ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
आज के दिन फिजिक्स तुम्हारी केमेस्ट्री हमारी है
बहुत कर चुका प्रपोज तुम को अब तुम्हारी बारी है
सूरज रोज निकलता है चांद निकलना रोज होता नहीं
इंतज़ार की सारी रात हमारी है खिली चांदनी तुम्हारी है
तुम यह कहो या वह कहो तुम्हारी चांदनी में जीता हूं
दुनिया चाहे जो कहे खरबूज मैं हूं और छुरी तुम्हारी है
पहले आंखों में बसी दिल में उतरी ज़िंदगी में बस गई
रोम-रोम में बस कर क्या सातो जनम की तैयारी है
रुंधती रहती हो हर क्षण मुझे किसी कुम्हार की तरह
गीली मिट्टी हूं जो चाहो बना लो यह दुनिया तुम्हारी है
बहुत संवार चुकी मुझ को आज खुद को संवारने दो
प्रपोज तुम करो स्वीकार करने दो मुझे मेरी बारी है
प्रधान मंत्री तुम गृह मंत्री तुम वित्त मंत्री भी तुम्हीं हो
शासन तुम्हारा ही है लेकिन आज राष्ट्रपति की बारी है
[ 8 फ़रवरी , 2016 ]
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