही एजेंडे पर बोलते और चलते हैं । इस बात को इस तरह से भी कह सकते हैं कि प्रणव राय निर्देशक हैं और रवीश कुमार उन के अभिनेता। प्रणव राय इन दिनों फेरा और मनी लांड्रिंग जैसे देशद्रोही आरोपों से दो चार हैं। आप यह भी भूल रहे हैं कि प्रणव राय ने नीरा राडिया के राडार पर सवार रहने वाली बरखा दत्त जैसे दलाल पत्रकारों का रोल माडल तैयार कर उन्हें पद्मश्री से भी सुशोभित करवाया है । अब वह दो साल से रवीश कुमार नाम का एक अभिनेता तैयार कर उपस्थित किए हुए हैं। ताकि मनी लांड्रिंग और फेरा से निपटने में यह हथियार कुछ काम कर जाए । रवीश कुमार ब्राह्मण हैं पर उन की दलित छवि पेंट करना भी प्रणव राय की स्कीम है। रवीश दलित और मुस्लिम कांस्टिच्वेन्सी को जिस तरह बीते कुछ समय से एकतरफा ढंग से एड्रेस कर रहे हैं उस से रवीश कुमार पर ही नहीं मीडिया पर भी सवाल उठ गए हैं । रवीश ही क्यों रजत शर्मा , राजदीप सरदेसाई , सुधीर चौधरी , दीपक चौरसिया आदि ने अब कैमरे पर रहने का , मीडिया में रहने का अधिकार खो दिया है , अगर मीडिया शब्द थोड़ा बहुत शेष रह गया हो तो । सच यह है कि यह सारे लोग मीडिया के नाम पर राजनीतिक दलाली की दुकान खोल कर बैठे हैं । इन सब की राजनीतिक और व्यावसायिक प्रतिबद्धताएं अब किसी से छुपी नहीं रह गई हैं । यह लोग अब गिरोहबंद अपराधियों की तरह काम कर रहे हैं । कब किस को उठाना है , किस को गिराना है मदारी की तरह यह लोग लगे हुए हैं । ख़ास कर प्रणव राय जितना साफ सुथरे दीखते हैं , उतना हैं नहीं ।


