आतंकवादियों की फांसी पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन से गद्दारी करने वालों का यही बाकी निशां होगा
कभी वह दिन भी आएगा जब कश्मीर को पाकिस्तान में देखेंगे
जब पाकिस्तान की ही जमीं होगी जब पाकिस्तान का आसमां होगा
माफ़ कीजिए
मित्रों हमारे कामरेडों ने जे एन यू में अफजल गुरु की फांसी के दिन को कल
ऐसे ही मनाया । दिल्ली के प्रेस क्लब आफ़ इंडिया में भी जा कर इसी स्वर में धमकाया और मनाया । हालां कि जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी से क्षमा याचना के साथ यह शेर यहां इस कुपाठ में लिखना भी बहुत शर्म और ज़िल्लत का काम है । पर क्या करें इस शेर के मायने वामपंथियों के गढ़ जे एन यू ने बदल दिए हैं। अब तो इन क्रांतिकारियों ने इस शेर का मिसरा ऐसे ही , इसी अर्थ में लिख दिया है । जिसे यहां कुपाठ की तरह लिखना पड़ा वह जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी का मूल शेर इस तरह है :
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
कभी वह दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीं होगी जब अपना आसमां होगा
बहरहाल जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी की वह पूरी ग़ज़ल यहां पढ़िए और सोचिए कि हमें अपने देश और समाज को क्या बनाना था और क्या बना लिया है ।
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा
चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
कभी वह दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीं होगी जब अपना आसमां होगा
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
कभी वह दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीं होगी जब अपना आसमां होगा
यह तो तय है कि सरकार किसी भी की हो दलितों और मुसलमानों से बहुत भयभीत
रहती है। नरेंद्र मोदी सरकार भी। सरकार को जानना चाहिए कि देशद्रोही ,
देशद्रोही होता है दलित और मुसलमान नहीं । लेकिन जे एन यू और दिल्ली के
प्रेस क्लब में जिस तरह पाकिस्तान ज़िंदाबाद और अफजल गुरु और याकूब मेनन को
शहीद बताने की बेशर्मी की गई है , कश्मीर की आज़ादी के नारे लगे हैं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर वह विशुद्ध देशद्रोह है। लेकिन
असहिष्णुता के साइड इफेक्ट से डरी नरेंद्र मोदी सरकार नपुंसक हो गई है।
हैदराबाद के एक कायर रोहित फैक्टर से भी सरकार बेहद डरी हुई है। वह कायर भी
दलित और देशद्रोही था। बीते दिनों जब
सुब्रमण्यम स्वामी खुले आम कह रहे थे कि जे एन यू देशद्रोहियों का अड्डा बन
गया है तो वामपंथी मित्रों ने उन्हें भाजपाई , संघी और फासिस्ट कह कर उन
का मजाक उड़ाया था । लेकिन अब तो सिद्ध हो गया है कि जे एन यू सचमुच
देशद्रोह का अड्डा बन गया है । वामपंथी मित्रों कुछ शर्म कीजिए। देश के साथ
इतना बड़ा छल आप कैसे और क्यों कर रहे हैं ? जान से प्यारा पाकिस्तान और
इंडिया गो बैक का नारा आप लगा और सुन भी कैसे लेते हैं ? यहां तो यह नारा
सुन कर खून खौल जाता है । जो भी हो ग़लती तो सुप्रीम कोर्ट की है जो शक की बिना पर संसद पर हमलावर एस आर गिलानी
को रिहा कर दिया था । और सिक्वेंस भी देखिए कि यह गिलानी वाम पंथियों के
कंधे पर बैठ कर पहले जे एन यू और फिर प्रेस क्लब आफ इंडिया में पाकिस्तान
ज़िंदाबाद के नारे लगवा लेता है। जान से प्यारा पाकिस्तान , गो बैक इंडिया।
लड़ के लेंगे आज़ादी। हर घर से अफ़जल भेजेंगे। यह वामपंथी इतने जिद्दी और
बेशर्म हैं कि इतनी छीछालेदर होने के बावजूद अभी तक इन आतंकियों को कंधे से
उतारने को तैयार नहीं हैं।
जे एन यू के पूर्व छात्र मित्रो , आप सब देश के होनहार वीरवान लोग हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी के परवाने हैं । आप सब के मुंह क्यों सिल गए हैं । अफजल गुरु की फांसी की बरसी जिस तरह जे एन यू में मनाई गई जिस हर्षोल्लास के साथ मनाई गई उस पर कुछ तो मुह खोलिए। सीलन खोलिए । बखिया उधाड़ दीजिए। नरेंद्र मोदी को ही सही खुल कर दौड़ा लीजिए। लेकिन कुछ तो कीजिए। नरसिंघा राव की तरह या मनमोहन सिंह की तरह इस कदर चुप रहना गुड नहीं लगता।
जे एन यू के पूर्व छात्र मित्रो , आप सब देश के होनहार वीरवान लोग हैं। अभिव्यक्ति की आज़ादी के परवाने हैं । आप सब के मुंह क्यों सिल गए हैं । अफजल गुरु की फांसी की बरसी जिस तरह जे एन यू में मनाई गई जिस हर्षोल्लास के साथ मनाई गई उस पर कुछ तो मुह खोलिए। सीलन खोलिए । बखिया उधाड़ दीजिए। नरेंद्र मोदी को ही सही खुल कर दौड़ा लीजिए। लेकिन कुछ तो कीजिए। नरसिंघा राव की तरह या मनमोहन सिंह की तरह इस कदर चुप रहना गुड नहीं लगता।
बहरहाल जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी की वह पूरी ग़ज़ल यहां पढ़िए और सोचिए कि हमें अपने देश और समाज को क्या बनाना था और क्या बना लिया है ।
जगदंबा प्रसाद मिश्र हितैषी |
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा
चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा
शहीदों की चिताओं पर जुड़ेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा
कभी वह दिन भी आयेगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही जमीं होगी जब अपना आसमां होगा
No comments:
Post a Comment