Sunday, 9 October 2022

कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के बहाने कांग्रेस के लोकतंत्र में यक़ीन न होने की अनेक कहानियां

दयानंद पांडेय 

कांग्रेस का अध्यक्ष पद , पूरी पारदर्शिता से गांधी परिवार की ज़ेब में रखना एक निर्मल सत्य है। गांधी परिवार से इतर इक्का-दुक्का हुए अध्यक्षों की दुर्गति प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह से भी ज़्यादा हुई। सीताराम केसरी को तो कुर्सी पर बैठे-बैठे ही उठा कर , कांग्रेस कार्यालय से बाहर फेंक देने का वीडियो कौन भूल सकता है भला। 

कांग्रेस द्वारा प्रदेश सरकारों की बर्खास्तगी , कांग्रेस द्वारा विभिन्न सरकारों को दिया गया समर्थन वापसी का खेल , अपने ही मुख्यमंत्रियों को ताश की तरह फेंट कर बदलते रहना , किसी भी को कार्यकाल पूरा न करने देना भी समय के शिलालेख पर दर्ज है। केरल में निर्वाचित मुख्यमंत्री रहे वामपंथी नेता नंबूदरीपाद की सरकार को जब तब की कांग्रेस अध्यक्ष इंदिरा गांधी की सिफारिश पर तब के प्रधानमंत्री नेहरु ने जब बर्खास्त कर दिया तो इंदिरा गांधी के पति फ़िरोज़ गांधी इतने नाराज़ हुए कि नेहरु का घर तीनमूर्ति भवन छोड़ कर चले गए। फिर वह कभी नहीं लौटे। उन का शव ही आया तीनमूर्ति भवन।

कांग्रेस के लोकतंत्र में यक़ीन न होने की अनेक कहानियां समय के परदे पर उपस्थित हैं। आयाराम , गयाराम का क़िस्सा सब ने सुना होगा। कांग्रेस के पाप की कोख से यह क़िस्सा निकला है। वाकया 1967 का है। हरियाणा में गया लाल कांग्रेस के विधायक थे। एक ही दिन में उन्हों ने तीन बार पार्टी बदली। पहले तो उन्होंने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर जनता पार्टी का दामन थाम लिया। फिर थोड़ी देर में कांग्रेस में वापस आ गए। करीब 9 घंटे बाद उनका हृदय परिवर्तन हुआ और एक बार फिर जनता पार्टी में चले गए। खैर गया लाल के हृदय परिवर्तन का सिलसिला जा रहा और वापस कांग्रेस में आ गए। कांग्रेस में वापस आने के बाद कांग्रेस के तत्कालीन नेता राव वीरेंद्र सिंह उन को ले कर चंडीगढ़ पहुंचे और वहां एक संवाददाता सम्मेलन किया। राव वीरेंद्र ने कहा , 'गया राम अब आया राम हैं।' 

1982  में  तो गज़ब हुआ। जनता पार्टी के देवीलाल चुनाव जीत कर आए। जनता पार्टी की सरकार बनाने के लिए राजभवन में शपथ के लिए बैठे थे। पर इसी बीच राज्यपाल जी डी तपासे ने राजभवन के एक कमरे में चुपके से भजन लाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलवा दी। भजनलाल जनता पार्टी को छोड़ कर 37 विधायकों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे। यह पता चलते ही देवीलाल ने राजभवन में ही राज्यपाल जी डी तपासे को खींच कर थप्पड़ मार दिया। और बोले , तुम्हें नहीं मालूम कि तुम ने इंदिरा गांधी को ख़ुश करने के लिए लोकतंत्र का ख़ून कर दिया है। आयाराम , गयाराम की कहानी तब ख़ूब चली। जिसे आज के समय में वायरल होना कहते हैं।  

बिहार के तत्कालीन राज्यपाल बूटा सिंह को एक समय जार्ज फर्नांडीज झूठा सिंह कहते थे। जनता दल यूनाइटेड के नेता नीतीश कुमार सरकार बनाने का दावा करने वाले थे, लेकिन राज्यपाल बूटा सिंह ने उन्हें मौका देने से इनकार कर बिहार विधानसभा को 23 मई 2005 को मध्य रात्रि भंग करवा दिया। मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब। लंबा विवाद हुआ था तब। तो कांग्रेस के लोकतंत्र में यक़ीन न होने की अनेक कहानियां हैं। पर अब न गोदी मीडिया इन किस्सों को याद करता है , न सेक्यूलर मीडिया। दिलचस्प यह कि भाजपा ने भी कांग्रेस के इस रास्ते पर बहुत तेज़ी से क़दमताल कर लिया है। भारत की सभी पार्टियों का सारा यक़ीन सिर्फ़ सत्ता में है , लोकतंत्र में नहीं।

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