दयानंद पांडेय
चहुं ओर नरेंद्र मोदी की हत्या की आशंका की बहार है। क्या चैनल , क्या सोशल मीडिया , यह मीडिया , वह मीडिया , यह लोग , वह लोग। अरे भाई राहुल गांधी की भी तो हत्या हो सकती है। इस पर चर्चा क्यों नहीं हो रही। आख़िर नरेंद्र मोदी से कम नफ़रत नहीं करते लोग राहुल गांधी से। बल्कि राहुल गांधी की नफ़रत और उन से नफ़रत करने वालों का स्कोर ज़्यादा बड़ा है। मोहब्बत की दुकान में नफ़रत की डिप्लोमेसी सर्वविदित है। राहुल के दुश्मनों में खटाखट योजना से निराश लोग तो मुस्लिम समाज में ही बहुत हैं। इधर सनातनी भी बहुत नाराज हैं। लेकिन सनातनी हिंसक नहीं होते। सो ख़तरा यहां से नहीं है। सिर्फ़ गुस्सा है। हां , जिन नक्सलियों ने राहुल गांधी से तमाम उम्मीदें पाल रखी हैं , उन्हें पूरा होते न देख नक्सली हिंसा का शिकार भी हो सकते हैं राहुल गांधी। नक्सली जिस से प्रेम करते हैं , लक्ष्य प्राप्त न होने पर उस की हत्या भी कर देते हैं। यह उन की परंपरा में है। स्वभाव में है। अनेक उदाहरण हैं इस के। मार्क्स , लेनिन , स्टालिन से लगायत माओ और शी जिपिंग तक का यही क़िस्सा है। स्टालिन हिटलर से भी बड़ा तानाशाह था। हिटलर का दोस्त भी था स्टालिन। स्टालिन की नफ़रत , हिंसा और हत्या के अनेक क़िस्से हैं। लेकिन वामपंथियों ने बड़ी चालाकी से स्टालिन की जगह हिटलर का नाम आगे बढ़ा दिया। बहुतेरे लोग हिटलर को तो जानते हैं , स्टालिन को नहीं। स्टालिन द्वारा हिंसा और हत्या की कहानियां लोग नहीं जानते। स्टालिन की नफ़रत की कहानियां लोग नहीं जानते। स्टालिन अपने लोगों की हत्या भी बड़ी निर्ममता से करवा देता था। दुनिया में कहीं भी वह किसी की हत्या करवा देता था। अपनी नफ़रत का शिकार बना लेता था।
राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी की जब हत्या हुई तो वह भी नफ़रत में ही हुई थी। लिट्टे के लोग बहुत नाराज थे राजीव गांधी से। एक बार बतौर प्रधान मंत्री राजीव गांधी श्रीलंका गए तो गार्ड आफ आनर के दौरान एक श्रीलंकाई सैनिक ने राजीव गांधी पर अपनी सलामी देने वाली बंदूक़ की बट से अचानक हमला कर दिया। वह तो राजीव गांधी के पीछे चलने वाले सैनिक ने उन्हें लपक कर बचा लिया। हमला करने वाला सैनिक तुरंत गिरफ़्तार हो गया। बाद में उस सैनिक ने राजीव गांधी से अपनी नफ़रत का इज़हार करते हुए कहा कि अगर मेरे हाथ में झाड़ू भी होता तो मैं राजीव गांधी को झाड़ू से मार देता। तमिल आंदोलन को कुचलने के लिए श्रीलंका में भारतीय सेना भेजने के कारण तमिल लोग राजीव गांधी से बेहद नाराज थे। दशकों बाद अभी भी उन की नाराजगी गई नहीं है।
