Monday 30 May 2022

लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

दयानंद पांडेय 

जितेंद्र पात्रो 

 

जितेंद्र पात्रो प्रलेक प्रकाशन से लोगों की 10 -20 किताबों का संस्करण ही नहीं छापते लोगों को भावनात्मक रुप से दोहन भी करते हैं। शोषण भी करते हैं। आर्थिक , दैहिक और भावनात्मक शोषण। मतलब न सधे तो गाली-गलौज , धमकी , और क़ानूनी नोटिस देना , अफवाह फैलाना , फर्जी सूचना दे कर लोगों को परेशान करना , साइबर सेल में मुक़दमा करना , 112 नंबर पर फोन कर पुलिस बुला कर लोगों को डराना आदि जितेंद्र पात्रो का नियमित शग़ल है। जाने कितनों से , कितनी बार। लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है। यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है।  किसी लेखक से लाख-दो लाख , करोड़-डेढ़ करोड़ रुपए हर्जाने का मांग लेना तो इस पात्रो का चुटकी बजाने का खेल है। नीचे की नोटिसों में खुद पढ़ लीजिए। पढ़ लीजिए कि जो इस की बीन पर नहीं नाचा , उसे कैसे तो हड़काता है। करोड़-डेढ़ करोड़ का इस का घाटा हो जाता है। दिलचस्प तो यह कि जिस का कोई मान नहीं , उस की कभी लाखों की , कभी करोड़ों की मानहानि हो जाती है। होती ही रहती है।  बिलो द बेल्ट आरोप लगाना , अपनी पत्नी को हथियार बनाना शग़ल है इस आदमी का। दूसरों की पत्नी पर भी बिलो डी बेल्ट आरोप लगाने में नो हिचक। राकेश भारती की पत्नी पर आरोप नीचे पढ़ सकते हैं। राकेश भारती की पत्नी यूक्रेनी हैं। कैंसर होने के नाम पर लोगों का आर्थिक दोहन भी करना आम बात है जितेंद्र पात्रो के लिए। 

पर अभी जितेंद्र पात्रो की चंपूगिरी में उद्धत लेखकों को यह बात समझ नहीं आएगी। साल-छ महीने में ज़रुर आ जाएगी। अभी इस लिए नहीं आएगी क्यों कि अभी तो वह लोगों को सब्जबाग दिखा कर अतिशय विनम्रता दिखा कर , चरणों में बैठ कर , अपना माथा किसी के चरणों में रख कर वह लोगों के दिल में अपनी जगह बनाने की कला का प्रदर्शन कर रहे होंगे। मैं भी जितेंद्र पात्रो के इसी अभिनय और ओढ़ी हुई विनम्रता के झांसे में आ गया था। वह अपना सिर मेरे चरणों में रख देता था। मैं ब्राह्मण आदमी करता भी भला तो क्या करता। पिघल गया। इस धूर्त के झांसे में आ गया। वसीम बरेलवी का वह शेर है न :

वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से 

मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता 

कैंसर बता कर किसी से लाखो रुपए का दोहन कर सकते हैं जितेंद्र पात्रो और फिर कैंसर की जगह एच बी - 1 सी  की रिपोर्ट भेज कर आंख में धूल झोंक सकते हैं। लोग जानते हैं कि एच बी - 1 सी  रिपोर्ट शुगर की रिपोर्ट होती है। ऐसी अनेक कहानियां हैं जितेंद्र पात्रो की। 

रायपुर में रहने वाले रमेश रिपु ने बताया है कि प्रलेक प्रकाशन से मेरी 4 किताबों का अनुबंध हुआ था। जिसमें से दो किताबें प्रकाशित हुई। रेड फायर और इश्क की हरी पत्तियां । रेड हंट और दादर पुल की हसीना किताब प्रकाशित नहीं हुई है । लेकिन प्रलेक  प्रकाशन के कैटलॉग में मेरी इन किताबों का जिक्र है। दिलचस्प यह भी है कि रेड हंट और दादर पुल की हसीना किताबों की पांडुलिपि प्रलेक प्रकाशन को नहीं दी गई है।

प्रयाग के रहने वाले एक डी टी पी आपरेटर ने दिल्ली में प्रलेक प्रकाशन का टाइपिंग का काम किया। 80 हज़ार रुपए का काम किया। लेकिन प्रलेक के जितेंद्र पात्रो ने एक पैसा नहीं दिया। दिल्ली छोड़ कर प्रयाग वापस चला गया वह डी पी टी आपरेटर। लेकिन फ़ोन कर , संदेश भेज पैसा मांगता रहा। फ़ोन पर जितेंद्र पात्रो ने उसे ब्लाक कर दिया। तो उस ने फेसबुक पर अपनी व्यथा लिखी। लिखा कि मेरा 80 हज़ार रुपए दे दीजिए। जितेंद्र पात्रो ने साइबर सेल में मुक़दमा लिखवा दिया। उस डी टी पी आपरेटर को पुलिस थाने ले आई। जितेंद्र पात्रो ने कहा कि तुम्हारे यह सब लिखने से मेरी मानहानि हुई है। मानहानि के एवज में मुझे दो लाख रुपए दो। पुलिस को भी जितेंद्र पात्रो ने पटा लिया था। 

पुलिस उस डी टी पी आपरेटर पर दबाव बनाती रही कि दो लाख रुपए देने के लिए लिखित आश्वासन दे दो। डी टी आपरटेर के मामा प्रयाग में वकील हैं। जब उन्हें यह सब पता चला तो वह पंद्रह-बीस वकीलों के साथ थाने पहुंच गए। जितेंद्र पात्रो और उस के साथ खड़ी पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। उस डी टी पी आपरेटर को पुलिस को छोड़ना पड़ गया। जितेंद्र पात्रो को बेइज़्ज़त हो कर लौटना पड़ा। लेकिन उस डी टी पी आपरेटर को उस की मेहनत का पैसा अभी तक नहीं मिला। ऐसे जाने कितने डी टी पी आपरेटर , पेज डिजाइन करने वाले , किताबों के कवर  बनाने वालों का पैसा जितेंद्र पात्रो ने दबा रखा है। जो भी मुंह खोलता है , उसे धमकी , गाली।  लीगल नोटिस और पुलिस का सामना करना पड़ता है। ऐसे कई लोगों के डिटेल मेरे पास सप्रमाण हैं। समय आने पर पूरा चार्ट प्रस्तुत करुंगा। लेकिन अपनी रचनाओं में क्रांति की मशाल जलाने वाले लेखकों की आंख यहां इस बिंदु पर मुद जाती है। 

फिर लेखकों के साथ भी जितेंद्र पात्रो का यह धमकी और लीगल नोटिस राग चलता रहता है। रीढ़हीन और कायर लेखक डर जाता है। धमकियों से। लीगल नोटिस देखते ही उस की पैंट गीली हो जाती है। चुप हो जाता है। सोचिए कि यह आदमी मुंबई में रहता है। इस का मुख्यालय मुंबई में है। पर लीगल नोटिस यह दिल्ली के पते वाले वकीलों से भिजवाता है। 

राकेश भारती बिहार के रहने वाले हैं। यूक्रेन में रहते हैं। जितेंद्र पात्रो ने उन्हें भी इसी धमकी और लीगल नोटिस के हथियार से डराना चाहा। लेकिन राकेश भारती ने जितेंद्र पात्रो की इस लीगल नोटिस और धमकी को ठेंगे पर ले लिया। आप देखिए जितेंद्र पात्रो की राकेश भारती को लीगल नोटिस और धमकी भरा पत्र। डेढ़ लाख रुपए की मांग भरी हेकड़ी। इतना ही नहीं , राकेश भारती के बहाने एक और लेखक को भी जितेंद्र पात्रो ने अर्दब में लेने की कोशिश की है। और भी लेखकों पर बेवकूफी के आरोप।  ऐसे सिलसिलों की बरसात है जितेंद्र पात्रो के खाते में। बस पढ़ते रहिए और इस प्री मानसून का आनंद लेते रहिए। 

मन करे तो खड़े होइए इस धूर्त प्रकाशक के खिलाफ। नहीं इस धूर्त की चंपूगिरी और अपनी पैंट गीली करने का विकल्प तो आप के पास सर्वदा ही उपस्थित है। यह आप का अपना विवेक है। पर अनायास ही मुझे मार्टिन नीमोलर की वे पंक्तियां याद आने लगीं जिन्हें शायद ब्रैख्त ने भी दुहराया है-

    जर्मनी में नाजी पहले-पहल

    कम्यूनिस्टों के लिए आए ....

    मैं चुप रहा/क्योंकि मैं कम्यूनिस्ट नहीं था

    फिर वे आए यहूदियों के लिए

    मैं फिर चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी भी नहीं था

    फिर वे ट्रेड-यूनियनों के लिए आए

    मैं फिर कुछ नहीं बोला, क्योंकि मैं तो ट्रेड-यूनियनी भी नहीं था

    फिर वे कैथोलिको के लिए आए

    मैं चूंकि प्रोटेस्टेंट था इसलिए इस बार भी चुप रहा

    और अब जब वे मेरे लिए आए

    तो किसी के लिए भी बोलने वाला बचा ही कौन था ?

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आदरणीय लेखक महोदय मृदुल कपिल जी,
प्रलेक प्रकाशन बिना अनुबंध के किसी की पुस्तक को प्रकाशित नहीं करता है. 

आपका संपर्क प्रलेक प्रकाशन से श्री राकेश शंकर भारती के माध्यम से हुआ था, इसलिए आपको पैसे देने की बात की पेशकश राकेश शंकर भारती ने किया था.
जिस तरह उन्होंने दूसरे लेखकों को पैसे दिलाने थे.
प्रलेक प्रकाशन ने आपको कभी भी पांडुलिपि देने के लिए मजबूर नहीं किया था, आपने स्वैच्छा से अपनी पांडुलिपि हमें दी थी.

राकेश शंकर भारती पर विश्वास करना प्रलेक प्रकाशन के लिए असंभव है, जो हर प्रकाशक के पास पांडुलिपि लेकर घूमते रहते हैं और अपने लिए साहित्य का सौदा करते रहते हैं.

हमें लगा की श्री राकेश शंकर भारती ने सारी बातें आपको बताई होगी, आपकी बातों से ऐसा प्रतित हो रहा है की आप भी इन बातों से अनजान हैं.
जैसा की हमने आपसे कहा जब आपसे हमारा कोई अनुबंध हुआ ही नहीं है तो आपकी पांडुलिपि इस्तेमाल करने का प्रश्न हि नहीं उठता है. 
आपको पहले हि बता दिया गया था कि हम आपको प्रकाशित नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हमें राकेश शंकर भारती की बातों पर विश्वास हि नहीं था. और राकेश जी  आपके लिए कभी ५१००० तो कभी २१००० माँगा था, जो हमें कतई मंज़ूर नहीं था.
पुस्तक प्रकाशित न करने की बात आपके साथ 2 महीने पहले फ़ोन पर हि हो गई थी. 