अव्वल तो यह सारे न्यूज चैनल लाइसेंस न्यूज चैनल का लिए हुए हैं लेकिन न्यूज के अलावा सारा काम कर रहे हैं । चौबीस घंटे न्यूज दिखाना एक खर्चीला और श्रम साध्य काम है । इस लिए यह चैनल भडुआगिरी पर आमादा हैं ।  दिन के चार-चार घंटे मनोरंजन दिखाते हैं । रात में भूत प्रेत , अपराध कथाएं दिखाते हैं । धारावाहिकों और सिनेमा के प्रायोजित कार्यक्रम , धर्म ज्योतिष के पाखंडी बाबाओं की दुकानें सजाते हैं । और प्राइम टाइम में अंध भक्ति से लबालब  विचार और बहस दिखाते हैं । देश का माहौल बनाते-बिगाड़ते हैं । और यहीं प्रणव राय जैसे शातिर , रजत शर्मा जैसे साइलेंट आपरेटर अपना आपरेशन शुरू कर देते हैं । फिर रवीश कुमार जैसे जहर में डूबे अभिनेता , राजदीप सर देसाई जैसे अतिवादी , सुधीर चौधरी जैसे ब्लैकमेलर , अभिज्ञान प्रकाश जैसे डफर , दीपक चौरसिया जैसे दलाल , चीख़-चीख़ कर बोलने वाले अहंकारी अर्नब गोस्वामी जैसे बेअदब लोग सब के ड्राईंग रूम , बेड रूम में घुस कर मीठा और धीमा जहर परोसने लगते हैं । लेकिन सरकार इतनी निकम्मी और डरपोक है कि मीडिया के नाम पर इस कमीनगी के बारे में पूछ भी नहीं सकती । कि अगर आप ने साईकिल बनाने का लाईसेंस लिया है तो जहाज कैसे बना रहे हैं ?  ट्यूब बनाने का लाईसेंस लिया है तो टायर कैसे बना रहे हैं । दूसरे , अब यह स्टैब्लिश फैक्ट है कि सिनेमा और मीडिया खुले आम नंबर दो का पैसा नंबर एक का बनाने के धंधे में लगे हुए हैं । तीसरे ज़्यादातर मीडिया मालिक या उन के पार्टनर या तो बिल्डर हैं या चिट फंड के कारोबारी हैं । इन की रीढ़ कमज़ोर है । लेकिन सरकार तो बेरीढ़ है । जो इन से एक फार्मल सवाल भी कर पाने की हैसियत नहीं रखती ।  सरकार की इसी कमज़ोरी का लाभ ले कर यह मीडिया पैसा कमाने के लिए देशद्रोह और समाजद्रोह पर आमादा है । रवीश कुमार जैसे लोग इस समाजद्रोह के खलनायक और वाहक हैं । लेकिन उन की तसवीर नायक की तरह पेश की जा रही है । रवीश कुमार इमरजेंसी जैसा माहौल बता रहे हैं । पहले असहिष्णुता बताते रहे थे । असहिष्णुता और इमरजेंसी उन्हों ने देखी नहीं है । देखे होते तो मीडिया में थूक नहीं निकलता , बोलना तो बहुत दूर की बात है । हमने देखा है इमरजेंसी का वह काला चेहरा । वह दिन भी देखा है जब खुशवंत सिंह जैसा बड़ा लेखक और उतना ही बड़ा संजय गांधी का पिट्ठू पत्रकार इलस्ट्रटेटेड वीकली में कैसे तो विरोध के बिगुल बजा बैठा था । अपनी सुविधा , अपना पॉलिटिकल कमिटमेंट नहीं , मीडिया की आत्मा को देखा था । रवीश जैसे लोग क्या देखेंगे अब ? इंडियन एक्सप्रेस ने संपादकीय पेज को ख़ाली छोड़ दिया था । खैर वह सब और उस का विस्तार भी अभी यहां मौजू नहीं है । 

बैंक लोन के रूप में आठ लाख करोड़ रुपए कार्पोरेट कंपनियां पी गई हैं । सरकार कान में तेल डाले सो रही है । किसानों की आत्म हत्या , मंहगाई , बेरोजगारी , कार्पोरेट की बेतहाशा लूट पर रवीश जैसे लोगों की , मीडिया की आंख बंद क्यों है । मीडिया इंडस्ट्री में लोगों से पांच हज़ार दो हज़ार रुपए महीने पर भी कैसे काम लिया जा रहा है ? नीरा राडिया के राडार पर इसी एन डी  टी वी की बरखा दत्त ने टू जी स्पेक्ट्रम में कितना घी पिया , है रवीश कुमार के पास हिसाब ? कोयला घोटाला भी वह इतनी जल्दी क्यों भूल गए हैं । रवीश किस के कहे पर कांग्रेस और आप की मिली जुली सरकार बनाने की दलाली भरी मीटिंग अपने घर पर निरंतर करवाते रहे ? बताएंगे वह ? रवीश के बड़े भाई को बिहार विधान सभा में कांग्रेस का टिकट क्या उन की सिफ़ारिश पर ही नहीं दिया गया था ? अब वह इस भाजपा विरोधी लहर में भी हार गए यह अलग बात है । लेकिन इन सवालों पर रवीश कुमार ख़ामोश हैं । उन के सवाल चुप हैं । 

अब ताज़ा-ताज़ा गरमा-गरम जलेबी वह जे एन यू में लगे देशद्रोही नारों पर छान रहे हैं । जनमत का मजाक उड़ा रहे हैं । देश को मूर्ख बना रहे हैं ।

