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दिवाकर त्रिपाठी के साथ मैं |
प्रशासनिक अधिकारी दिवाकर त्रिपाठी लखनऊ के विकास की सांस-सांस में उपस्थित हैं। विभिन्न विभागों की अपनी सेवा में कोई पैतीस साल लखनऊ में ही उन्हों ने गुज़ारे हैं। नया लखनऊ बनाने में उन का बहुत योगदान है । दिवाकर त्रिपाठी के लिए निःसंकोच कहा जा सकता है कि हम फ़िदाए लखनऊ , लखनऊ हम पर फ़िदा ! वह सिटी मजिस्ट्रेट रहे हों , नगर निगम में रहे हों , लखनऊ विकास प्राधिकरण या सूडा में , उत्तर प्रदेश पर्यटन में या ए डी एम सिटी रहे हों , ए डी एम सिविल सप्लाई , डिप्टी लेबर कमिश्नर रहे हों या सचिवालय में शासन के किसी विभाग में विशेष सचिव या सचिव , लखनऊ के लिए निरंतर काम करते रहे हैं। लखनऊ विकास प्राधिकरण में तो उन का दो बार का कार्यकाल बहुत ही सैल्यूटिंग रहा है । गोमती नगर में विकास प्राधिकरण का नया कार्यालय , गोमती नगर विस्तार , इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान, रमा बाई मैदान , अंबेडकर स्मारक , अंबेडकर पार्क, कांशीराम पार्क आदि जैसे तमाम उपक्रम दिवाकर त्रिपाठी की ही प्लैंनिग और निर्माण का नतीज़ा हैं । यहां तक कि गोमती नगर का गांधी सेतु भी दिवाकर त्रिपाठी ने बनवाया और प्राधिकरण का नाम रोशन किया। बिना किसी विवाद या जांच के, बिना किसी कालिख के पूरी नौकरी कर लेना आसान नहीं होता। दिवाकर त्रिपाठी ऐसे ही दुर्लभ प्रशासनिक अधिकारी हैं जिन्हों ने बिना किसी कालिख के प्रशासनिक ज़िम्मेदारियों का सरलता पूर्वक निर्वहन किया है। अवकाश प्राप्ति के बाद भी वह दो साल एक्सटेंसन पा कर बतौर ओ एस डी काम करते रहे थे। अभी भी एक मंत्री उन्हें बार-बार बुलाते रहते हैं । पर उन्हों ने दैनंदिन नौकरी से अब हाथ जोड़ लिया है । अब वह पूरी तरह अवकाश प्राप्त हैं, हनुमान भक्ति में लीन हैं । लेकिन लखनऊ की 100 किलोमीटर की आऊटर रिंग रोड और नए लखनऊ के विकास का मानचित्र फिर से बनाने की ज़रूरत पड़ी तो लोगों को फिर दिवाकर त्रिपाठी की याद आई। और उन्हें ही इस की ज़िम्मेदारी सौपी गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने । उन्हों ने तय समय में पूरी योजना बना कर दे भी दी । दरअसल किसी योजना को बनाना , उस को इम्प्लीमेंट करना किसी को सीखना और देखना हो तो दिवाकर त्रिपाठी एक मिसाल हैं । वैसे भी प्रशासनिक काम-काज को ले कर दिवाकर त्रिपाठी के पास एक से एक नायाब क़िस्से हैं किसिम-किसिम के। दिलचस्प और दुर्लभ क़िस्सों का खज़ाना । राजनीतिक , प्रशासनिक और सामान्य जन के भी । वह जब मूड में होते हैं तो पूरा रस ले-ले कर सुनाते हैं । लोगों के नाम ले-ले कर ।