इंदिरा गांधी की हत्या भी नफ़रत के ही कारण हुई थी। अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में सैनिक कार्रवाई से सिख समुदाय इतना नाराज था कि इंदिरा गांधी के घर में तैनात अंगरक्षकों ने जो कि सिख थे , इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बना कर सिखों की नाराजगी दूर करने की कोशिश की कांग्रेस ने। पर सिखों में इंदिरा और उन की कांग्रेस के प्रति गुस्सा कभी गया नहीं। अलग बात है कि इन दिनों सिखों का गुस्सा और नफ़रत नरेंद्र मोदी के प्रति कहीं ज़्यादा है। इंदिरा से भी ज़्यादा। बहुत ज़्यादा।
भारत में राजनीतिज्ञों की हत्या अधिकतर नफ़रत के कारण ही होती हैं। मुग़ल काल की तरह सत्ता बदलने के लिए नहीं। गांधी की हत्या भी नफ़रत में ही गोडसे ने की थी। गांधी के मुस्लिम तुष्टिकरण और पाकिस्तान प्रेम के चलते एक बड़ा वर्ग गांधी से नफ़रत करता था। आज भी करता है। तो जो किसी को लगता है , नरेंद्र मोदी की हत्या के बाद कांग्रेस या वामपंथियों की सत्ता का आसमान साफ़ हो जाएगा तो ग़लत लगता है। बहुत ग़लत। ख़ुदा न खास्ता अगर नरेंद्र मोदी की हत्या हो गई तो भाजपा कम से कम पचास सालों तक और सत्ता में बनी रह जाएगी। अभी तो बिना हत्या के भी नरेंद्र मोदी के जीते जी तो कोई और सत्ता में आता नहीं दीखता। इसी लिए नरेंद्र मोदी की हत्या की बात जब-तब होती रहती है। अमरीका में ट्रंप पर हमले के बाद यह चर्चा बड़े ज़ोर शोर से हो रही है।
बीते समय में वामपंथी लेखिका अरुंधती राय तो कोई और चारा न देख कर नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाने के लिए संविधान में संशोधन की तजवीज ले कर प्रस्तुत थीं कि कोई भी एक बार से अधिक प्रधानमंत्री न बने। हां , राहुल गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस का क्या होगा , कहना कुछ कठिन है। दिलचस्प यह कि बाद की सहानुभूति बटोरने के लिए न नरेंद्र की कोई संतान है , न राहुल की। इंदिरा की हत्या बाद चुनाव में इंदिरा लहर चली। इतना कि विपक्ष साफ़ हो गया। पर राजीव की हत्या के बाद चुनाव में राजीव लहर नहीं चली। नरसिंहा राव की सरकार तो बनी पर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत भी नहीं मिला।
तो क्या मोदी पर भी कातिलाना हमला मुमकिन है ?
मोदी के वोटरों का मोदी से फ़िलहाल मोहभंग हो चुका है। भाजपा कार्यकर्ता नाराज हैं मोदी से। संघ प्रमुख भागवत सहित संघ के तमाम लोग मोदी से नाराज हैं। लेकिन मोदी के वोटर , भाजपा कार्यकर्ता और संघ के लोग उन की हत्या करेंगे , ऐसा सोचा नहीं जा सकता। हां , मोदी के वोटरों से भी ज़्यादा हताश मुसलमान , कांग्रेसी और वामपंथी हैं। ट्रंप पर हमला एक वामपंथी ने ही किया है। वामपंथी दुनिया भर में हताश हैं। भारत में कहीं ज़्यादा। मोदी के सामने उन की विफलता इस का बड़ा सबब है। राहुल गांधी और उन की कांग्रेस वामपंथियों के ट्रैप में बुरी तरह फंस चुके हैं। नेता प्रतिपक्ष राहुल अब कांग्रेसी नहीं , नक्सल कांग्रेसी हैं। सो अब सवाल है कि नरेंद्र मोदी की हत्या कौन-कौन लोग कर सकते हैं।