हां , रवीश के सवाल जातीय और मज़हबी घृणा फैलाने में ज़रूर सुलगते रहते हैं । कौन जाति  हो ? उन का यह सवाल अब बदबू मारते हुए उन की पहचान में शुमार हैं । जैसे वह अभी तक पूछते रहे हैं कि  कौन जाति हो ? इन दिनों पूछ रहे हैं , देशभक्त हो ? गोया पूछ रहे हों तुम भी चोर हो ? दोहरे मापदंड अपनाने वाले पत्रकार नहीं दलाल होते हैं । माफ़ कीजिए रवीश कुमार आप अब अपनी पहचान दलाल पत्रकार के रूप में बना चुके हैं । दलाली सिर्फ़ पैसे की ही नहीं होती , दलाली राजनीतिक प्रतिबद्धता की भी होती है । सुधीर चौधरी और दीपक चौरसिया जैसे लोग पैसे की दलाली के साथ राजनीतिक दलाली भी कर रहे हैं । आप राजनीतिक दलाली के साथ-साथ अपने एन डी  टी वी के मालिक प्रणव राय की चंपूगिरी भी कर रहे हैं । और जो नहीं कर रहे हैं तो बता दीजिए न अपनी विष बुझी हंसी के साथ किसी दिन कि प्रणव राय और प्रकाश करात रिश्ते में साढ़ू  लगते हैं । हैS हैS  ऊ अपनी राधिका भाभी हैं न , ऊ वृंदा करात बहन जी की बहन हैं । हैS हैS , हम भी क्या करें ?

सच यह है कि जो काम , जो राजनीतिक दलाली बड़ी संजीदगी और सहजता से बिना लाऊड हुए रजत शर्मा इंडिया टी वी में कर रहे हैं , जो काम आज तक पर राजदीप सरदेसाई कर रहे हैं ,जो काम ज़ी न्यूज़ में सुधीर चौधरी , इण्डिया न्यूज़  में दीपक चौरसिया आदि-आदि कर रहे हैं , ठीक वही काम , वही राजनीतिक दलाली प्रणव राय की निगहबानी में रवीश कुमार जहरीले ढंग से बहुत लाऊड ढंग से एन डी टी वी में कर रहे हैं । हैं यह सभी ही राजीव शुक्ला वाले दलाल पथ पर । किसी में कोई फर्क नहीं है । है तो बस डिग्री का ही । 

निर्मम सच यह है कि रवीश कुमार भी दलाल पथ के  यात्री हैं । अंतिम सत्य यही है । आप बना लीजिए उन्हें अपना हीरो , हम तो अब हरगिज़ नहीं मानते । अलग बात है कि हमारे भी कभी बहुत प्रिय थे रवीश कुमार तब जब वह रवीश की रिपोर्ट पेश करते थे । सच हिट तो सिस्टम को वह तब करते थे । क्या तो डार्लिंग रिपोर्टर थे तब वह । अफ़सोस कि अब क्या हो गए हैं ! कि अपनी नौकरी की अय्यासी में , अपनी राजनीतिक दलाली में वह देशभक्त शब्द की तौहीन करते हुए पूछते हैं देशभक्ति होती क्या है ? आप तय करेंगे ? आदि-आदि । जैसे कुछ राजनीतिज्ञ बड़ी हिकारत से पूछते फिर रहे हैं कि यह देशभक्ति का सर्टिफिकेट क्या होता है ?

यह लिंक भी पढ़ें :

39 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन विश्लेषणात्मक लेख

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  2. what ever but he is far far better than Sudhir Chaudhary ,Arnab Goswami, Rajat sharma.And according to you all are corrupt than we have to choose less corrupt like we had choose BJP which is less corrupt than Congress.

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    1. Rabish is a rubbish and danger than a hard core terrorist. Terrorists kill but these traitors kill nation and idology it carries. Just shoot at head will be the only solution to this hype of unrest in country.

