विपक्ष के पास सुप्रीम मुद्दा है नरेंद्र मोदी को हटाना। इस के अलावा भी तीन चार मुद्दे हैं। राफेल , नोटबंदी , जी एस टी , बेरोजगारी । तो क्या विपक्ष ने इन मुद्दों या किसी और मुद्दे के लिए कोई जन आंदोलन किया। फ़ेसबुक , ट्यूटर , न्यूज़ चैनल आदि पर बात कर के माहौल बनाया जा सकता है , जनता को जोड़ा नहीं जा सकता। वी पी सिंह बोफ़ोर्स को ले कर पूरे देश में घूमे थे । एक बड़ा आंदोलन चलाया था तब जा कर चार सौ से अधिक सांसद के बहुमत वाले प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सत्ता को उखाड़ फेंका था। अलग बात है बोफोर्स की उन की लड़ाई सिर्फ़ सत्ता हासिल करने तक की ही रही। बोफोर्स तो फुस्स हुआ ही मंडल का चक्रव्यूह रच कर वी पी सिंह खुद भी अभिमन्यु की तरह मारे गए। अपनी कविता लिफ़ाफ़ा की तरह फाड़े गए ; पैगाम उन का/ पता तुम्हारा / बीच में / फाड़ा मैं ही जाऊंगा। बहरहाल बीते 2014 के लोक सभा चुनाव के पहले भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अन्ना आंदोलन और रामदेव की लड़ाई को भाजपा ने अपने पक्ष में हथियार की तरह इस्तेमाल किया। प्रधान मंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी नाम का एक मज़बूत उम्मीदवार खड़ा किया। नतीज़ा सामने था। भाजपा ने अकेले दम पर बहुमत हासिल किया। सिर्फ़ एक मुस्लिम तुष्टिकरण और इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ माहौल बना कर ।
लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव जीतने के लिए विपक्ष ने क्या किया ?
फर्जी जनेऊ पहन कर मंदिर-मंदिर ज़रूर घूमे राहुल गांधी। लेकिन किसी मुद्दे को ले कर कोई जन आंदोलन किया ? जनता के बीच गए ? कांग्रेस तो राफेल तक पर खुद कभी कोर्ट नहीं गई। जनता के बीच आंदोलन करना तो दूर। नोटबंदी , जी एस टी और राफेल की लड़ाई आई टी सेल बना कर सोशल साईट और न्यूज़ चैनलों पर ही लड़ती रही । बयानों का तड़का लगाती रही। ज़्यादा से ज़्यादा हिंदू , द वायर आदि के कंधे पर रख कर अपनी बंदूक चलाती रही। बाकी विपक्ष भी कांग्रेस का हमराही बन कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहा है। जन आंदोलन के लिए कभी किसी विपक्ष को ज़रूरत ही नहीं महसूस हुई। क्यों कि यह सारे मामले एकपक्षीय और बेहद कमज़ोर हैं। कुछ ख़ास पाकेट को छोड़ दीजिए तो इन सभी मामलों की कोई नोटिस भी नहीं लेता। फिर एक हवा-हवाई मुद्दा बनाया विपक्ष ने कि लोकतंत्र और संविधान खतरे में है । सो लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए नरेंद्र मोदी को हटाना ज़रूरी है। मोदी को हटाने के लिए पूरा विपक्ष एकजुट हो गया। चौकीदार चोर है की गूंज में वह गरज नहीं मिली जो होनी चाहिए थी। इस में समाई विवशता और कृत्रिमता नारे को जन-जन की जुबान नहीं बना पाया। ऐसा क्यों हुआ ? विपक्ष को इस की पड़ताल करनी चाहिए। मोदी के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सटीक आरोप विपक्ष नहीं खोज पाया। और तो और अभिनंदन की वापसी की खुशी को भी इमरान खान के शांति दूत कहने की खुंदक निकालने में खर्च कर दिया। सर्जिकल स्ट्राइक , एयर स्ट्राइक पर सुबूत की तलब में विपक्ष कब खुद ताबूत में लेट गया , उसे पता नहीं चला। पता जब चला भी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। तो भी अच्छा यह था कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक नरेंद्र मोदी को हटाने की बात पर विपक्ष एकमत था।
