जावेद अख्तर ने भले बहुत सारी हिंसक फ़िल्में लिखी हैं लेकिन बहुत सारे सुरीले गाने भी लिखे हैं। यह जावेद ही हैं जिन्हों ने राज्यसभा के अपने भाषण में बार-बार भारत माता की जय का उदघोष किया था। जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी की पाकिस्तान परस्ती पर हमलावर होते हुए कभी जावेद ने कहा था कि इन्हें कंधार छोड़ आना चाहिए। ऐसी ही और तमाम बातें हैं जो जावेद अख्तर के जादू को जगाती हैं। इन्हीं बातों के आधार पर जावेद को प्रगतिशील और समझदार मुस्लिम के तौर पर जानता था ।
पर जाने यह रवीश कुमार के जहरीले सवालों और संगत का असर था कि क्या था कि जावेद मुस्लिम स्त्रियों के लिए बुरका की पैरवी पर उतर आए। लगा ही नहीं कि यह वही जावेद अख्तर हैं जो मजाज लखनवी के भांजे हैं। बताऊं आप को कि मजाज ने लिखा है :
हिजाब ऐ फ़ितनापरवर अब उठा लेती तो अच्छा था
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था
तेरी नीची नज़र खुद तेरी अस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेज़ी आजमा लेती तो अच्छा था
तेरी चीने ज़बी ख़ुद इक सज़ा कानूने-फ़ितरत में
इसी शमशीर से कारे-सज़ा लेती तो अच्छा था
ये तेरा जर्द रुख, ये खुश्क लब, ये वहम, ये वहशत
तू अपने सर से ये बादल हटा लेती तो अच्छा था
दिले मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मोत का तारा है
अगर तू साजे बेदारी उठा लेती तो अच्छा था
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।
बताइए कि आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था लिखने वाले मजाज के भांजे जावेद बुरका बैन करने के सवाल पर कुतर्क रचते हुए वह घूंघट पर भी बैन करने की बात करने लगे। अब उन्हें कौन बताए कि सती प्रथा की तरह घूंघट भी अब बीते ज़माने की बात हो चली है। अपवाद ही के तौर अब घूंघट की परछाई रह गई है। खैर , कोई घूंघट करे या बुरका पहने यह स्त्री की अपनी पसंद है। कोई किसी पर बाध्यता नहीं है। खाना , पहनना अपनी पसंद से ही होता है। लेकिन मैं बहुत बेहतर जानता हूं कि पढ़ी-लिखी स्त्रियों की तो छोड़ दीजिए , अनपढ़ और गंवई औरतें भी अब गुलामी पसंद नहीं करतीं। बुरका और घूंघट भी पसंद नहीं करतीं।
घूंघट और बुरका औरतों को गुलाम बनाते हैं। गांधी तो कहते थे जेवर भी औरतों को गुलाम बनाते हैं। खैर जावेद , एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा ! जैसा अप्रतिम गीत लिख चुके हैं। औरतें अगर बुरके और घूंघट में ही होतीं तो यह गीत लिखना मुमकिन नहीं था जावेद के लिए। वैसे भी बुरके पर प्रतिबंध की बात शिवसेना जैसी मूर्ख पार्टी ने आतंकवाद को काबू करने की गरज से कहा है। फ़्रांस , यूरोप के कई देशों और श्रीलंका जैसे देशों में कई आतंकवादी घटना घटी हैं सो इन देशों में बुरका प्रतिबंधित कर दिया गया है। चीन तक में बुरका और मुस्लिम टोपी पर प्रतिबंध है। लेकिन जावेद अपनी बातचीत में बुरके पर प्रतिबंध को इस्लाम पर अत्याचार के रुप में ले रहे थे।
कन्हैया और दिग्विजय सिंह का चुनाव प्रचार कर लौटे जावेद रवीश कुमार के साथ बातचीत में किसी मुस्लिम लीग के कार्यकर्ता की तरह लेकिन बड़ी नफ़ासत से और नरम लहजे में बतिया रहे थे। नरेंद्र मोदी से नफ़रत की बदबू भी उन की बातचीत में तारी थी। नरेंद्र मोदी के इधर के इंटरव्यू पर जावेद को ख़ासा रंज था। तंज भरे लहजे में वह मोदी की बखिया बड़ी सलाहियत से उधेड़ रहे थे। मोदी से अक्षय कुमार के इंटरव्यू पर उन्हें ऐतराज बहुत था। मोदी के भाषणों पर भी उन्हें गुस्सा बहुत था । कुल ध्वनि यही थी कि मोदी झूठ बहुत बोलता है , फेंकू है और कि बहुत अहंकारी है। अटल बिहारी वाजपेयी से अपनी मुलाक़ातों का और उन के घर आने-जाने का दिलकश विवरण भी परोसा जावेद ने । फिर कहा कि यह आदमी तो कभी किसी से मिलता ही नहीं । जावेद की तकलीफ समझी जा सकती है । सत्ता के गलियारों के अभ्यस्त लोगों से यह सुविधा छिन जाना तकलीफ़देह तो होता ही है , उन के लिए।
बहरहाल रवीश से बातचीत में साध्वी प्रज्ञा के चुनाव लड़ने पर जावेद को सख्त ऐतराज था। वैसे इस पूरी बातचीत का ख़ास मकसद साध्वी प्रज्ञा और नरेंद्र मोदी की मजम्मत ही था। गो कि कन्हैया कुमार का चुनाव प्रचार कर के जावेद लौटे हैं लेकिन भूल कर भी कन्हैया कुमार का नाम भी इस बातचीत में नहीं लिया। आँचल से एक परचम बना लेने की बात करने वाले मजाज लखनवी के भांजे जावेद अख्तर का बुरके के बाबत इस तरह लीगी हो जाना हैरत में डालता है ।
मुल्लो की यही पहचान है, जब तक अकेले है तो बड़ी प्रगतिशील बात करेंगे, लेकिन अपने कौम या अपने सहयोगियों के साथ रहे गए तो अपनी औकात दिखा देते है । DNA ki problem hai
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