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  3. दीपक चौरसिया, रजत शर्मा की राजनैतिक प्रतिबद्धता तो पहले से जहजाहिर है। विचारों के न होने से अच्छा है कोई एक सुदृढ़ विचार होना। हां यह जरूर है कि रजत शर्मा ने अपने इसी विचार का दोहन कर धन कमाया। बैठ रहा चैनल अचानक बम-बम बोलने लगा। कर्मचारियों के दिन भी बहुरे,मैंने नजदीक से जाना है। लेकिन दीपक एक बेहतरीन रिपोर्टर हैं और उतने ही अच्छे प्रेजेंटेटर भी। उन पर अंदरखाने पैसा बनाने का आरोप तो है लेकिन सार्वजनिक तौर पर नहीं। एक बात और साफ कर दूं कि दीपक और उनकी पत्नी लंबे समय से बड़े पैकेज के चाकर हैं तो उनके पास धन हो सकता है। चौधरी की दलाली से इन्कार नहीं किया जा सकता। तीन लाख से एक करोड़ की चंद समय में सवारी यूं ही नहीं होती। मने कि इंडिका से लैंड क्रूजर। अब एक बात और विचारों का होना ठीक है लेकिन 'भारत की बर्बादी'का नहीं। अब क्या-क्या लिखें। रबीश अहंकारी हो गए हैं,इसमें दो राय नहीं। अहंकार उन्हें देश विरोध की हद तक ले जा रहा है। राजदीप की करनी उनके पिता देखते तो क्रास बल्ला चलाकर उसे तोड़ देते। बरखा की पत्रकार मां की आंखों से बरखा होती। सावन-भादों आ जाता।

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  4. ONE THING IN THIS BLOG WHICH I 100% AGREE IS ,"ABHIGYAN PRAKASH IS DUFFER "

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  5. जबर्दस्त पाण्डेय जी
    एक नंबर ;)

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  6. Guroo Dayanand was not a pakhandi. Name yourself Brihaspati and tell Rabish is Shukracharya. The mytology will be complete.

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  7. You miserably failed in prooving that report which has been showed by him was rubbish,unethical,wrong.

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  8. घटिया विश्लेषण

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  9. सर आपके अतिरिक्त अगर कोई ईमानदार देशभक्त पत्रकार हो तो नाम भी बता देते।

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  10. जब सभी प्रमुख पत्रकार दलाली कर रहे है या फिर खबर बेचने की दुकाने चला। रहे है तो अब दर्शको को क्या करना चाहिए ? इसके समाधान के लिए आप जैसे लोग मैदान में क्यों नहीं उतरते ? देश को भष्ट्र हो चुके मीडिया के इन कथित चढ़ दल्लो से कौन निजात दिलाएगा ? क्या आप इनके विरूद्ध देश व्यापी विरोध का हिस्सा बनेंगे ?

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  11. जब सभी प्रमुख पत्रकार दलाली कर रहे है या फिर खबर बेचने की दुकाने चला। रहे है तो अब दर्शको को क्या करना चाहिए ? इसके समाधान के लिए आप जैसे लोग मैदान में क्यों नहीं उतरते ? देश को भष्ट्र हो चुके मीडिया के इन कथित चढ़ दल्लो से कौन निजात दिलाएगा ? क्या आप इनके विरूद्ध देश व्यापी विरोध का हिस्सा बनेंगे ?

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  12. यदि आपके पास ठोस समाधान नहीं या फिर सच के साथ खड़े होने का माद्दा नहीं तो फिर किसी पर उंगली उठा कर आप भी उसी दलदल का हिस्सा नहीं ठहराए जाएंगे जिसका अंश श्री रवीश कुमार या आपके द्वारा चिन्हित कुछ नामी पत्रकारो में आप देख रहे है
    आपके प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा रहेगी