लेकिन चुनाव का ऐलान होते- होते पूरा विपक्ष बिखर कर आधा तीतर , आधा बटेर बन गया । तो भी कांग्रेस और विपक्ष के लक्ष्य नरेंद्र मोदी को हटाने के लिए वामपंथी लेखकों-पत्रकारों ने सोशल साईट पर डट कर मेहनत की। लेकिन मोदी विरोध में इतनी आग मूत दी कि खुद की विश्वसनीयता संकट में आ गई। चुनी हुई चुप्पियां , चुने हुए विरोध के अभ्यस्त यह लोग जान ही नहीं पाए की जनमत आग की नदी होता है। आग की नदी में कूद कर ख़ुद न सिर्फ़ झुलस गए बल्कि झुलस कर बदबू मारने लगे। एजेंडा चला कर बहस को आप कंट्रोल कर सकते हैं , माहौल बना सकते हैं। लेकिन जनमत बनाने के लिए जनता के बीच जाना पड़ता है। जनता के बीच जा कर भी अपना एजेंडा नहीं डिक्टेट करना होता। जनता का सुख-दुःख , भावना और संवेदना जाननी होती है। फिर उस हिसाब से जनता को अपनी बात से , अपने विचार से अवगत करवा कर अपनी तरफ आकृष्ट करना होता है। जनता के संघर्ष में खड़ा होना होता है।
लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा को ले कर पूरी दुनिया भारत सरकार और मोदी के फैसलों के साथ खड़ी मिलती है। पर विपक्ष और उन के सेवादार लेखक , पत्रकार यह सब नहीं देख पाते । उलटे ख़िलाफ़ खड़े हो जाते हैं। पुलवामा को इमरान खान , नरेंद्र मोदी के बीच मैच फिक्सिंग बता देते हैं। अजहर मसूद को ग्लोबल आतंकी घोषित करने पर संयुक्त राष्ट्र संघ की क्लास ले लेते हैं कि बीच चुनाव में इस की क्या ज़रूरत थी ? मोदी की साज़िश और फिक्सिंग खोज लेते हैं यहां भी। वामपंथी लेखक , पत्रकार तो अंधे हो जाते हैं। राष्टवाद का एक पुतला खड़ा कर उस को गरियाते हुए फासिज्म का अपना नैरेटिव ले कर खुद फासिस्ट बन जाते हैं। ज़मीन से कट चुके बौखलाए विपक्ष की सारी आस मुस्लिम वोट बैंक पर आ टिकती है। जातीय वोट बैंक की बैसाखी भी वह ढूंढ लेते हैं। बताइए भला मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण आप करेंगे तो बहुसंख्यक हिंदू वोट का ध्रुवीकरण भी आप खुद ही कर दे रहे हैं । वह चुप तो बैठेगा नहीं। मोदी या भाजपा को तो कुछ बहुत करना ही नहीं पड़ा इस बाबत इस बार । बस इस आग को दहकाने की थोड़ी हवा ही तो देनी है। दे दी है। भाजपा और मोदी की बिसात पर विपक्ष खुद ही खेलने के लिए प्रस्तुत हो गया। तिस पर तुर्रा यह कि नरेंद्र मोदी को हटाना है। देश , संविधान और लोकतंत्र बचाना है।
ऐसे ही बचाएंगे देश , लोकतंत्र और संविधान ? पहले खुद को बचा लीजिए। देश , लोकतंत्र और संविधान कोई फूल , पत्ती नहीं है जिसे जब चाहे कोई नरेंद्र नरेंद्र मोदी , कोई भाजपा तोड़ ले। जनता के पास अपना दिल , दिमाग और विवेक है। जैसे 1977 में जनता जान गई थी कि देश , लोकतंत्र और संविधान खतरे में हैं और जनमत ने कूद कर सब कुछ बचा लिया था। लेकिन इस के पहले जनमत को जगाने के लिए , दूसरी आज़ादी की लड़ाई लड़ने के लिए तब 1975 में जय प्रकाश नारायण कूदे थे और जनता के बीच जा कर अलख जगाई थी। इंदिरा गांधी की लाठियां खाई थीं। अत्याचार सहे थे। जेल गए थे । तमाम नेता , पत्रकार और लेखक जेल गए थे। देश भर की सारी जेलें जे पी की अगुवाई में भर गई थीं। हां , वामपंथी नेता , लेखक और पत्रकार ज़रूर जेल नहीं गए थे। क्यों कि उन की राय में काली इमरजेंसी में भी देश , लोकतंत्र , संविधान सब कुछ सुरक्षित था। इस लिए उन्हों ने उस काली इमरजेंसी का खुल कर समर्थन किया था। चौबीसों घंटे फासिज्म की माला जपने वाले वामपंथी लेखकों ने भी इमरजेंसी का समर्थन किया था। आखिर पार्टी के कमिटमेंट से वह अलग कैसे जा सकते थे । खैर , इंदिरा गांधी भी ढाई साल बाद जब दुबारा सत्ता में लौटीं 1979 में तो आंदोलन की राह पर चल कर ही , जेल जा कर ही। अटल बिहारी वाजपेयी ने भी राम मंदिर आंदोलन की राह पर चल कर ही सत्ता का स्वाद चखा । बिना आंदोलन , बिना संघर्ष के सत्ता में आने वाले चरण सिंह , चंद्रशेखर , देवगौड़ा और गुजराल की दुर्गति को प्राप्त होते हैं। देश , सविधान और लोकतंत्र यह भी जानता है।