प्रलेक प्रकाशन एक पारदर्शी प्रकाशन है और रॉयल्टी समय पर देने में विश्वास रखता है, हमारे लेखक हमारे प्रकाशन से संतुस्ट है.

*राकेश शंकर भारती जी से अनुरोध है, बात का बतंगड़ न बनाते हुए, वे हमें उनपर एवं उनकी पुस्तक पर हुए सारे खर्च के पैसे देकर एवं जिन लेखकों को उन्होंने हमसे पैसे दिलाये हैं वे सब हमें लौटा कर  हमसे अपनी पांडुलिपि ले सकते हैं एवं कहीं और से प्रकाशित कर सकते हैं, क्योंकि भारती जी से मेल पर मिले अप्रूवल के अनुसार हि पुस्तक प्रकाशित हुआ था. ("मैं तेरे इंतजार में" - के संदर्भ में) अन्यथा जितनी पुस्तकें हमने प्रकाशित किया है, उनकी पूर्ण बिक्री होने तक हम उन्हें NOC नहीं देंगे.

मृदुल कपिल जी आपको cc में रखने का तात्पर्य यह था की आपकी पांडुलिपि हमें Rakesh Shankar Bharti जी के माध्यम से प्राप्त हुयी थी.
मित्रवर मृदुल कपिल जी आपके साथ हमारा कोई विवाद नहीं है, अन्यथा न लेते हुए, बातों को विराम दीजिए.

लेखक महोदय हम आपके उत्कृष्ट साहित्यिक भविष्य की कामना करते हैं.
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Team Legal,
Pralek Prakashan Pvt. Ltd.



On Thu, Sep 10, 2020 at 10:27 PM mridul pandey <pandey.mridul14@gmail.com> wrote:

 

  

 

Team Legal,

Pralek Prakashan Pvt. Ltd.

602, I/3, Global City, VIrar (West), Thane

Mumbai 

 

 मान्यवर !

    मुझें आपकी उपरोक्त मेल में अपना नाम देख कर अत्यंत हैरानी एवं छोभ हुआ हैं . जहां तक मैंने इसे पढ़ा और समझा ये आपके प्रतिष्ठित  प्रकाशन एवं लेखक श्री राकेश शंकर भारतीय के मध्य हुआ कोई व्यतिगत/व्यवसायिक विवाद हैं . जिस में मेरी न तो कोई भी व्यक्तिगत/व्यवसायिक भूमिका हैं और न ही  मैं इस विवाद का कोई पछ हूँ तो फिर इस विवाद के सन्दर्भ में मेरे नाम को उल्लेखित करने की क्या वजह हैं ..?

आप या  श्री राकेश शंकर भारतीय के बीच में मेरे या मेरे काम में सबंध में मेरी अनुपस्थिति एवं मेरी अनिभिज्ञता में क्या बात / डील हुयी ये आप दोनों लोगों के मध्य का विषय है  और न ही मैं इस सबंध में जानना चाहता हूँ .  और वैसे भी बगैर प्रमाण किसी भी बात पर सहज विश्वास करना उचित प्रतीत नहीं होता हैं .

अत: मैं आपके  प्रतिष्ठित  प्रकाशन एवं श्री राकेश शंकर भारतीय को स्पस्ट शब्दों में ये बता देना चाहता हूँ की भविष्य में  आप अपने वाद/विवाद में मेरे नाम का कोई सन्दर्भ या उपयोग न करें अन्यथा की स्थिति में मुझे विधिक कार्यवाही के लियें विवश होना पड़ेगा .

साथ ही मेरा आप से अनुरोध हैं की पूर्व में मेरे द्वारा आपको प्रेषित की गयी बीस कहनियों का आप कोई भी एवं किसी भी प्रकार का उपयोग बगैर मेरी सहमती के कदापि न करें . ये अनुचित एवं  गैर-क़ानूनी माना जायेगा .

प्रलेक प्रकाशन की  कोटिश: प्रगति की शुभकमानाओं सहित .

 

  रूठे सुजन मनाइएजो रूठे सौ बार.

रहिमन फिरि फिरि पोइएटूटे मुक्ता हार.”



मंगल, 8 सित॰ 2020 को 6:07 pm बजे को Pralek Prakashan <pralek.prakashan@gmail.com> ने लिखा:
आदरणीय लेखक महोदय, Rakesh Shankar Bharti

आपकी अनुमति से प्रलेक प्रकाशन ने आपका अपन्यास "मैं तेरे इंतजार में" 
को प्रकाशित किया थाI 
आपने अपने TRP के लिए तथा अपने प्रमोशन के लिए  प्रलेक प्रकाशन का इस्तेमाल कियाI  आपने अपना परिचय और पता भी हमें झूठा दिया और यह भी बात को छुपाया कि आप जेल में भी आप पर लगे आपराधिक मामले में जा चुके हैं. जो आपने खुद बाद में कबूला थाI 

आपने युक्रेन का पता न देकर हमें आपका पुराना पता दिया है जो गैरकानूनी हैI 

आपने हमें आपके मित्र लेखकों को पैसे देने के लिए मजबूर किया तथा उनकी नई पांडुलिपि दिलाने का वादा करके उन्हें हमसे पैसे भी दिलायेI 

आपने मृदुल कपिल जी के एडवांस रॉयल्टी के पैसों को आपने अपने खाते में ट्रान्सफर करने के लिए कहा था, जिसका हमने विरोध भी किया थाI इससे आपकी आपराधिक मनसा के हमें दर्शन हो गएI 
यही कारण था की जिसके कारण आदरणीय मृदुल कपिल जी के साथ हमारी बात नहीं बनीI 

"आदरणीय सुभाष अखिल जी" और "किन्नर गुरु माई मनीषा महंत जी" को आपने प्रलेक प्रकाशन से एडवांस रॉयल्टी दिलाई इस वादे के साथ कि आप इन्हें प्रलेक प्रकाशन से प्रकाशित करने के लिए हमें इनकी नाई पांडुलिपि मई,2020 में दिलाएंगे, 
परन्तु अब तक "माई मनीषा महंत जी" के किताब की पांडुलिपि हमें नहीं मिली. इनको एडवांस रोयल्टी दी जा चुकी हैI 
हमें आदरणीय सुभाष अखिल जी की पांडुलिपि मिल गई है और "माई मनीषा महंत" का कहना है कि उन्होंने लिखना छोड़ दिया हैI 
राकेश जी ये किस प्रकार का खेल आप प्रकाशकों के साथ खेलते हैं?

आपने हर चीज का अप्रूवल हमें दिया है, उसके पश्चात हमने आपकी किताब को Ebook और पेपरबेक में प्रकाशित किया थाI आपने स्वयं हर page की प्रूफरीडिंग किया है तथा करेक्शन भी किया हैI 

आपने पहले संस्करण के लिए अनुबंध की शर्तों को मेल द्वारा बदला था, वो भी बिना एडवांस रॉयल्टी के तथा बिना किसी अनुबंध के पहले संस्करण का सर्वाधिकार प्रिंट एवं डिजिटल हमें दिया थाI (via mail)

हमारे हर लेखक को फ़ोन करके आपने हमारे प्रकाशन और हमारे प्रकाशक महोदय (श्री जितेंद्र पात्रो जी) के विषय में झूठी बातें बोलकर बदनाम  किया है एवं अब भी आप यही कर रहे हैंI 
एक तरफ से आपने लेखकों की गुटबाज़ी करके हमें बदनाम किया तथा हमारा इस्तेमाल किया इसके गवाह आदरणीय नीलोत्पल रमेश जी, आदरणीय बिक्रम सिंह जी, आदरणीय मुक्ति शर्मा जी एवं आदरणीय महेंद्र भीष्म जी हैंI  

आपने श्री बिक्रम सिंह जी तथा श्री नीलोत्पल रमेश जी को फ़ोन करके आपको प्रलेक प्रकाशन से Rs.5000 रूपये दिलाने को कहा.(अनुबंध में एडवांस रॉयल्टी की कोई भी बात नहीं की गई हैI)
पैसे न मिलने के कारण आपने हमें बदनाम करने के लिए फेसबुक तथा रात में लेखकों को फ़ोन करने का मोर्चा खोल दिया एवं हमारे प्रकाशन की छवि को ख़राब करने की कोशिश कियाI आपने आपके द्वारा भेजी हुई मेल पर अनुबंध अप्रूवल की शर्तों को तोडा हैI  

आप हमेशा हमें आधी रात में आपकी धर्मपत्नी की तस्वीरों को भेजकर jpg एवं पोस्टर बनाने के लिए बोलते थे, कितने शर्म की बात है कि कोई लेखक इस हद तक गिरकर किसी प्रकाशक को इस काम के लिए भी मजबूर कर सकता हैI यह बड़े शर्म की बात हैI 
राकेश जी इस बजह से आपके और हमारे बीच संबंध बिगड़े हैंI 

कोई भी साहित्यकार अपनी धर्मपत्नी की तस्वीर किसी को आधी रात को तो छोडिये किसी कारण से भी किसी प्रकाशक को नहीं भेजता है. कितनी शर्म की बात है की आप अपने पुस्तक के प्रचार में एवं अपनी TRP के लिए अपनी धर्मपत्नी का भी इस्तेमाल करते हैंI 
यह भी एक बजह है आपके और हमारे संबंधों में खटास कीI 

आप आधी रात में हमें हि नहीं अनेक लेखकों और लेखीकाओं को फ़ोन करके हमारे बारे में अनाप-सनाप बोलते रहे हैंI 

कोई भी साहित्यकार, स्त्री लेखिकाओं को आधी रात में फ़ोन करके उन्हें परेशान करें और यह भी चाहे कि प्रलेक प्रकाशन के साथ उसके संबंध मधुर रहे यह कैसे मुमकिन है?
यह दुसरी वजह थी जिसके कारण आपके संबंध प्रलेक प्रकाशन के साथ ख़राब हुए हैंI 

आप साहित्य की खरीद बिक्री भी करते हैं और आपने आदरणीय मुक्ति शर्मा जी पर भी झूठे आरोप लगाये हैं. किसी स्त्री को बदनाम करने से पहले आपको 10 बार सोचना चाइयेI 

आपने आदरणीय महेंद्र भीष्म जी पर भी झुठे आरोप लगाया कि भीष्म जी अपनी सेक्रेटरी को पैसें देकर अपनी किताबें लिखवाते हैंI 
आपने एक बरिष्ठ साहित्यकार का अपमान किया हैI

आपने दिग्गज एवं महान साहित्यकारों को फ्रेम में सजाने की चीज बोलकर पुरे साहित्य जगत का अपमान किया हैI

आपने जो पांडुलिपि हमें प्रकाशित करने के लिए दिया वही पांडुलिपि आपने दुसरे प्रकाशकों को भी दिया जिसके गवाह भी हमारे पास हैI और अब भी आप दे रहे हैंI 
यह एक कानूनन अपराध हैI 

