Friday, 5 February 2016

पर इतने कायर हैं कि मां के गर्भ में उपस्थित लड़की से डरते हैं



ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

उन के पास तोप तलवार टैंक है ऐटम बम भी ले कर चलते हैं
पर इतने कायर हैं कि मां के गर्भ में उपस्थित लड़की से डरते हैं  

सारी सुविधाओं से लैस बात-बेबात गोली बंदूक़ चलाते रहते हैं 
लेकिन जिगरा देखिए कि नौकरी करने वाली लड़की से डरते हैं

उस के पास किताब है स्कूल जाती है मोबाइल कंप्यूटर चलाती है
अजब लोग हैं इस शहर  के जो  एक छोटी सी  लड़की से डरते हैं

अपने गंवारपन और जहालत से निकलना मंज़ूर नहीं है हरगिज 
उन को तो हिजाब और बुरक़ा  प्यारा है पढ़ी-लिखी लड़की से डरते हैं

मंदिर में काली दुर्गा बना कर पूजने में ऐतराज नहीं है उन को 
लेकिन घर समाज में औरत को बराबरी से  बैठाने में  डरते हैं

वह चाहते हैं मोम की गुड़िया जो उन के पिघलाने से पिघल जाए
उन के जमाये से जम जाए अपनी सत्ता के ढह जाने से डरते हैं

सोचे नहीं  बिना ना नुकुर किए चूल्हे की आग में  होम हो जाए 
उन की ग़ुलामी से कहीं इंकार न कर दे इस बात से बहुत डरते हैं 

मायके से आए तो ख़ूब सारा दहेज़ लाए जुबान उस की सिली रहे 
स्वेटर बुने मटर छिले सच न बोल दे मुसलसल इस बात से डरते हैं 

 [ 6 फ़रवरी , 2016 ]

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