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दिवाकर त्रिपाठी के साथ मैं , मेरी छोटी बेटी पुरवा और पत्नी |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र से भी प्रशासनिक बारीकी सीखने वाले दिवाकर त्रिपाठी हनुमान भक्त भी बहुत बड़े हैं। लखनऊ में अगर वह हैं तो हनुमान सेतु मंदिर पहुंच कर पूजा अर्चना करना उन का अनिवार्य जीवन है। चाहे जैसे हों , जिस भी पद पर वह रहे हों , कितना भी व्यस्त रहे हों , हनुमान सेतु मंदिर वह रोज ही जाते रहे । आज भी नियमित जाते ही हैं । बीते पैतीस सालों से उन का यह क्रम कभी टूटा नहीं है , आगे भी भला क्या टूटेगा ! अब तो वह जैसे इस हनुमान मंदिर के लिए ही जीते हैं। आप हनुमान मंदिर अगर जाएंगे तो वह कोई साधारण काम भी करते दिख सकते हैं , वहां की सफाई जैसे काम भी , जूठे पत्तल अदि उठाते भी देख सकते हैं। और जो इस हनुमान मंदिर का नवीनीकरण और इस का बदला स्वरूप , बदली व्यवस्था आप को अच्छी लगे तो आप एक बार दिवाकर त्रिपाठी को ज़रुर याद कर लीजिए । यह सब उन का ही किया-धरा है। लखनऊ का विकास और हनुमान भक्ति जैसे उन की सांस है , उन की आत्मा है । यह मेरा सौभाग्य ही है कि बीते तीस बरस से मैं भी उन का मित्र हूं। मेरे हर दुःख सुख में वह बहुत ही विनय पूर्वक उपस्थित मिलते हैं , ऐसे जैसे मुझे सांस दे रहे हों। मैं किसी भी संकट में पडूं, बिना कोई एहसान जताए, मुझे वह उबार लेते हैं। वह हैं ही ऐसे । और सब के ही साथ । वह चुपचाप आप का काम भी कर देते हैं और शो ऐसे करते हैं गोया वह काम करने को कह कर आप ने ही उन पर कोई एहसान कर दिया हो । उन की यही विनयशीलता उन्हें हर किसी से अलग कर देती है । और मैं ही क्यों मेरा पूरा परिवार ही, मेरे सारे छोटे भाई भी उन की कृपा और स्नेह की अनमोल डोर में बंधे हुए हैं । और कि शायद लखनऊ में अनगिन लोग उन की कृपा और स्नेह की अनमोल डोर में बंधे आप को मिल जाएंगे । वह हैं ही ऐसे । सागर की तरह सब को अपने प्यार , स्नेह और सेवा में समोते हुए । जैसे वह कोई व्यक्ति नहीं धरती हों , सब को शरण देते हुए । जैसे कोई वृक्ष हों , सब को एक समान छांव देते हुए । जैसे कोई सूरज हों ,सब को रौशनी देते हुए। जैसे कोई चंद्रमा हों ,सब को शीतलता देते हुए । बिना किसी से कोई अपेक्षा किए सब को ही तथास्तु कहते हुए , कोई ऋषि हों जैसे। सच वह ऋषितुल्य ही हैं, मेरी नज़र में। असाधारण तपस्वी। मैं ने उन्हें किसी जायज काम के लिए कभी किसी को नहीं कहते या करते देखा । काम चाहे जितना भी पेचीदा हो , अगर जायज है तो वह बिना समय गंवाए हां कर देते रहे हैं । मैं ने उन से एक बार कहा भी कि, 'अच्छा हुआ कि ईश्वर या प्रकृति ने आप को स्त्री नहीं बनाया ।' वह ज़रा चौंके और किंचित मुस्कुराए और बोले, 'क्यों ?' मैं ने कहा , ' नहीं सर्वदा आप के पांव भारी रहते , क्यों कि आप तो किसी को न करना जानते ही नहीं । ' वह हंसने लगे । कहने लगे कि, ' लेकिन मेरे पांव कभी थकते नहीं किसी का काम करने के लिए ।' और सच तमाम अन्य प्रशासनिक अधिकारियों की तरह वह टाल -मटोल नहीं करते मिले कभी भी । उन से तो कोई मूंगफली वाला , कोई ठेले वाला , खोमचे वाला , निर्बल , दबा-कुचला भी