हम आपसे गुज़ारिश करते हैं कि आप पर खर्च हुए हमारे सारे पैसों का भुगतान  24 घंटों में आप हमें वापिस करें तथा आपकी किताब पर किये गए खर्च को आप हमें लौटाएंI जो कि करीब 1.5 लाख रूपये हैंI उसके पश्चात आप अपनी किताब को कहीं से भी प्रकाशित करने के लिए स्वतंत्र हैंI 

तथा आपने हमें बदनाम करने की कोशिश करके हमारा जो नुकसान किया है उसका हर्जाना 2 करोड़ रूपये हमें आप 24 घंटों में हमें देंI 

मामले को गंभीरता से लेकर आप शीघ्रता पूर्वक हमें भुगतान 24 घंटों के भीतर हमारे पैसों का भुगतान करेंI 
अन्यथा हम आप पर मानहानि का मुक़दमा करेंगे और साथ में क्रिमिनल केस के अंतर्गत FIR भी फाइल करेगेंI 


Team Legal,
Pralek Prakashan Pvt. Ltd.
602, I/3, Global City, VIrar (West), Thane
Mumbai - 401303.
Tell No. - +91 7021263557









कृपया इस लिंक को भी पढ़ें :


1 . कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर को ले कर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की झांसा कथा का जायजा 

2 .  प्रलेक के प्रताप का जखीरा और कीड़ों की तरह रेंगते रीढ़हीन लेखकों का कोर्निश बजाना देखिए 

3 . जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण 

4 . योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

5 . तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

6 . लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

7 . जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल 

8 . माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं 

9 . कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है






Sunday 29 May 2022

प्रेम और दुःख का मिला-जुला संगीत

दयानंद पांडेय 


कल्पना मनोरमा 

कुछ लोग कथा में कविता सा लिखते हैं। कल्पना मनोरमा कविता में कथा कहती हैं। कविता में कथा को पगते हुए , देखना हो तो कल्पना मनोरमा की कविताएं पढ़िए। कल्पना मनोरमा की कविताओं से गुज़रिए। कविता में कथा के तंतु वह ऐसे रोपती हैं जैसे बारिश में कोई भीगे और अपने प्रेम को याद करे। याद करे अपना प्रेम और अपनी प्रेम कथा में डूब जाए। प्रेम बरसने लगे। अबाध प्रेम। मनोरम प्रेम। झूम कर लिखती हैं कल्पना मनोरमा। कोमलता का नमक चखती उन की कविताएं मांसल भी हैं और दूब की तरह नरम भी। ओस की तरह छलकती हुई लेकिन पत्ते पर चमकती हुई टिकी हुई। ऐसे की ज़रा सा छूते ही लरज कर गिर जाएं और आप प्यासे रह जाएं। यह प्यास ही कल्पना मनोरमा की कविताओं में कोयल की तरह कूकती हुई गाती मिलती है। जैसे दुन्नो का प्रेम पथ रच रही हों और गा रही हों , दुन्नो की दारुण गाथा। पथरीले उरोजों का टटका बिंब रचती कल्पना मनोरमा की कविताएं दिखने में सादी लगती हैं पर हैं नहीं। गंभीर अर्थ लिए , महीन भाव-भंगिमा में औचक सौंदर्य का रथ लिए प्रेम के सुनसान पथ पर उपस्थित किसी चंचला नदी की तरह भौंचक कर देती हैं। कल्पना मनोरमा की कविताओं में नदी चुपचाप नहीं बहती। उछलती हुई , मचलती हुई , मछली की तरह कूदती हुई बहती है। प्रेम की इस पुलक में पपीते की देह पर कौआ की चोंच की महागाथा अनायास नहीं है। कविता में प्रेम की खटास और कपट की महागाथा भी है। कल्पना की कविता इसी तरह कथा का तार छूती हुई बताती है कि : 

बेटी खोलना चाहती है मुंह 

मां रख देती है बर्फ़ से भी ज़्यादा ठंडा 

अपना खुरदुरा हाथ 

और चंचल नदी के क़ैद होने की कथा का सांघातिक तनाव और इस तनाव की कथा अपने कठोरतम रुप में उपस्थित हो जाती है। कल्पना मनोरमा की कविताओं की संरचना और उस का पाठ किसी खांचे में निबद्ध नहीं है। तोड़-फोड़ बहुत है। ज़मीन की भी और जीवन की भी यह तोड़-फोड़ अपना पाठ ख़ुद तय करती है। जब वह लिखती हैं :

हम रहें न रहें इस धरती पर 

बनी रहेगी हवा , पानी और हंसी 

तो मन में एक गहरी आश्वस्ति भी जगाती हैं। कल्पना मनोरमा की कविताएं इसी अर्थ में यात्रा बन जाती हैं। एक अर्थ से दूसरे अर्थ तक ले जाने वाली यात्रा। कई बार अनुभव की यात्रा तक भी ले जाती हैं इस संग्रह की कविताएं। और लगता है कि अरे यह तो मेरी ही कविता है। बहुत भीतर तक उतरती हुई :

लौटने लगती है पृथ्वी 

पूरे आवेग के साथ जीवित लौट रहे लोगों के भीतर 

भूलना कविता का शीर्षक भले भूलना है पर यह कविता बहुत कुछ सहेजती हुई याद दिलाती मिलती है। इस कविता को पढ़ते समय कई बार लगता है कि इस तरह भूल कर भी याद करना हो सकता है। दुःख को ऐसे भी याद किया जा सकता है। साझा बनाया जा सकता है। 

सड़कें होती रहीं चंदन-चंदन 

बदलती रहीं सरकारें 

चैराहे करते रहे सभी की सलामती की दुआ 

द्वंद्व बहुत है कल्पना मनोरमा के यहां। इस द्वंद्व का केंद्र बिंदु स्त्री अस्मिता है। स्त्री के दुःख और दुःख के तार की अलगनी में पसरे हुए वस्त्र नहीं गुस्सा है , क्रोध है। इस दुःख में जैसे एक संगीत भी है। प्रेम और दुःख का मिला-जुला संगीत। प्रेम और दुःख में डूबे ,  सितार और सारंगी में डूबे हुए सुर की आवाजाही भी बहुत है। कहीं-कहीं गिटार का सा वेग भी है। इस दुःख और क्रोध की आग को अपने गीत-संग्रह कब तक सूरजमुखी बनें हम में वह पहले भी दहका चुकी हैं। ऐसे जैसे वह गीत रियाज रहे हों और यह कविता-संग्रह गायन की सार्वजनिक प्रस्तुति। रियासत की क्रूर सियासत में बिंध कर गुलाम देहों की यातना की तलाश माननीय आज़ादी के तंज में लिपटी कविता को आंटे की तरह गूंथना क्या किसी स्त्री के लिए ही मुमकिन होता है। कल्पना मनोरमा की कविता का यह दर्पण भी है लेकिन। कल्पना की कविता में एक विद्रोह भी है। सतत विद्रोह। बहुत आहिस्ता। जैसे किसी कंडे में छुपी हुई धधकती आग की तरह। कि छूते ही धधक जाए।  कोई मूंज , कोई सरपत , कोई पुआल मिलते ही लहक कर लपटों में तब्दील हो जाए। पत्थर का ढोलना में वह लिखती हैं :

तुम्हें लाज नहीं आती होगी 

अपने कृत्यों पर 

परंतु हमें दया आती है तुम्हारे ऊपर 

और तुम्हारे साथ बंधे अपने रिश्ते पर 

कल्पना मनोरमा की कविताएं पढ़ते हुए अचानक भवानी प्रसाद मिश्र की कहन याद आ जाती है। उन की बेधक सामर्थ्य याद आ जाती है। कल्पना मनोरमा जब कि भवानी प्रसाद मिश्र को दुहराती नहीं , अनुगमन नहीं करतीं उन की कविताओं की। न उन की परछाई बनती हैं उन की कविताएं। पर किसी बटुली में भात के अदहन सी मिलती हैं। सिर गर्म। अंगुलियां जिस की थाह ले सकें बिना जले। तुम उठो स्त्री /कि हम तुम्हारे साथ हैं। समुद्र का गर्वीला विस्तार और उन / तमाम पंछियों के उड़ने का हौसला सहेजती मनोरमा कविता के उस मनोरम नदी के बीच धार में ले जा कर अचानक छोड़ देती हैं। यात्राएं फिर होंगी जैसी कविता में अनायास छोड़ देती हैं। बेईमान पुरुषों वाली मानसिकता की पड़ताल करती हुई समय की पोटली खोल देती हैं। रिश्ते के धागों में बंधे पुरुष से पूछती हुई शोहदों की तरह क्यों झांकते हो/ हम स्त्रियों की आंखों में। संबंधों की सरहद लांघती हुए सवाल सुलगाती हुई :

गूगल पर बढ़ गई है ज़िम्मेदारी 

घर -गृहस्ती और विद्यालयों को 

संचालित करने की 

कोमल भावनाओं वाला इंसान 

पहन रहा है इस्पाती आवरण 

मौन के अंधेरे कोने में मुस्कुराना सीख लिया अकेले की यातना जब अपना चेहरा की इबारतों में यातना की दोपहर का पाठ कई बार सर्द कर देता है। लगता है जैसे अचानक कोई स्त्री जिसे प्रेम और मनुहार की सेज पर सोना था , भरी और कड़ी धूप में बर्फ़ की सिल्ली पर लिटा दी गई हो। जीवित ही। जिस बर्फ़ की सिल्ली पर लिटाई जाती हो मृत देह , उस पर जीवित स्त्री का लिटा दिया जाना ही कल्पना मनोरमा की कविताओं का दाह है , आग है और त्रासदी भी। सांघातिक तनाव का तंबू बिना किसी चीख़-पुकार के कल्पना मनोरमा की कविताओं में लेकिन बड़ी कोमलता के साथ दाखिल होता है :

लौट आई थीं तुम 

अपने दोनों हाथों में ले कर 

उस का घर जो तुम्हारा कभी था ही नहीं। 

बिना किसी नारे के , बिना किसी ललकार के , बिना किसी बवाल के बहुत आहिस्ता से कल्पना मनोरमा की कविताओं में एक चिंगारी फूटती है। और देखते ही देखते शोला बन कर भड़क जाती है। लपक कर लील जाती है सारी वर्जनाएं ,सारी फांस और दुरभि संधियां। वंचना को अर्चना नहीं बनाती कल्पना मनोरमा की कविताएं :

क्यों कि स्त्रियों की शोभा 

मौन में है 

मन चकरा उठा था उस का 

तो क्यों सिखाई जाती है भाषा 

मनुष्य को 

क्या स्त्री मनुष्य नहीं ?