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  13. यदि आपके पास ठोस समाधान नहीं या फिर सच के साथ खड़े होने का माद्दा नहीं तो फिर किसी पर उंगली उठा कर आप भी उसी दलदल का हिस्सा नहीं ठहराए जाएंगे जिसका अंश श्री रवीश कुमार या आपके द्वारा चिन्हित कुछ नामी पत्रकारो में आप देख रहे है
    आपके प्रतिउत्तर की प्रतीक्षा रहेगी

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  14. में निजी तौर पर आपको नहीं जानता और ना रविश कुमार जी को ,लेकिन एक आदमी की हैसियत से बोल सकता हु की आप बी वही बोली बोल रहे है जो पटियाला हाउस कोर्ट में काले कोट पहने वाले कर रहे थे, आपकी बात पढ़ी थोरा अजीब लगा और दुःख हुआ की नफरत के हालत में आप जैसे पढ़े लिखे लोग निजी टिपण्णी बी नहीं करने से नहीं हिचकते - आप में और नहीं पढ़े लिखे में हमे कोई फर्क नज़र नहीं आया
    pranoy रॉय इशू पर
    कौन नहीं है नौकर - सरकारी हो या प्राइवेट बॉस की सब सुनता है सुनना पढता है ,लेकिन एक प्राइवेट कंपनी में प्रतिभा को पहचान कर कंपनी को आगे बढ़ने की दायित्व दी जाती है - वोह विस्वास और भरोसा किसी को रविश कुमार जी में दिखा थो आपको मान्यवर दर्द हो गया पेट में

    सबसे जरुरी बात - आप विश्लेषण नहीं कर रहे थे इस ब्लॉग के माध्यम से आप अपने को चमकाना चाहते है रविश कुमार जी के माध्यम से तभी आपने इतने घटिया सब्दो का प्रयोग किया वैसे आपकी लेखनी पढ़कर येह एहसास हुआ की में कोई "मस्तराम" की किताब पढ़ रहा हु(कॉलेज के वक़्त बहुत पढ़ा हु ) लेकिन उसमे मसाला के नाम पर आपने जाती दाल दिया , तब आपको एक बात बोलू बहुत साल पहले कहा जाता था की "जाती न देखो साधू की ", वोह साधू जब देगा आशीवाद देगा दुआ देगा , वर्तमान समय में आसाराम नित्यानद और राधे जैसे लोग बी है और गया के जिले में दलित गरीब बच्चो की पढाई का जिम्मा संभाले आज़ादी से पहले आये सिन्धी saksh बी है
    आज पत्रकार समाज के लिए बी येह है - एक अच्छा विचार देगा - लेकिन जैसा आपने खुद कहा दल्ला पत्रकार की में उनका नाम लेकर अपना शाम नहीं ख़राब करना चाहता

    आपका ब्लॉग वैसा ही जैसे किसी सत्ता धारी से गोधरा का सवाल कर दो थो 84 में चला जाता है - हो सकता है आप जानते होंगे ज्यादा , में कह सकता हु की आपसे ज्यादा समझता हु रविश जी को