बेरोक-टोक मिल सकता था । मिलता ही था । और वह उस की पीड़ा , उस की तकलीफ से भरसक उबार भी ज़रूर लेते थे । बहुत कम अधिकारी होते हैं जिन्हें जनता अपना हमदर्द समझ कर उन के पास जाती है । उन को नाम से जानती है । उन को पहचानती है और अपना मानती है । उस के कहे को आंख बंद कर मान भी लेती है । दिवाकर त्रिपाठी ऐसे ही अनमोल और दुर्लभ प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं ।
रास्ते चलते भी अगर उन्हें कोई आवेदन ले कर मिल जाए तो वह बिना किसी हिच के फौरन निस्तारित कर देते बार-बार दिखे हैं । वह चाहे कोई परिचित हो या अपरिचित । इस से उन को फ़र्क़ नहीं पड़ता । अनिल कपूर अभिनीत फ़िल्म नायक में जैसे एक दिन का मुख्यमंत्री रास्ते चलते आदेश जारी करता दीखता है , कुछ-कुछ वैसे ही । दिवाकर त्रिपाठी अगर किसी मीटिंग में न हों तो उन के कार्यालय का कमरा हर किसी सामान्य जन के लिए सर्वदा खुला मिलता । ऐसे जैसे जनता दरबार लगा हो , ऐसी भीड़ उन के कमरे में सर्वदा उपस्थित मिलती । किसी राजनीतिज्ञ के जनता दरबार में क्या भीड़ होती होगी , जैसी दिवाकर त्रिपाठी के कार्यालय में मैं ने देखी है । बारंबार देखी है। इस लिए भी कि वह कभी किसी को निराश नहीं करते थे । लोग-बाग़ बड़ी उम्मीद से उन के पास पहुंचते थे । लोगों की उम्मीद पूरी भी होती थी । तभी तो भीड़ पहुंचती थी उन के पास । कभी कभार यह भी हो सकता था कि प्रशासनिक पेचीदगियों के कारण आप का काम भले न हो पाए पर आप दिवाकर त्रिपाठी से नाराज फिर भी नहीं हो सकते थे। क्यों कि उन के सदप्रयास में आप को कभी कोई कमी नहीं दिखती थी । दिवाकर त्रिपाठी के काम काज को ले कर , उन की सदाशयता को ले कर इतने सारे क़िस्से हैं , इतनी सारी नज़ीरें हैं कि उन को वर्णित करने के लिए कोई क़िताब भी कम पड़ जाए । और मैं तो जैसे उन का चिर ऋणी हूं ही ।
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दिवाकर त्रिपाठी के साथ बेटा उत्सव और मैं |
सच यह कहने में मुझे एक पैसे का भी संकोच नहीं है कि अगर बहुत सारे उतार-चढ़ाव देखते हुए भी लखनऊ में मैं इतने समय तक रह गया हूं तो सिर्फ़ और सिर्फ़ एक दिवाकर त्रिपाठी के कारण। यही दिवाकर त्रिपाठी अभी एक पारिवारिक पार्टी में मिल गए । लखनऊ में हमारे ऐसे ही दुःख-सुख के साथी एक और मित्र हैं असित चतुर्वेदी जो हाईकोर्ट में मशहूर वकील हैं , बीते दिनों हाईकोर्ट में वह सीनियर एडवोकेट का दर्जा पा गए हैं । इसी ख़ुशी में आयोजित पार्टी में दिवाकर त्रिपाठी भी उपस्थित थे अपनी सादगी, विनम्रता, कृतज्ञता और स्नेह की उसी अनमोल डोर के साथ । कुछ चित्र दिवाकर त्रिपाठी के साथ :
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एक और चित्र |
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और एक यह सेल्फ़ी भी |
दिवाकर जी को इस नाचीज त्रिपाठी का प्रणाम
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