किसी गिलहरी की मानिंद चोंच भर चुग्गा के चाव में चमकती इस संग्रह की कविताएं स्त्री मन का आकाश ही नहीं , स्त्री मन की धरती भी हैं। स्त्री अस्मिता और स्वाभिमान की चेतना का सरोवर रचती हैं। सागर सी गहराई में डूबी यह कविताएं अपना एक अलग स्वाद , अलग अंदाज़ और अनूठा भाष्य रचती हैं। कविता के वितान में एक नई  आहट हैं कल्पना मनोरमा की कविताएं। जो सुलगती , सिहरती , सकुचाती स्त्री के सुंदर संसार की तलाश करती हुई युद्धरत हैं। अपनी ही बात को थोड़ा और सुधार कर , दुहरा कर फिर से कहूं तो कविता में कथा को पगते हुए , स्त्री को भात की तरह रीझते हुए , आग में पकते और जलते हुए , देखना हो तो कल्पना मनोरमा की कविताएं पढ़िए। कल्पना मनोरमा की कविताओं से गुज़रिए। मैं बहुत धीरे से यह भी कहना चाहता हूं कि कल्पना मनोरमा की कविता में कल्पना कम मनोरमा ज़्यादा मिलती हैं। 

[ बांस भर टोकरी की भूमिका ]


कृति : बांस भर टोकरी

कवयित्री :  कल्पना मनोरमा 

प्रकाशक : वनिका पब्लिकेशन नई दिल्ली

मूल्य : 190/-


संपर्क :

1 -

5/7, डालीबाग आफ़िसर्स कालोनी,

लखनऊ- 226001

तथा 

2 -

टावर - 1 / 201 श्री राधा स्काई गार्डेंस 

सेक्टर 16 बी , ग्रेटर नोएडा वेस्ट - 201306 

 मोबाइल  9335233424

dayanand.pandey@yahoo.com










Friday 27 May 2022

ऐ अखिलेश , ऐ अखिलेश !

दयानंद पांडेय 


बीते सवा पांच सालों से सत्ता से दूर होने की हताशा में  अखिलेश यादव ने अपनी  अभद्रता , बदमिजाजी और अहंकार का जो बांस का खूंटा गाड़ा है , उस बांस के खूंटे पर दौड़ कर बैठने के उन के शौक़ ने उन्हें सांसत में डाल दिया है। यक़ीन मानिए कि जल्दी ही भ्रष्टाचार के भंवर में डूबते-उतराते अखिलेश यादव और उन के क़रीबियों पर ई डी , इनकम टैक्स और सी बी आई आदि के छापे बस पड़ना ही चाहते हैं। बस उत्तर प्रदेश का विधान सभा सत्र खत्म होने दीजिए। जिस छापे और कार्रवाई को मुलायम सिंह अपने तिकड़म और ओढ़ी हुई विनम्रता के छाते से कुछ बरसों से रोके हुए थे , वह छाता अब टूट गया है। टूट गया है , विधानसभा में अखिलेश के अभद्र और असंसदीय आचरण से। उत्तर प्रदेश के उप मुख्य मंत्री केशव मौर्य के साथ विधान सभा में तू-तकार की भाषा और दत्त-धत्त से जो संसदीय गरिमा घायल हुई है , वह तो है ही , भाजपा हाईकमान भी ख़ुद को घायल महसूस कर रहा है। केशव मौर्य को बहुत लोग पसंद नहीं करते। मैं भी नहीं पसंद करता। पर विधानसभा में अखिलेश यादव जिस तरह तू-तकार करते हुए केशव मौर्य के बाप तक पहुंच गए , वह बहुत ही गंभीर मामला है। बहुत ही आपत्तिजनक। वह समय दूर नहीं जब इसी उत्तर प्रदेश विधान सभा में कोई अखिलेश यादव को टोटी यादव या टोटी , टाइल नाम से संबोधित करेगा। और विधानसभा अध्यक्ष को इसे रिकार्ड से हटाने के लिए कहना पड़ेगा। सपा राज में यादववाद की दुर्गंध और गुंडा राज भी लोग कहां भूले हैं भला। हर थानेदार यादव , हर ठेकेदार यादव , हर प्राइज पोस्टिंग पर यादव अभी भी उत्तर प्रदेश की फिजा भूली नहीं है , टोटी यादव !

उत्तर प्रदेश विधान सभा ने सपाई गुंडों की गुंडई , मार-पीट और बहुत सारे अलोकतांत्रिक कार्य-व्यवहार देखे हैं। बारंबार देखे हैं। बसपा की मायावती ने चढ़ गुंडों की छाती पर , मुहर लगेगी हाथी पर , नारा अनायास नहीं दिया था। 2 जून , 1995 को लखनऊ में हुआ गेस्ट हाऊस कांड वस्तुतः मायावती की हत्या के लिए ही सपा ने अंजाम दिया था। 1997 में भी कल्याण सिंह के विश्वास मत के समय उत्तर प्रदेश विधान सभा में हुई भयानक हिंसा वस्तुतः फिर मायावती की पिटाई के लिए ही सपाइयों ने की थी। पर सर्वदा सतर्क रहने वाली मायावती समय रहते बच्चों की तरह बकैया-बकैया विधान सभा से भाग गई थीं। उस बार कई सपा विधायक कमर में चेन बांध कर आए थे। इस के पहले भी उत्तर प्रदेश विधान सभा में कई बार अप्रिय स्थितियां आती रही हैं। पर इस तरह कभी कोई पूर्व मुख्य मंत्री और नेता प्रतिपक्ष कभी भी किसी से इस तरह तू-तकार करते हुए किसी के बाप तक नहीं पहुंचा था। जैसे अभी अखिलेश यादव ने उप मुख्य मंत्री केशव मौर्य के साथ उत्तर प्रदेश विधान सभा में किया। यह और ऐसा तो अभी तक कभी नहीं हुआ था।  

बांस के खूंटे पर सर्वदा धधा कर बैठने की अखिलेश की अदा जब उत्तर प्रदेश विधान सभा में दिखी तो मुझे बिलकुल आश्चर्य नहीं हुआ। क्यों कि मैं तो शुरु ही से मानता हूं कि अखिलेश यादव और राहुल गांधी दोनों ही राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं। दोनों ही चांदी का चम्मच मुंह ले कर पैदा हुए हैं। राहुल गांधी की पैंट उतर चुकी है , अखिलेश यादव के पायजामे में उन का ही बांस का खूंटा निरंतर घाव पर घाव दे रहा है। रायबरेली और अमेठी में कभी भी सोनिया और राहुल के ख़िलाफ़ किसी भी चुनाव में उम्मीदवार न उतारने वाली सपा ने कांग्रेस से कपिल सिब्बल को आयात किया है तो कांग्रेस का दिल दुखाने के लिए नहीं किया है। बल्कि आज़म ख़ान सपा से किसी तरह न टूटें , इस की रोकथाम के लिए कपिल सिब्बल का ईगो मसाज़ किया है , अखिलेश यादव ने। गौरतलब है कि 27 महीने से जेल में सड़ रहे आज़म ख़ान को सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत कपिल सिब्बल ने ही दिलाई है। तो आज़म ख़ान को सपा के खूंटे से बांधे रखने के लिए ही कपिल सिब्बल को अखिलेश राज्य सभा भेजने का कार्ड खेल गए हैं। फिर यह कपिल सिब्बल कार्ड खेलने का दिमाग अखिलेश यादव का नहीं है , रामगोपाल यादव का है। रामगोपाल यादव की सपा में उपस्थिति अब शकुनि की तरह है। और अखिलेश यादव को मुलायम पूरी तरह दुर्योधन बना चुके हैं। 

ख़ैर , अब दिक़्क़त यह है कि रामगोपाल यादव या मुलायम सिंह यादव अखिलेश यादव को राजनीतिक सलाह दे सकते हैं। आदेश भी दे सकते हैं। पर विधान सभा के सदन में कब , क्या और कैसे रिएक्ट करना है , भी बता सकते हैं। लेकिन कुछ चीज़ें ,  कुछ तात्कालिक वाद-विवाद-संवाद तो तुरंत ही होते हैं। इस का सब से सफल और परिणामकारी उपाय तो यह होता है कि कम बोला जाए। चुप रहा जाए। अटल बिहारी वाजपेयी तो कहते थे चुप रहना भी एक कला है। यह वाकया तब का है जब राम जेठमलानी लखनऊ से संसदीय चुनाव लड़ने लखनऊ आए। कभी अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में क़ानून मंत्री रहे जेठमलानी लखनऊ से कांग्रेस के टिकट पर अटल जी के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ रहे थे। एक समय था कि बोफ़ोर्स काण्ड के समय जेठमलानी रोज राजीव गांधी से 5 सवाल पूछते थे। उसी बोफ़ोर्स की तर्ज पर जेठमलानी अटल जी से लखनऊ में रोज 5 सवाल पूछने लगे। कुछ समय बाद अटल जी जब लखनऊ आए तो पत्रकारों ने उन से जेठमलानी द्वारा पूछे गए सवालों के बाबत पूछा तो अटल जी ने एक लंबा पॉज लिया फिर अंगुली घुमाते हुए बोले , मेरे मित्र जेठमलानी को नहीं मालूम कि चुप रहना भी एक कला है। दूसरे दिन से जेठमलानी के सवाल समाप्त हो गए। 

बहुत बोलने का एक बड़ा उदाहरण लालू प्रसाद यादव हैं। लालू की दुर्गति सब के सामने है। जेल पर जेल। ज़मानत पर ज़मानत। सिलसिला है कि ख़त्म ही नहीं होता। सपा नेता आज़म ख़ान भी बहुत बोलने का ही शिकार हुए। 27 महीने बाद जेल से छूटने के बाद लगता है कि आज़म ख़ान ने अपने बोलने की बींमारी की कोई औषधि प्राप्त कर ली है। पहले सलीम जावेद के संवाद की तरह विषैले संवादों की झड़ी लगाए रहते थे। अब जेल से आने के बाद जैसे आज़म ख़ान की जुबान को लकवा मार गया है। विधान सभा में भी नहीं दिख रहे। जो भी हो लगता है , अखिलेश यादव अब लालू यादव और आज़म ख़ान की राह चल पड़े हैं। मुलायम और अखिलेश यादव के पूरे परिवार पर आय से अधिक अरबों रुपए के संपत्ति की जांच बरास्ता सी बी आई सुप्रीम कोर्ट में बरसों से लंबित है। यह बात सार्वजनिक है। अकेले लखनऊ में ही विक्रमादित्य मार्ग के 90 प्रतिशत बंगले मुलायम-अखिलेश परिवार के नाम हैं। राज्यपाल निवास राज भवन के सामने अरबों रुपए का विशाल बंगला डिंपल यादव के नाम है। जिस में एक अंतरराष्ट्रीय बैंक चल रहा है। किराए पर। सैफई , दिल्ली और मुंबई जैसी जगहों पर भी मुलायम-अखिलेश परिवार की अरबों की संपत्तियां बताई जाती हैं। क्या तो दूध बेच कर यह संपत्तियां बटोरी हैं। इत्र के नक़दी की दुर्गंध अलग है। 

