Monday, 29 October 2018

नरेंद्र मोदी के पास कलेजा नहीं है कि मंदिर बनाने के लिए क़ानून बना सकें


सच कहिए तो आज सुप्रीम कोर्ट ने राम-जन्म भूमि पर मंदिर बनाने के लिए नरेंद्र मोदी और और उन की सरकार को एक सुअवसर दे दिया है । लेकिन यह सुअवसर भाजपा पानी की तरह बहा देने पर आमादा है । बहा कर ही दम लेगी । सिर्फ़ वादों और बातों का गुब्बारा फोड़ेंगे । कपिल सिब्बल तो खुल्लमखुल्ला चाहते थे कि मामला 2019 के चुनाव बाद ही सुना जाए । लेकिन सच यह है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी भी यही चाहते रहे हैं । लेकिन पूरी ख़ामोशी से । मुट्ठी भी तनी रहे और कांख भी छुपी रहे वाले राजनीतिक प्राणायाम के साथ । तो अब तय है कि मामला चुनाव बाद ही सुना जाएगा । तारीख़ पर तारीख़ के मकड़जाल से यह मसला कभी निकलेगा भी , इस पर भी पर्याप्त संदेह है । मेरा तो स्पष्ट मानना है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को चुनाव बाद भी तारीखों में ही उलझाए रखेगा । फ़ैसला देने की हिम्मत नहीं है सुप्रीम कोर्ट में । यह बहुत नाज़ुक मामला है ।

जो भी हो नरेंद्र मोदी को सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेश लाने की चुनौती दे दी है । तो क्या नरेंद्र मोदी अध्यादेश ला सकते हैं ? मेरा मानना है कि नहीं । इस देश में इमरजेंसी लगाना तो आसान है लेकिन राम मंदिर पर अध्यादेश लाने के लिए 56 इंच का सीना नहीं बहुत बड़ा कलेजा चाहिए । जो नरेंद्र मोदी के पास फ़िलहाल नहीं है । जी एस टी या एस सी एस टी एक्ट नहीं है राम मंदिर । क्यों कि मुसलमान देश के सवर्ण नहीं हैं । सवर्णों जैसी सहनशीलता नहीं है मुसलमानों में । बइठब तोरे गोद में उखारब तोर दाढ़ी की रवायत वाले हैं यह लोग । अध्यादेश आते ही पूरा देश दंगों की आग में झुलस कर मिलेट्री के हवाले हो जाएगा । कत्लेआम को रोकना , समय को रोकना होगा । अगर सरकार अध्यादेश लाती भी है तो कत्लेआम से पहले , अध्यादेश लाने से पहले पूरे देश में मिलेट्री उतार कर ही अध्यादेश लाए ।

खैर एक वाकया याद आता है । उन दिनों एक अख़बार में रिपोर्टर था । होम डिपार्टमेंट भी मेरी बीट थी । रोज ही प्रिंसिपल सेक्रेटरी होम शाम को प्रेस को ब्रीफ करते हैं । प्रदेश की क़ानून व्यवस्था के बाबत । तो एक दिन जब पहुंचा प्रेस ब्रीफिंग के लिए तो देखा कि प्रिंसिपल सेक्रेटरी राजीव रत्न शाह के कमरे में पहले ही से कुछ लोग बैठे हुए हैं । पता चला कि यह लखनऊ के बड़े व्यापारी लोग हैं । हुआ यह था कि उन्हीं दिनों एक व्यवसाई रस्तोगी के बेटे का अपहरण ठीक एस एस पी रेजिडेंस के सामने से हुआ । बेटे को बचाने के लिए रस्तोगी खुद दौड़ पड़े । अपहरणकर्ताओं ने उन्हें वहीँ गोलियों से भून दिया और उन के बेटे को ले कर चले गए । बाद में करोड़ो रुपए की फिरौती दे कर ही रस्तोगी परिवार का यह बेटा छूटा था । श्रीप्रकाश शुक्ला गैंग की यह कारस्तानी थी । जो उन दिनों आग मूते था ।

खैर पूरे शहर सहित लखनऊ के व्यवसाइयों में भारी गुस्सा था । तो यह व्यवसाई प्रमुख सचिव शाह के पास हथियारों के लाइसेंस की मांग को ले कर आए थे । शाह बहुत ही शालीन और पालिश्ड आदमी थे । व्यापारियों का ज्ञापन पढ़ते ही उन्हों ने व्यापारियों को हथियार का लाइसेंस देने की मांग को स्वीकार कर लिया । व्यापारी उस दुःख की घड़ी में भी ख़ुश हो गए । चाय शुरू हो गई । चाय के समय एक पत्रकार ने एक व्यवसाई को बधाई देते हुए कि भाई साहब लाईसेंस तो आप लोगों को अब मिल ही जाएगा । आप लोगों के पास पैसा भी है सो हथियार भी ख़रीद ही लेंगे । पर यह बताइए कि यह हथियार आप लोग चलाईएगा कैसे ? व्यापारी बोला , हथियार चलाने की ट्रेनिंग ले लेंगे , कोई आदमी रख कर । पत्रकार ने कहा , चलिए यह भी ठीक है । आप लोग कोई आदमी रख कर हथियार चलाना सीख भी लेंगे । पर जब कभी हथियार चलाने का मौका आएगा तो हथियार चलाने के लिए जो कलेजा चाहिए , वह कलेजा कहां से लाएंगे ? व्यापारी यह कलेजे वाली बात सुनते ही सन्न हो गया । कुछ और व्यापारियों से इस पर खुसुर फुसुर बात की और अचानक सारे व्यापारी उठ कर खड़े हो गए । हाथ जोड़ कर बोले , सारी सर , हम लोगों को किसी हथियार का कोई लाइसेंस नहीं चाहिए । और सभी व्यापारी चुपचाप चले गए ।

सुप्रीम कोर्ट , भाजपा और नरेंद्र मोदी की स्थिति भी कमोवेश यही है । इन में से किसी एक के पास कलेजा नहीं है । आतंकवादियों की सुनवाई के लिए आधी रात कोर्ट खोल कर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट के पास कलेजा नहीं है कि इस मसले पर दैनंदिन सुनवाई कर वह कोई फ़ैसला कर सके । जी एस टी और एस सी एस टी एक्ट पर जान लड़ाने वाली भाजपा , नरेंद्र मोदी और उन की सरकार के पास भी वह कलेजा नहीं है कि वह अध्यादेश ला कर , क़ानून बना कर मंदिर निर्माण शुरू करवा सके । राम जन्म-भूमि का मसला अब इन सब के लिए महज़ फुटबाल है । आप इन का खेल देखते रहिए । यज्ञोपवीतधारी राहुल गांधी और उन की कांग्रेस भी इस खेल की बड़ी खिलाड़ी है । पेनाल्टी कार्नर मारना किसी को सीखना हो तो कांग्रेस से सीखे ।

1 comment:

  1. "करवट लेने को ही थे की कमर में कीड़ा काट लिया",वस्तुतः यहीं स्थिति है लुटीयन के टिल्ले के पास वाले स्थान से बैठकर देश को सब्ज़बाग व झांसे में रखने वाले जननायकों और उनकी मंडलियों का,छिद्रान्वेषी लेख|

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