खैर , सवाल है कि आज के विपक्ष के कितने नेता देश , लोकतंत्र और संविधान बचाने के लिए जेल गए , लाठियां खाई हैं , किसी के पास कोई व्यौरा हो तो बताए भी । अच्छा राफेल के लिए किसी ने लाठी खाई , जेल गया। वी पी सिंह और उन के साथी तो बोफोर्स के लिए लाठी भी खाए थे और बंद भी हुए थे। अन्ना हजारे भी अपने साथियों के साथ जेल गए थे। कांग्रेसियों और वामपंथियों को छोड़ दीजिए यह तो सुविधाजीवी हैं ही । न जेल जा सकते हैं , न लाठी खा सकते हैं । पर समाजवादियों की तो आदत रही है लाठी खाना , जेल जाना , आंदोलन करना। लोहिया और जे पी ने उन्हें यह सिखाया है। पर कहां ? एक लालू यादव जेल गया भी तो चारा घोटाले में , किसी आंदोलन में नहीं। दूसरा समाजवादी मुलायम यादव और उस का बेटा अखिलेश यादव कहीं जेल न चले जाएं इसी तीन , पांच में लगे हैं । बाकी बचे सोनिया , राहुल , रावर्ट वाड्रा आदि-इत्यादि तो यह लोग भी सत्याग्रह के कारण नहीं भ्रष्टाचार के कारण ज़मानत पर हैं । मायावती पर सी बी आई की तलवार निरंतर लटकी हुई है। भ्रष्टाचार के गटर में बैठे लोग क्या और कैसा आंदोलन कर सकते हैं , यह भी एक पहेली है। एक ममता बनर्जी हैं तो पुलिस कमिश्नर को जांच से बचाने के लिए मुख्य मंत्री हो कर भी धरना दे कर बैठ जाती हैं। नोटबंदी के लिए कोई ममता , कोई मायावती , कोई अखिलेश कोई केजरीवाल या राहुल गांधी बैठा क्या कहीं धरने पर ? कि जी एस टी के खिलाफ किसी ने जेल भरो आंदोलन किया ? शायद इस लिए भी इन मुद्दों पर आंदोलन करने से विपक्ष कतरा गया कि इन मुद्दों में दम नहीं था। जनता इन के साथ खड़ी नहीं होती।
वैसे भी ठेकेदारों , लायजनरों और दलालों वाली राजनीतिक पार्टियों से बयान बहादुरी ही अब हो सकती है । कोई आंदोलन , कोई संघर्ष , कोई धरना या जेल भरो आंदोलन नहीं। बताइए और इस बूते पर यह लोग नरेंद्र मोदी को हटाएंगे। देश , लोकतंत्र और संविधान बचाएंगे। क्या हौसला है , क्या सपना है , क्या जोश है । हाऊ इज द जोश नहीं पूछूंगा। यह एक सैनिक चरित्र का फ़िल्मी डायलाग भले हो , सेक्यूलरिज्म के दुकानदारों ने इसे भाजपाई डायलाग बता कर अछूत बना दिया है। अछूत तो भारत माता की जय और वंदे मातरम तक को बना दिया है इस विपक्ष ने। फिर भी उसे नरेंद्र मोदी को हटाना है। इतना कि सांप नेवलों का गठबंधन हो जाता है। मुर्गा अंडा देने लगता है। आख़िर टारगेट का सवाल है। जनता के बीच अपनी साख खो चुका विपक्ष नरेंद्र मोदी की सत्ता को हटाने के लिए इच्छा तो बहुत रखता है लेकिन अपेक्षित मेहनत और मुद्दे खोज पाने में अपनी बुद्धि भी खो चुका है। गरीबों के लिए उज्ज्वला के तहत करोड़ो ग़रीबों को नि:शुल्क गैस , पक्का मकान , शौचालय , मुद्रा योजना के तहत करोड़ो रोजगार , सड़कों का जाल , बिजली की चौतरफा पहुंच आदि योजनाओं ने विपक्ष की बोलती बंद कर रखी है। कश्मीर और राष्ट्रीय सुरक्षा के सवाल पर नंगा हो चुका विपक्ष जनता जनार्दन के बीच खलनायक बन कर उपस्थित है। लेकिन ज़मीन और जनता से कट चुके हमारे विपक्ष को इन सारी बातों की न तो सुधि है , न ख़बर। बेख़बर विपक्ष की बस एक ही धुन है नरेंद्र मोदी को हटाना है , देश लोकतंत्र और संविधान बचाना है। दिलचस्प यह कि जनता उन की इस तीव्र इच्छा को जान चुकी है , उन की इस अराजक बात को मान चुकी है , विपक्ष को इस बात का गुमान बहुत है। ख़ुशफ़हमी की इस ख़ुशबू का अब कोई करे भी तो क्या। दिक्कत यह भी है कि विकास की बांसुरी की मीठी तान और सुरीला गान विपक्ष को नहीं सुनाई पड़ता। लेकिन जनता तो सुन और समझ रही है।
Excellent analysis
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