अभी बीते विधान सभा चुनावों में इत्र की दुर्गंध में सने अरबों रुपए की नक़दी कन्नौज और कानपुर में सामने आई ही थी। अभी और आएगी। तब भी अखिलेश यादव इतना बोले कि सपा के एक विधान परिषद सदस्य दूसरे जैन भी चपेटे में आ गए। अब फिर विधान सभा और विधान सभा से बाहर अखिलेश बिना किसी तत्थ्य और तर्क के चपड़-चपड़ और तू-तकार की भाषा के लिए कुख्यात हो चले हैं। चुनाव के दौरान भी उन की अभद्र भाषा चर्चा के केंद्र में थी। ज़िला स्तर के पत्रकारों को अपने सामने ही पिटवा देने में निपुण अखिलेश ने बीते चुनाव में ऐ पुलिस, ऐ पुलिस ! की जुगाली की थी। बहुत से नेताओं समेत योगी तक के ख़िलाफ़ बिलो द बेल्ट टिप्पणियां करने के तमाम रिकार्ड बनाए थे अखिलेश यादव ने। जानने वाले जानते हैं कि अहंकार और अभद्रता का संसदीय राजनीति में कभी कोई स्थान नहीं रहा है। 

लेकिन अखिलेश यादव चूंकि राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं। अपने यादवी लंठई और अहंकार में गिरफ़्तार हो कर जद-बद बकते हुए दत्त-धत्त करने के अभ्यस्त हो चले हैं। इस करतब में वह यह भी भूल गए हैं कि जिन कामों को वह अपनी उपलब्धियों के रुप में बखान कर रहे हैं , उन में ज़्यादातर कामों में भ्रष्टाचार की जांच चल रही है। इन कामों से जुड़े कई इंजीनियर , अफ़सर दोषी पा लिए गए हैं। नौकरी से बाहर किए जा चुके हैं। जेल भेजे जा चुके हैं। विभिन्न अदालतों में मुक़दमे चल रहे हैं। तो उन मामलों की आंच अखिलेश यादव तक आने में क्या कई युग लगेंगे ? कब भ्रष्टाचार की वह आंच आ जाए अखिलेश यादव तक और इस आंच में उन का यादवी अहंकार पिघल कर क़ानूनी फंदों में उलझने लगे , यह भला वह नहीं जानते तो कौन जानता है। और जब क़ानूनी फंदा कसेगा तो क्या धत्त-दत्त और तू-तकार करने से वह फंदा टूट जाएगा ? या कि इस क़ानूनी फंदे से कपिल सिब्बल जैसे बदनाम वकील बचा ले जाएंगे ? 

याद कीजिए जब लालू यादव इसी तरह अभद्रता और फू-फा करते हुए क़ानूनी फंदों में लिपटते गए थे तो बड़ी उम्मीद से लालू ने राम जेठमलानी को अपनी पार्टी की तरफ से राज्य सभा में सदस्य बनवाया था। तो क्या जेठमलानी ने जेल जाने से लालू यादव को बचा लिया था ? अखिलेश यादव को जान लेना चाहिए कि आज़म ख़ान को 27 महीने की जेल के बाद सुप्रीम कोर्ट से ज़मानत दिलाने में सफल कपिल सिब्बल अब क़ानून की दुनिया में दगा हुआ कारतूस हैं। कपिल सिब्बल के तमाम फ़ेवरिट जस्टिस सुप्रीम कोर्ट से विदा हो चुके हैं। कुछ विदा होने की कतार में हैं। सेक्यूलरिज्म की कटार की धार अब कुंद हो चली है। कुल मिला कर यह कि सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल की दलाली के दिन का सूरज अब डूब रहा है। 

लेकिन अखिलेश यादव के सामने अभी राजनीतिक जीवन नहीं , न सही , पर अपना लंबा जीवन शेष है। तो लालू और आज़म ख़ान की तरह पकर-पकर और विषैले बोल , बोल कर क़ैदी जीवन जेल में बिताना है या अपने पिता मुलायम की तरह , अपनी बुआ मायावती की तरह चुप रह कर जेल के बाहर गोल्फ़ खेलते हुए , शाम की ' महफ़िल ' सजाते रहना है। यह अखिलेश यादव को ही सोचना है। क्यों कि उन के ढेर सारे आर्थिक घोटाले उन को जेल तक ले जाने की राह देख रहे हैं। एक आर्थिक सत्य यह है कि मायावती और अखिलेश यादव ने विकास के नाम पर जितने काम किए , सिर्फ़ अपनी तिजोरी भरने के लिए किए। मायावती के बनवाए विभिन्न दलित स्मारक , पार्क हों या यमुना एक्सप्रेस या नोएडा और ग्रेटर नोएडा का धुआंधार विस्तार , सारा कुछ मायावती ने अपनी तिजोरी भरने के लिए किया। सतीश मिश्रा जैसे निपुण वकील को सिर पर इसी लिए बिठा कर रखा है कि वह उन्हें जेल जाने से बचाए रहें। ठीक इसी तरह अखिलेश यादव ने भी ताज एक्सप्रेस वे से लगायत , जे पी सेंटर , गोमती रिवर फ्रंट , लोक भवन , सूचना भवन आदि काम अपनी तिजोरी भरने के लिए , इत्र में बहकने के लिए ही किए। लोक कल्याण के लिए नहीं। 

इसी लिए केशव मौर्य ने कहा कि क्या सैफई की ज़मीन बेच कर यह सब अखिलेश यादव ने किया है ? केशव मौर्य को भी भ्रष्टाचार की गंगा में डुबकी मारने तो आता है पर संसदीय भाषा में कैसे किसी पर भरपूर प्रहार किया जाता है , वह नहीं जानते। केशव मौर्य को अटल , आडवाणी , अरुण जेटली , सुषमा स्वराज जैसे अपनी ही पार्टी के नेताओं की लोकसभा की पुरानी क्लिपिंग देख कर यह कला सीखनी चाहिए। कल्याण सिंह और योगी की वक्तृता से भी प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि कभी एक हाथ में माला , एक हाथ में भाला का उद्घोष करने वाले योगी आदित्यनाथ ने ख़ुद को कितना तो बदल लिया है। अब वह संसदीय वक्तृता में कितने तो परिपक्व और निपुण हो चुके हैं। कितनी सरलता और कितनी तैयारी से बहुत नरम हो कर मृदु हो कर अब अपनी बात कहते हैं। 

लगता ही नहीं कि यह वही आदमी है जो कभी आज़मगढ़ की सभा में खड़ा हो कर एक हाथ में माला , एक हाथ में भाला का उद्घोष करता था। योगी के भाषण में अब शेर भी कोट होने लगे हैं। क्रोध और आग की जगह उदारता और जल का तत्व दिखता है योगी में। इस तत्व को पाने के लिए आदमी का निजी जीवन में ईमानदार होना भी बहुत ज़रुरी है। सार्वजनिक जीवन में नैतिकता और शुचिता भी अनिवार्य तत्व है। तब जा कर यह नरमी , यह उदारता , यह गंगा जैसी कलकल मिलती है आदमी को। योगी अडिग तो होता ही है , अहंकार से भी दूर रहता है। मोह और लोभ से भी दूर होता है। केशव मौर्या को यह सब सीखना अभी शेष है। जिस दिन योगी के खिलाफ दुरभि-संधियां रचना छोड़ कर यह सब सीख जाएंगे , केशव मौर्य , तब कोई अखिलेश यादव उन से तू-तकार नहीं करेगा। उन के पिता तक पहुंचने की हिम्मत नहीं होगी किसी अखिलेश यादव की। बाक़ी अखिलेश यादव का क्या है , वह तो गुजरात के दो गधे भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह को कह चुके हैं। 

आज देखा कि अखिलेश यादव लोहिया गान गा रहे थे। मैं जानता हूं कि अखिलेश यादव लोहिया का लो भी नहीं जानते। लोहिया और उन के विचारों को जानना तो बहुत दूर की कौड़ी है। लोहिया को तो अखिलेश के पिता मुलायम भी ठीक से नहीं जानते। लोहिया ग़ैर कांग्रेसवाद की राजनीतिक लड़ाई लड़ते थे। संचय के खिलाफ थे। पर मुलायम और अखिलेश बारंबार कांग्रेस शरणम गच्छामि हुए हैं। लोहिया नाम का निरंतर जाप करने वाले मुलायम , शिवपाल और अखिलेश तीनों ही लोहिया के संचय के ख़िलाफ़ होने की बात को लात मार करअरबों की संपत्ति के मालिक हैं। लोहिया के नाम पर यह तीनों ही गाली हैं। लोहिया की सप्तक्रांति का निरंतर माखौल उड़ाते हैं। पिता-पुत्र दोनों। लोहिया कहते थे कि राम,कृष्ण और शिव भारत में पूर्णता के तीन महान स्वप्न हैं। मुलायम और अखिलेश का राम,कृष्ण और शिव से क्या नाता है , सब लोग जानते हैं। जो भी हो अखिलेश और मुलायम  के भ्रष्टाचार की कहानियां , लोहिया गान के पीछे छुपने वाली नहीं हैं। इस लिए भी कि भाजपा ने अखिलेश के रावण को तीर मारने के लिए शिवपाल के रुप में एक विभीषण भी पा लिया है। यह बात अब हर कोई जानता है।  

क्या अखिलेश यादव इतना भी नहीं जानते ? या तभी जानेंगे जब कोई उन से भी कहेगा , ऐ अखिलेश , ऐ अखिलेश ! क्या तभी जानेंगे कि किसी का अपमान करना ऐसे भी होता है। बांस के खूंटे पर धधा कर ऐसे भी बैठा जाता है। जैसे अखिलेश यादव इन दिनों निरंतर बांस के खूंटे पर बैठने के अभ्यस्त हो चले हैं। बिना इस का परिणाम जाने। परिणाम मिलता भी ज़रुर होगा। पर ऐसे परिणाम भला बताता भी कौन है। अखिलेश यादव भी नहीं बताते। कभी नहीं बताएंगे। एक समय आएगा कि यह परिणाम सब को साफ़-साफ़ दिखेगा। क्यों कि यह ऐसा परिणाम है , इस परिणाम में मिला ऐसा घाव है जो बहुत दिनों तक छुपाए , छुपता नहीं है। जगजाहिर हो ही जाता है। जैसे लालू यादव का हो चुका है , अखिलेश यादव का भी होगा। टोटी यादव का धब्बा अभी धुला कहां है। धुल गया हो तो कोई बताए भी।


