भोजपुरी को सांस-सांस जीने वाले छपरा के मूल निवासी डाक्टर ओमप्रकाश सिंह बलिया में रहते हैं । पेशे से चिकित्सक हैं लेकिन भोजपुरी के लिए जान छिड़कते हैं। पहले अंजोरिया नाम से भोजपुरी साईट चलाते थे अब उसी को भोजपुरिका नाम से चलाते हैं । भोजपुरी मेरी भी मातृभाषा है। सो मेरे मन में भी भोजपुरी के लिए बहुत मान है। भोजपुरी मेरा स्वाभिमान है। बहुत लोगों को भोजपुरी के लिए जीते , मरते और दुकान चलाते देखा है। लेकिन भोजपुरी के लिए नि:स्वार्थ लड़ते , जीते और मरते डाक्टर ओमप्रकाश सिंह जैसा आज की तारीख़ में दूसरा नहीं देखा । शायद ही देख पाऊं। भोजपुरी भाषा के लिए इतना समर्पण आसान नहीं है ।
लोक कवि अब गाते नहीं उपन्यास के मार्फ़त हमारा परिचय हुआ । इस उपन्यास का भोजपुरी में अनुवाद करने की इच्छा जताई और कहा कि इसे धारावाहिक रूप से अंजोरिया पर छापना चाहता हूं । मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी । मैं ने सहर्ष सहमति दे दी । डाक्टर ओमप्रकाश सिंह ने मेरे उपन्यास लोक कवि अब गाते नहीं का भोजपुरी में अविकल अनुवाद किया और अंजोरिया पर धारावाहिक छापा भी । और कहना चाहता हूं कि बावजूद इस के कि भोजपुरी मेरी भी मातृभाषा है , इतना बढ़िया , इतना डूब कर लोक कवि अब गाते नहीं का ऐसा दुर्लभ अनुवाद भोजपुरी में मैं भी नहीं कर पाता, जैसा कि डाक्टर ओमप्रकाश सिंह ने किया है । ओमप्रकाश सिंह ने न सिर्फ़ लोक कवि अब गाते नहीं का बल्कि मेरे और भी कई लेख और रचनाओं का अनुवाद भी भोजपुरी में किया है। दुर्लभ अनुवाद। मेरे ब्लाग सरोकारनामा के लिए भी वह सर्वदा प्राण वायु बन कर उपस्थित मिलते हैं । मैं सरोकारनामा के मसले पर रात बिरात कभी भी फ़ोन कर उन से कह सकता हूं । कहता ही रहता हूं । पहले मुझे सरोकारनामा पर पोस्ट करने नहीं आता था । डाक्टर ओमप्रकाश सिंह ने फ़ोन पर , लिख कर किसी बच्चे की तरह मुझे सिखाया । एक-एक स्टेप सिखाया । बिना किसी स्वार्थ के । इतना ही नहीं जब कई बार कुछ लोगों ने सरोकारनामा को हैक करने की कई-कई बार कोशिश की तो उस का बैक अप ले कर सुरक्षित किया । और सारी सामग्री एक जगह सुरक्षित करने की गरज से सरोकारनामा नाम से साइट भी बना दी ।
एक लंबा अरसा हो गया था हम लोग सिर्फ़ रचना , अनुवाद , सरोकारनामा , और फ़ोन के मार्फ़त बतियाते रहे थे। मिलना संभव नहीं हो पाया था कभी । लेकिन डाक्टर ओमप्रकाश सिंह ने यह भी संभव बना दिया । वह लखनऊ आ गए। हमारी आत्मीयता मुलाकात में भी तब्दील हुई और हम धन्य-धन्य हो गए डाक्टर ओमप्रकाश सिंह जैसे भोजपुरी के तपस्वी से मिल कर । उन की सादगी और विनम्रता पर और-और मोहित हो गए ।
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