दयानंद पांडेय
मेरे एक आई ए एस मित्र हैं । बहुत बड़े-बड़े पदों पर रह चुके हैं । तबीयत से पूरे फक्कड़ और बेलौस । साहित्य की गहरी समझ । मीर उन के पसंदीदा शायर । बल्कि मीर को वह जब-तब मूड में आ कर सुनाने भी लगते हैं । भाव-विभोर हो कर । हरियाणा के मूल निवासी , गोरा , लंबा कद , और हरियाणवीपन में तर-बतर । लेकिन बेहद ईमानदार और दिल के साफ़ । उन के साथ के तमाम खट्टे-मीठे किस्से हैं । बाद में उत्तर प्रदेश की राजनीति से आजिज आ कर वह उत्तराखंड चले गए । वहां भी मुख्य मंत्री के सचिव रहे । एक समय हम लोगों का नियमित मिलना-जुलना और उठाना-बैठना होता था । मेरे घर के पास ही बटलर पैलेस कालोनी में रहते थे । कभी वह मेरे घर आ जाते , कभी हम उन के घर । मेरे लिखे पर फ़िदा रहते थे वह । नब्बे के दशक के शुरुआती दिन थे जब वह लंदन भेजे गए ट्रेनिंग पर । लंदन से भी जब तब मूड में आ कर वह फ़ोन करते रहते । जेनरली रात को । बहकते हुए वहां की किसिम-किसिम की बातें बताते । एक सुबह अचानक उन का फ़ोन आया । मैं सोया हुआ था । उन के फ़ोन से उठा और पूछा कि इतनी सुबह-सुबह ? वह बोले , हां । और संजीदा हो कर बतियाने लगे । मुझे जब मुश्किल हुई तो पूछा , आप लंदन में हैं कि आ गए हैं ? वह बोले , आ गया हूं । मैं अचकचाया और पूछा कि आप तो साल भर के लिए गए थे , इतनी जल्दी ? वह बोले , शाम को घर आइए फिर तफ़सील से बतियाते हैं ।
गया शाम को ।
अपनी तमाम दिक्कतें लंदन की बताने लगे । लेकिन ट्रेनिंग छोड़ कर अचानक भारत कैसे आ गए ? पूछने पर वह हंसे और बोले , आया नहीं , भेजा गया हूं कि फ़ेमिली को साथ ले कर वहां रहूं । तो फेमिली लेने आया हूं । किस्सा कोताह यह था कि वह जब भारत से लंदन भेजे गए तो जाने से पहले ही यहां भी एक ट्रेनिंग दी गई थी । बताया गया था कि अगर कोई अंगरेज औरत मिले तो उस से हाथ जोड़ कर मिलें । हाथ नहीं मिलाएं , गले नहीं मिलें , चूमा-चाटी नहीं करें। आदि-इत्यादि । वह एड्स के आतंक के दिन थे और कहा जाता था कि किस से भी एड्स हो जाता है । अब एक दिन किसी पार्टी में कोई अंगरेज औरत आई और हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया । इन्हों ने हाथ मिलाने के बजाए हाथ जोड़ लिया । उस औरत ने तंज किया कि हैंड शेक से इतना डरते हो , कैसे मर्द हो ? इन का भी तीन-चार पेग हो गया था । बहकते हुए बोले , हैंड शेक क्या , मैं तो तुम्हारे साथ लेग शेक भी करने को तैयार हूं , लेकिन अपने देश की परंपरा और अनुशासन से बंधा हूं । तंज के जवाब में कही यह बात इन को भारी पड़ गई। दूसरे दिन किसी भारतीय अफ़सर ने इन के लेग शेक वाली बात की रिपोर्ट कर दी । उन को तुरंत भारत जा कर अपनी फ़ेमिली ले कर ट्रेनिंग पर लौटने की हिदायत दी गई । कहा गया कि लेग शेक के लिए अपनी फेमिली ले आइए । तो तब वह फ़ेमिली लेने लखनऊ लौटे थे ।
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