Sunday 22 May 2022

तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

दयानंद पांडेय 


रस्सी जल गई , पर ऐंठ नहीं गई वाली कहावत चरितार्थ करने वाले जितेंद्र पात्रो की धूर्तता का एक और जायजा लें उन की इस पोस्ट में। लखनऊ के हज़रतगंज थाने के हवालात में 30 घंटे गुज़ार कर माफ़ीनामा दे कर , थानाध्यक्ष और चौकी इंचार्ज को आरती दे कर इन में इतनी अकड़ आ गई है कि बता रहे हैं कि अगली बार यह मेरे ख़िलाफ़ साइबर सेल में एफ आई आर दर्ज करवा कर पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे। जनाब मुझ पर ही फ्राड खेला खेलने का आरोप लगा रहे हैं। बता रहे हैं कि हाथी चले बाज़ार , कुत्ते भौंके हज़ार ! यह भी बता रहे हैं कि मेरे 50 चमचे इन्हें धमकी दे चुके हैं। सब को यह भी बताते घूमते फिर रहे हैं कि कोई माफ़ीनामा नहीं दिया है। न वह कहीं किसी थाने में बंद हुए। यह मेरा माफ़ीनामा नहीं है। तो फ़्राडाचार्य महोदय , अपनी राइटिंग में कुछ लिख कर पोस्ट कर साबित कर दीजिए कि आप की यह राइटिंग नहीं है। या फिर इस माफीनामे को ले कर किसी कोर्ट में मुक़दमा कर दीजिए कि यह मेरा माफ़ीनामा नहीं है। यह खुली चुनौती है। फिर मेरे पास एक आडियो भी है जिस में जितेंद्र पात्रो अपने माफीनामे को स्वीकार कर रहे हैं। लेकिन किन्हीं कारणों से उसे सार्वजनिक नहीं कर रहा। 

बहरहाल मेरे पास तो एक भी कोई चमचा नहीं है। और जो कुछ मेरे मित्र और शुभचिंतक हैं , उन में से भी कोई एक ऐसा नहीं है जो धमकी आदि देने जैसा कोई कुकृत्य कर सकते हैं। गाली-गलौज कर सकें। करना भी नहीं चाहिए। जितेंद्र पात्रो को मेरी तरफ से धमकी देने वालों का नाम सार्वजनिक ज़रुर करना चाहिए। नहीं यह कमीनापन चैप्टर क्लोज कर लेना चाहिए। लेकिन थानाध्यक्ष हज़रतगंज को आरती देने के बाद क्या इतनी ऊर्जा मिल जाती है कि आदमी इस कदर मदमस्त हो जाता है। कि आदमी कुछ भी बकने लगता है। खुद को हाथी , दूसरों को कुत्ता समझने लगता है। जितेंद्र पात्रो और उन की पत्नी जयश्री पात्रो का नंबर पुन: प्रस्तुत है। आप चाहें तो इन लोगों से पूछ सकते हैं कि ऐसा कैसे कर लेते हैं आप लोग ?

जितेंद्र पात्रो 

9833402902 

7021263557 

7977237995 

जयश्री पात्रो 

7021203557 

और हां , ए डी जी , 112 नंबर , थानाध्यक्ष हज़रतगंज , लखनऊ और चौकी इंचार्ज डालीबाग , लखनऊ  का भी नंबर यहां प्रस्तुत है। आप इन से पूछ सकते हैं कि किसी जालसाज को इतनी ऊर्जा कैसे दे देते हैं , आप लोग कि आदमी क़ानून की आंख में धूल झोंकने में इतना निपुण हो जाता है कि एक ग़लती के लिए लिखित माफीनामा लिख कर दूसरे अपराध की धमकी सरे आम देने लगता है। पूछिए ज़रुर। डरिए बिलकुल नहीं। क्यों कि मैं हूं न , किसी का कुछ भी नहीं होने दूंगा। सो इन्हें नंगा कीजिए। नंगा कीजिए कि क़ानून की मर्यादा और आदमी की इज्ज़त करना सीखें। अपनी शपथ याद करें। मनुष्यता , नागरिकता और सेवा में यक़ीन करना सीखें। आरती लेना बंद करें। 

ए के सिंह , ए डी जी , 112 नंबर 

9454400133 

श्याम शुक्ला , थानाध्यक्ष , हज़रतगंज , लखनऊ 

7007649991 

आदिल , चौकी इंचार्ज , डालीबाग , लखनऊ 

8127235555

जितेंद्र पात्रो का माफ़ीनामा 

कृपया इस लिंक को भी पढ़ें :


1 . कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर को ले कर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की झांसा कथा का जायजा 

2 .  प्रलेक के प्रताप का जखीरा और कीड़ों की तरह रेंगते रीढ़हीन लेखकों का कोर्निश बजाना देखिए 

3 . जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण 

4 . योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

5 . तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

6 . लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

7 . जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल 

8 . माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं 

9 . कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है

Saturday 21 May 2022

योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

दयानंद पांडेय 



पुलिस की सर्वोत्तम सेवा 112 का कुछ लोग दुरुपयोग ऐसे भी करते हैं 

और पकड़े जाते हैं तो माफ़ी मांग कर अपराध से बरी हो जाते हैं !


उत्तर प्रदेश पुलिस की सर्वोत्तम सेवा 112 का कुछ लोग दुरुपयोग भी ख़ूब करते हैं। जैसे कि मुंबई से आए प्रलेक प्रकाशन के प्रमुख जितेंद्र पात्रो ने किया। मेरे साथ किया। आप मित्र जानते ही हैं कि किताबों और किताबों की रायल्टी और प्रकाशन का मसला बीते दो-तीन महीने से सोशल मीडिया पर मैं निरंतर लिख रहा हूं। ब्लॉग , फ़ेसबुक , और वाट्सअप पर यह तीखा विवाद कल गंभीर मोड़ पर तब आ गया जब जितेंद्र पात्रो ने आधी रात बारह बजे 112 नंबर को आन लाइन शिकायत की कि दयानंद पांडेय उन की पत्नी जयश्री को अश्लील संदेश भेज रहे हैं। 112 की पुलिस तुरंत सक्रिय हुई। और जितेंद्र पात्रो के साथ लखनऊ के मेरे डालीबाग़ स्थित घर पहुंच गई। मुझ से   से तुरंत हज़रतगंज थाने चलने को कहा। कहा कि वहीं पूछताछ की जाएगी। मैं ने कहा कि वह अश्लील संदेश मुझे  दिखाया जाए। 

पर न वह संदेश न पुलिस दिखा पाई , न जितेंद्र पात्रो। पुलिस ने कहा कि थाने चल कर आप के फ़ोन की जांच कर पता किया जाएगा। मैं ने कहा या तो उक्त संदेश अभी दिखाया जाए नहीं , पुलिस सुबह आए। पुलिस लेकिन अड़ी रही। फिर मैं ने कहा कि रात बारह-एक बजे इस तरह किसी के घर आना उचित नहीं है। मैं कोई क्रिमिनल नहीं हूं , न हत्यारा हूं। या फिर सुबह आइए। मैं भाग नहीं रहा। लेकिन पुलिस और जितेंद्र पात्रो अड़े रहे। जितेंद्र पात्रो पुलिस से मेरी  बातचीत का वीडियो बनाते रहे। जिसे अब वह सब को बांट कर वायरल कर रहे हैं। और जब पुलिस पूरी तरह अड़ गई कि थाने चलना ही है तो मैं ने कहा कि फिर मुझे वकील बुलाने का समय दीजिए। वकील को बुला लेता हूं , फिर आप के साथ चलता हूं। यह कह कर मैं ने घर का दरवाज़ा बंद कर लिया। 

दरवाज़ा बंद कर कई वरिष्ठ वकीलों को फ़ोन मिलाया। पर किसी का फ़ोन नहीं उठा। कुछ पत्रकार नेताओं का फ़ोन मिलाया। पर किसी का फ़ोन नहीं उठा। रात एक बजे फोन उठने का कोई मतलब भी नहीं था। सब लोग सो गए थे। फिर मैं ने एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी को फ़ोन मिलाया। तीन-चार बार मिलाने पर रात एक -डेढ़ बजे के बीच उक्त प्रशासनिक अधिकारी ने फ़ोन रिसीव कर लिया। मैं ने उन को सारी बात विस्तार से बताई। उक्त वरिष्ठ अधिकारी तुरंत सक्रिय हुए। दस मिनट में ही हज़रतगंज के थानाध्यक्ष श्याम शुक्ला का फ़ोन आया और कहा कि हज़रतगंज से तो कोई पुलिस नहीं गई है। पर उस पुलिस पार्टी को रोके रखिए , मैं खुद आ रहा हूं। दस मिनट में थानाध्यक्ष श्याम शुक्ला आ गए। और जितेंद्र पात्रो से पूछताछ कर उन्हें तुरंत एक पुलिस पार्टी के साथ हज़रतगंज थाने भेज दिया। फर्स्ट फ्लोर पर मेरे घर आए। 112 नंबर की एक महिला सदस्य और डालीबाग चौकी इंचार्ज  आदिल के साथ। जितेंद्र पात्रो और 112 नंबर की पुलिस टीम के कृत्य पर खेद व्यक्त किया और कहा कि जितेंद्र पात्रो को 107 / 116 / 151 आदि सुसंगत धाराओं के साथ बुक कर कल जेल भेज दूंगा। चाय पी और फिर चले गए। 

गौरतलब है कि उपन्यास , कहानी , संस्मरण , लेख आदि की मेरी कोई 70 से अधिक किताबें प्रकाशित हैं। दो किताबें बीते साल प्रलेक प्रकाशन के जितेंद्र पात्रो ने भी छापी हैं। फिर मैं ने प्रलेक प्रकाशन के साथ कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर की योजना बनाई। लेकिन जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन ने इन कथा-संकलनों में शामिल कहानीकारों को किताब की दो प्रति और मानदेय देने से इंकार कर दिया तो मैं ने कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर की योजना प्रलेक प्रकाशन से अलग कर ली और अपने ब्लॉग सरोकारनामा पर कथा-लखनऊ के 15 खंड और कथा-गोरखपुर के 8 खंड प्रकाशित कर दिए। साथ ही दिल्ली के एक बड़े प्रकाशक से प्रिंट संस्करण का अनुबंध कर लिया। गौरतलब है कि कथा-लखनऊ में कुल 178 कहानियां और कथा-गोरखपुर में कुल 76 कहानियां संकलित हैं। इस ऐतिहासिक और अविस्मरणीय काम को जितेंद्र पात्रो की क्षुद्र बुद्धि समझ नहीं पाई। मुर्गी मार कर अंडा खाने के अभ्यस्त जितेंद्र पात्रो की चलती तो कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर की योजना का गर्भपात हो गया होता। पर सुखकर यह है कि अब वह अपने शानदार रुप में अपने पूरे वैभव के साथ उपस्थित है। लेकिन 10-20 किताबों का संस्करण छापने वाले , अपनी पत्नी को हथियार बना कर क्षुद्रता करने वाले जितेंद्र पात्रो को इस का एहसास भी नहीं है। 