    आपके विचार थो इस बात पर होना चाहए (वैसे छोठा मूह बड़ी बात ) JNU प्रकरण में जिस तरह से मीडिया रिपोर्टिंग की क्या वोह सही था या गलत, क्या आप जैसे पत्रकार क्या और आपके मित्र लोग सुधीर चौधरी अर्नब गोस्वामी दीपक चौरसिया रोहित सरदाना क्या येह नैतिक जिम्मेवारी के साथ उस उमर के घर में सुरक्षा के लिए रहेंगे - नहीं रहेंगे सिर्फ कहेंगे की येह एडमिनिस्ट्रेशन का काम है - लेकिन क्या आप लोगो ने सोचा एक बार बी की - 1 - अगर कल को इनमें से किसी की हत्या हो जाती है तो इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? आप लोगो ने सिर्फ किसी की हत्या और कुछ परिवारों को बरबाद करने की स्थिति पैदा नहीं की है
    2 - लोग उमर खालिद की बहन को रेप करने और उस पर एसिड अटैक की धमकी दे रहे हैं. उसे गद्दार की बहन कह रहे हैं. सोचिए ज़रा अगर ऐसा हुआ तो क्या भारतीये समाज की जिम्मेदारी नहीं होगी ?
    3-कन्हैया ने एक बार नहीं हज़ार बार कहा कि वो देश विरोधी नारों का समर्थन नहीं करता लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई, क्योंकि आपलोगों ने जो उम्माद फैलाया था वो NDA सरकार की लाइन पर था
    आपको इन विषय पर बोलना चाहए था लेकिन लगता है की ज़िन्दगी में आपको रविश कुमार जी से आगे बढ़ने की चाहत ने आपको हमेसा ब्लॉग लिखने को विवश किया और आप लिख बी रहे है इसलिये ताकि क्योकि आप अपने कर्म के प्रति इमानदार नहीं थे और आप उस जगह को भरना चाहते है जिसमे रविश कुमार जी फिट नहीं हो रहे है - आप तहे दिल से सुधीर चौधरी या रोहित सरदाना जी और दीपक चौरसिया की जगह लेना चाहते है -दिल से बोल रहा हु भले आप इनलोगों को गाली दे रहे हो पर आपकी "मन की बात" येह है
    वोह " ब्लैक फ्राइडे फॉर मीडिया " को आपने ध्यान से देखा नहीं , उस विडियो में सिक्ता देव जी बी है रविश कुमार की बी आवाजें है लेकिन शायद घमंड या आहंकर में आपको वोह सुनाई नहीं दिया
    जय हिन्द जय बिहार

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    1. Aap Mastram hi padhne ke layak ho

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    2. राकेश जी का बहुत बहुत शुक्रिया की उन्होंने मेरे विचार पढ़े , में आप लोग जैसे ब्लॉग नहीं लिख सकता , में थो एक आम आदमी हु , जो दिल ने महसूस किया वोह लिख दिया शयद वोह गुनाह हो आपकी नज़र में - थो माफ़ी

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    3. पाण्डेय जी के सारगर्भित आलेख पर लिखने की आपकी हैसियत नही है ...मस्तराम ही पढो अभी ..

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    4. This comment has been removed by the author.

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    5. BAHUT SAHI KUMAR RAJ VERDHAN JI! INKO PATA NAHI KAUN PADHTA HAI.. THHEK SOCHA APNE... MASTRAM HI HAIN YE... KABHI "LOK KAVI AB GATE NAHI PADHEN! nO 1 PORN HAI

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  15. पांडेजी का ब्लॉग घटिया है. रोहित वेमुला का असर छुपाने के लिये जेएनयु को हवा दि है .
    इस मे सभी विदेशी युरेशियन,मनुवादी, लेफ्ट और राईट , बिकाऊ मिडीया सब शामिल है क्यों पांडेजी ?

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    1. गन्दगी खानेवाली मक्खी को मधु विष के समान लगता है,
      मस्तराम पढ़नेवाले कटपीस को दयानद पाण्डे कैसे बर्दाश्त होंगे!!!

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  16. Journalist mean Agent between Government and idustrialist all journalist are blackmaker to the government and maker of money for ayaashi

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  17. Ravish kumar jaise log ektarpha reporting karte hain yeh to malum tha. lekin yeh nahin malum tha ki ye log itna niche gir sakte hain.bhagwan bachaye in dalalon se !

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  18. Vyaktigat dushmani + jealousy se preyrit post...

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  19. Aap kiske dalal hai dayanand ji? Jo ek Hi batkhare se sabko nape de rahe hain? Aap ka sarokar itne jhoothon aur besharmi se kyon bhara rahta hai ! Aur maje ki baat yah ki beech beech me yah bhi ki aap tamam badde badde logon ke khas bhi batate chalte hain khud ko... Maine to aapse jyada bada dalal aur jhutha makkar aaj tak nahi dekha...

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  20. हद है frustration की..पान्डे सबसे बडा देशभक्त है...