इस में प्रमुख रूप से तीन लोगों की संभावना बनती है। अव्वल तो नक्सल वामपंथी। दूसरे कोई इस्लामिक आतंकी। तीसरे कोई खालिस्तानी। तीनों मिल कर भी नरेंद्र मोदी की हत्या को अंजाम दे सकते हैं। कांग्रेस , तृणमूल , सपा , वामपंथी आदि इन को अपने बयानों से कवरिंग फ़ायर दे ही रहे हैं। कुछ कांग्रेसी हिटलर की मौत मरेगा , मोदी तेरी कब्र खुदेगी , मोदी तू मर जा जैसी बातें करते रहने में गर्व महसूस करते हैं। वह कांग्रेसी जो कभी गांधी की अहिंसा के पैरोकार थे , अब ऐसे हिंसक नारों की पैरोकारी पर आमादा हैं। अपनी शान समझते हैं।
निर्मम और नंगा सच यही है कि नरेंद्र मोदी की ज़िंदगी पल-पल ख़तरे में है। देश ही नहीं विदेश में भी नरेंद्र मोदी के दुश्मन बहुत हैं। चीन , अमरीका , कनाडा और पाकिस्तान भी नरेंद्र मोदी के ख़ून के प्यासे हैं। इस लिए कि मोदी निरंतर चीन , अमरीका , कनाडा और पाकिस्तान के हितों को चोट पहुंचा रहे हैं। आर्थिक , कूटनीतिक और सामरिक तीनों ही मोर्चे पर। यही स्थिति देश में कांग्रेस , वामपंथी , तृणमूल कांग्रेस समेत कई क्षेत्रीय दलों की भी है। इन के हितों पर भी मोदी निरंतर हमलावर हैं। तो मोदी की हत्या की योजना बननी सहज स्वाभाविक है। लेकिन यह लोग भूल जाते हैं कि मोदी अभिमन्यु नहीं अर्जुन हैं। गंगा पुत्र भीष्म पितामह को भी शर शैया पर लिटा कर , वाण से धरती भेद कर पानी पिलाने वाले अर्जुन।
और राहुल गांधी ?
राहुल गांधी का दुर्भाग्य है कि भारतीय राजनीति की वर्तमान पटकथा में वेद व्यास ने उन के लिए दुर्योधन की ही भूमिका लिख छोड़ी है। लाक्षागृह का निर्माण और द्रौपदी के चीर हरण करवाने के कलंक का ठीकरा ही उन्हें हासिल है। सत्ता नहीं। शकुनि जानता था कि अपने प्रतिशोध में इस पूरे वंश को समाप्त करना है। दुर्योधन जानता था कि उसे लड़ना है। लेकिन अर्जुन की परिजनों से लड़ने में दिलचस्पी नहीं थी। युद्ध भूमि में आ कर अर्जुन ने शस्त्र रख दिए। मुश्किल बहुत थी। अर्जुन की यह मुश्किल दूर करने के लिए , युद्ध कितना ज़रूरी है यह बताने के लिए , प्रेरित करने के लिए अर्जुन को समूची गीता सुनानी पड़ी थी श्रीकृष्ण को।
राजनीतिक हत्या भी एक अवधारणा है। राहुल गांधी के नसीब में फ़िलहाल यही बदा है। तो क्या कर लेंगे उन के किसिम-किसिम के शकुनि अंकल लोग भी। यथा दिग्विजय सिंह , मणिशंकर अय्यर , सैम पित्रोदा , के सी वेणु गोपाल , जयराम रमेश , खरगे आदि-इत्यादि भी। माता गांधारी भी बेक़रार हैं पर लाचार भी हैं। हार का भी कुटिल जश्न मनाना किसी को सीखना हो तो कलयुग के इस दुर्योधन और गांधारी से सीखे। अभी और अभी तो बस नरेंद्र मोदी की हत्या की चर्चा और योजना। मौत का सौदागर किसी को ऐसे ही तो नहीं कह दिया जाता है। बरसों बरस की मेहनत है यह। वेद व्यास ने इस अर्जुन के लिए अपनी पटकथा में में जाने कैसी मृत्यु लिखी है। मृत्यु लिखी है कि हत्या।
कौन जाने !
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