ज़िक्र ज़रुरी है कि जितेंद्र पात्रो मुंबई में रहते हैं और प्रलेक प्रकाशन का दफ्तर भी वहीं है। पर जितेंद्र पात्रो अफसरों की दलाली करने के लिए हर महीने लखनऊ आते रहते हैं। विभिन्न अफसरों और उन की पत्नियों की पुस्तकें प्रकाशित करने के नाम पर लखनऊ के सत्ता गलियारों में देखे जाते हैं। बहुत से अधेड़ और वृद्ध लेखकों से लाखो रुपए किताब छापने के नाम पर दबा लिए हैं। संबंधित लेखकों का न फोन उठाते हैं , न किताब छापते हैं , न कोई जवाब देते हैं। प्रलेक प्रकाशन की यह और ऐसी अन्य धांधली का पर्दाफाश मैं लगातार अपने ब्लॉग सरोकारनामा , फेसबुक और वाट्सअप पर कर रहा हूं। 

बीते 7 अप्रैल , 2022 से ले कर अब तक दर्जन भर लेख लिख कर मैं ने प्रलेक प्रकाशन के जितेंद्र पात्रो पर आरोप लगाया है कि वह प्रकाशन की आड़ में नंबर दो का धंधा कर रहे हैं। मनी लांड्रिंग का भी शक़ जताते हुए  मैं ने कल के लेख में प्रलेक प्रकाशन और जितेंद्र पात्रो के पैन नंबर और विभिन्न बैंक खातों का विवरण परोसते हुए सवाल उठाया था कि कोरोना काल के डेढ़ साल में ही कैसे प्रलेक प्रकाशन ने चार सौ किताबें प्रकाशित कर दीं ? जी एस टी नंबर , इनकम टैक्स , टर्नओवर आदि के विवरण पूछ लिए लेख में। तो प्रलेक प्रकाशन के जितेंद्र पात्रो ने बौखला कर 112 पर  पत्नी को अश्लील संदेश भेजने की झूठी शिकायत दर्ज कर मुझ को फर्जी ढंग से फंसाने की साज़िश रच दी। सोचिए कि कितना गिरा हुआ और निकृष्ट आदमी है यह जितेंद्र पात्रो कि अपनी छुद्रता और स्वार्थ में अपनी पत्नी को भी हथियार बना लेता है। चार महीने पहले तक यह व्यक्ति मुझे पिता तुल्य बताता नहीं थकता था तो इस की पत्नी जयश्री भी मेरी बेटी हुई। पर यह नीच आदमी कल झूठा आरोप लगा कर बता रहा था कि मैं इस की पत्नी को अश्लील संदेश भेजा है। इतना गिरा हुआ , नीच और अधम आदमी पहली बार मेरी ज़िंदगी में मिला है। 

अगर उक्त वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने आधी रात को मेरी मदद न की होती तो सोचिए कि भला जितेंद्र पात्रो ने अपने काले धन के बल पर क्या गुल खिलाया होता। अब तो अपने इस कृत्य पर जितेंद्र पात्रो ने थानाध्यक्ष से लिखित माफ़ी मांग ली है। और लिखा है कि इस की पुनरावृत्ति नहीं करुंगा। मैं ने थानाध्यक्ष श्याम शुक्ल से इस बाबत जब पूछा कि आप तो इसे जेल भेजने की बात रात कह रहे थे। पर यह तो आप ने जितेंद्र पात्रो के माफ़ीनामे पर ही उसे छोड़ दिया तो वह कहने लगे रात भर थाने में बैठा रहा वह। फिर उन्हों ने चौकी इंचार्ज आदिल पर बात टाल दी। चौकी इंचार्ज आदिल से पूछा तो वह बोले , जैसा एस ओ साहब ने कहा , वैसे ही किया। पूछा कि एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी का निर्देश आप लोग टाल गए तो बाक़ी का क्या करते होंगे भला ! दोनों चुप लगा गए। 

अभी भी जिन मित्रों को लगता है कि जितेंद्र पात्रो और उन की पत्नी जयश्री पात्रो का पक्ष जानना चाहिए तो इन दोनों का नंबर यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। इन का भी पक्ष जानिए और इन से भी सवाल पूछिए कि उस मेसेज में क्या था ? मेसेज मिलने का प्रमाण क्या है। सप्रमाण , तर्क और तथ्य के साथ अपनी बात रखें। 

जितेंद्र पात्रो 

9833402902 

7021263557 

7977237995 

जयश्री पात्रो 

7021203557 

सर्वोत्तम सेवा 112 के प्रमुख ए के सिंह से भी पूछिए कि 112 नंबर के लोग कब से बिकाऊ हो गए और कि आधी रात किसी शरीफ़ सीनियर सिटीजन के घर जा कर अपमानित करने का अधिकार किस क़ानून ने दे दिया है उन्हें। ए के सिंह का नंबर है :

ए के सिंह , ए डी जी , 112 नंबर 

9454400133 

प्रेमचंद ने लिखा है कि न्याय भी लक्ष्मी की दासी है। अगर आज भी प्रेमचंद होते तो शायद लिखते कि न्याय और पुलिस दोनों ही लक्ष्मी की दासी है। जिसे जितेंद्र पात्रो जैसे लोग जब चाहे , जैसे चाहें अपना पलड़ा भारी कर लेते हैं। और कि जिन लोगों को लगता है कि हज़रतगंज थाने की पुलिस ने जितेंद्र पात्रो के अपराध को मुकदमा न दर्ज कर छुपा लिया है। सिर्फ़ जितेंद्र पात्रो के माफ़ीनामे को ही पर्याप्त मान लिया है , तो उन से भी सवाल पूछना चाहिए। पूछना चाहिए कि योगी राज में , बुलडोजर की चमक के आगे हज़रतगंज पुलिस की चमक और धमक बहुत फीकी पड़ गई है। हज़रतगंज पुलिस से भी सवाल पूछा जाना चाहिए। तो उन की सुविधा के लिए भी नंबर प्रस्तुत कर रहा हूं इस सवाल के साथ क्या हज़रतगंज पुलिस और 112 नंबर की सुविधा देने वाली पुलिस किसी लंपट के आरोप मात्र पर किसी भी सीनियर सिटीजन के साथ , किसी भी नैतिक और प्रतिष्ठित व्यक्ति के साथ आधी रात को  उस के घर आ कर अभद्रता कर सकती है ? योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि को बट्टा लगा रही है। जागिए कि अपराधियों के प्रति आप की पुलिस सख़्त और सबल बने। जितेंद्र पात्रो जैसों के आगे बिछे नहीं। लाल कालीन न सजाए। लीजिए थानाध्यक्ष , हज़रतगंज और चौकी इंचार्ज डालीबाग , लखनऊ के नंबर। और इन से भी इन का पक्ष जानिए। पूछिए इन से सवाल। 

श्याम शुक्ला , थानाध्यक्ष , हज़रतगंज , लखनऊ 

7007649991 

आदिल , चौकी इंचार्ज , डालीबाग , लखनऊ 

8127235555 

जितेंद्र पात्रो का माफ़ीनामा 

कृपया इस लिंक को भी पढ़ें :


1 . कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर को ले कर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की झांसा कथा का जायजा 

2 .  प्रलेक के प्रताप का जखीरा और कीड़ों की तरह रेंगते रीढ़हीन लेखकों का कोर्निश बजाना देखिए 

3 . जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण 

4 . योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

5 . तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

6 . लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

7 . जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल 

8 . माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं 

9 . कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है

Friday 20 May 2022

जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण

दयानंद पांडेय 

प्रलेक प्रकाशन के फ्राड की अंतर्कथा देखिए कि जब समूची दुनिया समेत भारत देश कोरोना की महामारी से त्राहिमाम किए था , उन्हीं दिनों जितेंद्र विजय पात्रो ने 13 जुलाई , 2020 को प्रलेक प्रकाशन का रजिस्ट्रेशन करवाया। यानी बतर्ज रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था , लोग मर रहे थे और जितेंद्र पात्रो प्रलेक प्रकाशन का रजिस्ट्रेशन करवा रहे थे। एक लाख रुपए का कैपिटल बताया और ख़ुद जितेंद्र विजय पात्रो और उन की पत्नी जयश्री पात्रो इस प्रलेक प्रकाशन के डायरेक्टर बने। रजिस्ट्रेशन में दी गई सूचना यही बताती है। दिलचस्प यह कि प्रलेक प्रकाशन का रजिस्ट्रेशन करवाने के डेढ़ साल के भीतर जितेंद्र पात्रो ने चार सौ किताबों के प्रकाशन की पुस्तक सूची परोस दी है। यह तो हिंदी प्रकाशन जगत में नायाब रिकार्ड है। गिनीज बुक में इसे ज़रुर दर्ज किया जाना चाहिए। और यह देखिए कि हाय ग़ज़ब कहीं तारा टूटा ! प्रलेक प्रकाशन के वाट्सअप ग्रुप पर बीते 2 फ़रवरी , 2022 को जितेंद्र पात्रो ने शाम 6 - 30  पर अचानक सूचना परोसी कि बस कुछ घंटों में प्रलेक प्रकाशन - 54 वर्ष पुराना हो जाएगा। तमाम लेखक बधाई देने में व्यस्त हो गए। बिछ-बिछ गए। लेकिन आदरणीया ममता कालिया ने लिखा : 

वाह इतनी तो तुम्हारी उम्र भी नहीं है। 

ठीक बात थी। क्यों कि जितेंद्र विजय पात्रो के जन्म की तारीख़ 1 दिसंबर , 1982 ही उन के सर्टिफिकेट में दर्ज है। जब कि उन की पत्नी जयश्री पात्रो के जन्म की तारीख़ 4 जून , 1988 दर्ज है। यह पति-पत्नी एक और कंपनी चलाते हैं : जे वी पी इंफोटेक प्राइवेट लिमिटेड। इस कंपनी को भी एक लाख रुपए की पूंजी से शुरु करना यह बताते हैं। इस का रजिस्ट्रेशन 7 फ़रवरी , 2019 को करवाया। यह कंपनी रियल स्टेट आदि काम के लिए बनाई गई बताई गई है। दोनों कंपनियों का पता एक ही है। 

बाद में जितेंद्र पात्रो ने अपने वाट्सअप ग्रुप पर स्पष्ट किया कि राधेश्याम प्रगल्भ द्वारा 1968 में प्रलेक प्रकाशन बनाया गया था और अब अशोक चक्रधर के मार्फ़त जितेंद्र पात्रो को यह प्रलेक प्रकाशन मिला। लेकिन बाद में अशोक चक्रधर को भी जितेंद्र पात्रो ने ठेंगा दिखा दिया और अपमानित किया। अब अशोक चक्रधर ने जितेंद्र पात्रो से संवाद बंद कर दिया। सच यही है कि मुर्गी मार कर अंडे खाने के अभ्यस्त जितेंद्र पात्रो ने तमाम लेखकों को अपमानित किया है। इसी लिए बहुत सारे लेखक जितेंद्र पात्रो से आहत हैं। वही लेखक जो कभी जितेंद्र पात्रो का स्वागत कर रहे थे , अब आहत क्यों हैं ? क्यों कि जितेंद्र पात्रो ने लेखकों के मान-स्वाभिमान को आहत किया है। कम से कम पचास लेखक मेरे संपर्क में हैं जो जितेंद्र पात्रो के व्यवहार से अपमानित हैं। बिहार ,उत्तर प्रदेश , दिल्ली , मुंबई से लगायत यूक्रेन और ब्रिटेन तक के लेखक इस तरह की शिकायत में शामिल हैं। 

