रहता है लखनऊ में लेकिन लाहौर सुहाता है
पहले बटेर लड़ाता था अब इंसान लड़ाता है
मुद्दा कोई हो सेक्यूलर का बाजा बजाता है
सरकार जिस की हो उसी की टोपी लगाता
देशभक्ति को बकवास और मूर्खता बताता है
ग़ज़ल से उस का कोई वास्ता है नहीं लेकिन
ग़ुलाम अली के नाम पर लड़ जाना आता है
है जाहिल एक नंबर का पर सेक्यूलर की
टोपी लगा ख़ुद को इंटेलेक्चुवल बताता है
शौक उस के अजब ग़ज़ब हैं ठाट नवाबी हैं
शर्त लगा प्याज के साथ जूते बहुत खाता है
शर्म आती नहीं फिर भी उसे ज़िद्दी बहुत है
मनबढ़ई देखिए आतंकी को शहीद बताता है
अहिसा का पुजारी हूं शांति के कबूतर उड़ाता हूं
लेकिन वह हिंसक है गोली बंदूक बम दिखाता है
आईना झूठ कहां बोलता पर वह तो फोड़ देता है
कोई दूसरा दिखा दे तो आईने को झूठा बताता है
कल मिला था माल में दोस्त देख कर डर गया
कहने लगा यह तो मौक़ा देख बम बिछाता है
[ 25 फ़रवरी , 2016 ]
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (27-02-2016) को "नमस्कार का चमत्कार" (चर्चा अंक-2265) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ग़ज़ल
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