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  21. प्रस्तुत खौंझभरे आलेख के लिए दयानन्द जी धन्यवाद.

    विश्वसनीयता को तराज़ू के पलड़े पर रखना सबसे कठिन काम है. क्योंकि नापने के लिए दूसरे पलड़े पर जिस बटखरे की ज़रूरत होती है, वो भी किसी की इमेज़ ही होती है, जिसके अपने-अपने ’टेकर’ (आज की भाषा में भक्त) होते हैं. ऐसे में कई बटखरे आवश्यकता से कहींअधिक भारी हो सकते हैं. दयानन्दजी, इसी कारण आपका यह लेख कइयों को परेशान कर सकता है, कर रहा है, जो व्यक्तिपूजा और तथ्यपरक प्रशंसा का भेद नहीं जानते. आपके कहे से यह भी प्रतीत होता है कि आप इसकी परवाह भी नहीं करते. अच्छा करते हैं.

    जहाँ तक रवीश कुमार जी की बात है, उन पर जिम्मेदारी अधिक थी. मगर, वे शर्तिया उसका निर्वहन नहीं कर पाये हैं. इसके लिए चाहे उनके पास जितने तर्क हों. और यहीं आपने उनको पकड़ा है. यहीं मैं भी एक दर्शक-श्रोता-पाठक के तौर पर उन्हें समझने की कोशिश करता हूँ. दुख होता है.

    मैं रवीश का अनन्य प्रशंसक कभी नहीं रहा. लेकिन पढ़ता-सुनता अवश्य था. वस्तुतः जाने कैसी उम्मीद-सी हो आती थी. जब उनके कहे सुना करता था, लिखे को पढ़ा करता था. लेकिन फिर संयत हो जाता था कि नहीं बचके रहना है. भावुक क्षणों में हम जैसे आमजन अधिक वलनरेबल हुआ करते हैं.

    इतना कि एक फिल्म ’गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ पर उनकी समीक्षा ने मुझे चमत्कृत कर दिया था. अपनी कई महसूसी हुई अनभिव्यक्त बातों को जैसे कोई कहता-बोलता हुआ लगा था. लेकिन उसी आदमी को आज जब मुस्कुराते हुए, शातिराना वाक्य बोलते देखता हूँ, तो जुगुप्सा के भाव तारी हो जाते हैं. दुख होता है.

    हम जैसे लोग भावुकतातिरेक में मताये हुए लोग हैं जो अक्सर भाव-भावनाओं से ही नहीं, शब्दों और उनकी अदायग़ी से ही छल लिए जाते हैं. यही हमारी नियति है. आजतक. जाने आगे हम कितना सुधर पाते हैं.

    आज जब रवीशजी कहते हैं कि पत्रकार की अब कोई हैसियत नहीं रह गयी है, कोई आदमी धकिया कर आगे निकल जाता है, या, एक अदद कप चाय के लिए भी कोई नहीं पूछता, तो इस बात की आश्वस्ति होती है, कि ये आदमी अपने किये की स्वीकारोक्ति भी किस अंदाज़ और लहज़े में कर जाता है ! ग्लानि के स्वर भी ये आदमी फ़ैशननुमा सपाटबायानी में अभिव्यक्त कर सकता हैं !

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  22. बेहतरीन आलेख ...लेखनी के यही तेवर बनाये रखना सर ...

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  23. which one is the fair media .....सच सुने में डरते कुछ लोग। ......किसी के बारे में सच बोलथिया वो हमेशा उसका का दुश्मन होता है ये सचाई ही है

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  24. घटिया विश्लेषण

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  25. शत प्रतिशत सही विश्लेषण ....सर। एक ही शुर्किया में पूरा आर्टिकल पढ़ डाला । ऐसा लगा आपने मेरी सोच को अपनी लकीरों से धार दिया है।

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  26. बहुत खूब।
    बहुत ही सटिक विशलेष्ण.. पांडेय जी।

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