सवाल यह भी है कि रियल स्टेट कंपनी और प्रकाशन का काम करने वाले जितेंद्र पात्रो बार-बार बैंक क्यों बदलते रहते हैं। और इन के यह बैंक अकाउंट लगभग ख़ाली भी क्यों रहते हैं। क्या खाता सीज होने का डर सताता है ? रियल स्टेट के व्यवसाय को अभी यहां मुल्तवी करते हैं। आगे जल्दी ही इस पर भी विस्तार से बात करेंगे। पर आज प्रलेक प्रकाशन के व्यवसाय की चर्चा करते हैं। क्या एक लाख की पूंजी से कोई 400 से अधिक किताबें बीते डेढ़-दो साल में प्रकाशित करना मुमकिन है ? अलग बात है कि व्यवसाय जगत में कुछ भी , कभी भी मुमकिन है। ब्लैक एंड ह्वाइट का चरित्र है व्यवसाय जगत का। पर इन दो सालों का प्रलेक प्रकाशन के पास कोई बैलेंस सीट है क्या ? कोई टर्न ओवर , जी एस टी , जी एस टी नंबर , इनकम टैक्स आदि का कोई विवरण है क्या। अभी हम प्रलेक प्रकाशन , जितेंद्र विजय पात्रो के पेन कार्ड नंबर तीन बैंक की डिटेल यहां दे रहे हैं। उन की पत्नी जयश्री राय के पेन नंबर और डिटेल भी मेरे पास है। पर अभी यहां नहीं परोस रहे। इस लिए कि एक तो वह स्त्री हैं। दूसरे डिटेल बताते हैं कि वह पत्नी होने के कारण जितेंद्र पात्रो से संचालित हैं। जितेंद्र पात्रो के छल-छंद में उन्हें घसीटना अभी ठीक नहीं लग रहा। आगे ज़रुरत पड़ी तो ज़रुर कभी ज़िक्र हो सकता है। पर अभी तो नहीं। 

बहरहाल जितेंद्र पात्रो और प्रलेक प्रकाशन के पेन कार्ड के डिटेल बताते हैं कि जितेंद्र पात्रो के पास नंबर एक का कोई व्यवसाय नहीं है। कम से कम पेन कार्ड के थ्रू तो नहीं है। और आज की तारीख़ में बिना पेन नंबर के कोई आर्थिक गतिविधि किसी की मुमकिन नहीं है। वैसे भी यह दोनों कंपनियां बोगस कंपनियां लगती हैं। किसी और काम के लिए इन की आड़ ली गई है। या फिर जितेंद्र पात्रो और प्रलेक प्रकाशन सचमुच कंगाल हैं। प्रलेक प्रकाशन का पैन कार्ड नंबर AALCP2404M है। 13 जुलाई , 2020 को यह पैनकार्ड जारी हुआ है। प्रलेक का खाता एक खाता एच डी एफ सी में है। करंट एकाउंट है एच डी एफ सी में। प्रलेक प्रकाशन के नाम से विरार वेस्ट , मुंबई के एच डी एफ सी बैंक में है। खाता संख्या है 50200049515899 आई एफ सी कोड HDFC0000051 है। 10 अगस्त , 2020 को खोला गया यह खाता अब निष्क्रिय है। प्रलेक प्रकाशन का नया खाता विरार वेस्ट , थाणे , मुंबई के कोटक महिंद्रा बैंक में है। खाता संख्या है 7646111336 और आई एफ एस सी कोड KKBK0000629 है। यह खाता सक्रिय है। और इन दिनों लेखकों से इसी खाते में पैसा मंगवा रहे हैं , जितेंद्र पात्रो। कोटक महेंद्रा में प्रलेक प्रकाशन का नया करंट खाता है जो 7 दिसंबर , 2021 को खोला गया है। 

दिलचस्प तथ्य यह है कि जितेंद्र पात्रो इन बैंक खातों का उपयोग सिर्फ़ लेखकों से पैसा वसूली के लिए करते हैं। किसी प्रिंटिंग प्रेस , किसी क़ाग़ज़ आदि को किए जाने वाले भुगतान जितेंद्र पात्रो कैसे करते हैं , वह ही जानें। क्या कैश करते हैं ? अगर करते हैं तो ग़लत करते हैं। दस हज़ार रुपए से अधिक का नक़द भुगतान ग़ैर क़ानूनी माना जाता है। हालां कि इस की उम्मीद भी कम ही है। क्यों कि अमूमन दस-बीस किताबों का संस्करण छापने वाले प्रलेक प्रकाशन या जितेंद्र पात्रो को इस की ज़रुरत बहुत कम पड़ती है। इसी लिए मैं अपना आरोप फिर दुहराना चाहता हूं कि प्रकाशन की आड़ में जितेंद्र पात्रो कुछ और काम कर रहे हैं। या फिर वह सचमुच ही बहुत विपन्न हैं। जितेंद्र पात्रो जिन दिनों मुझे पिता-तुल्य बता कर मुझ से बात करते थे , अकसर कहा करते थे कि मेरा मुख्य व्यवसाय तो शेयर मार्केट का है। प्रकाशन का काम तो मैं साहित्य से प्रेम करने के कारण कर रहा हूं। पर जितेंद्र पात्रो और उन की पत्नी जयश्री पात्रो के पेन नंबर के रिकार्ड के मुताबिक़ मिले डिटेल बताते हैं कि यह दोनों ही लोग शेयर मार्केट और म्यूचुअल फंड आदि किसी भी इनवेस्टमेंट के व्यवसाय में शून्य हैं। फिर धंधा क्या है जितेंद्र पात्रो का ? सिर्फ प्रकाशन और रियल स्टेट ? हरगिज नहीं। हम सभी लोग जानते हैं कि घूस और भूत के सुबूत नहीं होते। और कि नंबर दो के सुबूत आसानी से नहीं छापे से ही मिलते हैं। 

जितेंद्र पात्रो का व्यक्तिगत पैन कार्ड नंबर ANSPP5868Q है। मिली सूचनाओं के मुताबिक़ जितेंद्र विजय पात्रो , पुत्र बिजय कुमार पात्रो का एक बैंक खाता उड़ीसा के गंजम में स्टेट बैंक के सारु ब्रांच में 24 जनवरी , 2008 को खोला गया है। खाता संख्या 11631834223 है। आई एफ एस सी कोड है SBIN0006132 और इस खाते में सिर्फ़ 2088 रुपए शेष हैं। खाता निष्क्रिय है। बाक़ी बैंकों और काम की पड़ताल जारी है। 

अब सवाल है कि हिंदी , उर्दू , अंगरेजी या उड़िया का कोई लेखक भला अंबानी या अडानी तो है नहीं जो जितेंद्र पात्रो की तिजोरी भर दे। ख़ास कर हिंदी का ज़्यादातर लेखक हैंड टू माऊथ ही होता है। 20 -25 हज़ार में किताब छपवाने का आकांक्षी। अब इस 20 -25 हज़ार में क्या छापेंगे और क्या बचाएंगे ? नहाएगा क्या और निचोड़ेगा क्या ? वाली कहावत याद आती है। इन दिनों किताबों की सरकारी ख़रीद बंद होने के कारण बड़े-बड़े प्रकाशकों की हवा टाइट है। लेकिन फिर भी असल प्रकाशकों के पास बना-बनाया सिस्टम है। एक निश्चित सेटअप है। उन के पास कर्मचारी भी हैं , गोदाम भी। जी एस टी नंबर , इनकम टैक्स , टर्न ओवर , बैलेंस सीट भी है। लेकिन जितेंद्र पात्रो के पास इन सब मामलों में अंधेरा ही अंधेरा है। सोचिए कि आज की तारीख़ में प्रकाशन या रियल स्टेट के व्यवसाय के लिए एक लाख रुपए क्या होता है भला ? एक लाख रुपए में होता क्या है आज की तारीख़ में ? मुंबई जैसी जगह में तो किराए का एक छोटा सा फ़्लैट लेने के लिए सिक्योरिटी अमाउंट भी एक लाख रुपए में नहीं हो सकती। लेकिन जितेंद्र पात्रो तो एक लाख रुपए में कंपनी चला रहे हैं। इतना ही नहीं इन की इन कंपनियों की ज़्यादातर सूचनाएं भी लॉक्ड हैं। जब कि बड़ी-बड़ी कंपनियों की सारी सूचनाएं खुली हैं , सार्वजनिक हैं। इसी लिए मैं बार-बार कह रहा हूं कि जितेंद्र पात्रो प्रकाशन व्यवसाय की आड़ में कुछ और कर रहे हैं। यह दोनों कंपनियां सेल कंपनियां हैं। बोगस कंपनियां हैं। इन की आड़ में यह कोई और ही गुल खिला रहे हैं। 

कुछ और संगीन आरोप हैं जितेंद्र पात्रो पर । जिन की पुष्टि होने के बाद जल्दी ही वह सब कुछ सार्वजनिक करुंगा। पड़ताल सतत जारी है। 


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1 . कथा-लखनऊ और कथा-गोरखपुर को ले कर जितेंद्र पात्रो के प्रलेक प्रकाशन की झांसा कथा का जायजा 

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3 . जितेंद्र पात्रो , प्रलेक प्रकाशन और उन का फ्राड पुराण 

4 . योगी जी देखिए कि कैसे आप की पुलिस आप की ज़ोरदार छवि पर बट्टा लगा रही है

5 . तो जितेंद्र पात्रो अब साइबर सेल के मार्फ़त पुलिस ले कर फिर किसी आधी रात मेरे घर तशरीफ़ लाएंगे

6 . लीगल नोटिस और धमकी से लेखक लोगों की घिघ्घी बंध जाती है , पैंट गीली हो जाती है , यह तथ्य जितेंद्र पात्रो ने जान लिया है

7 . जितेंद्र पात्रो , ज्योति कुमारी और लीगल नोटिस की गीदड़ भभकी का काला खेल 

8 . माफ़ी वीर जितेंद्र पात्रो को अब शची मिश्र की चुनौती , अनुबंध रद्द कर सभी किताबें वापस ले लीं 

9 . कुंठा , जहालत और चापलूसी का संयोग बन जाए तो आदमी सुधेंदु ओझा बन जाता है