Tuesday, 15 March 2016

खिड़कियां प्यार की खुल गईं मधुमास में

फ़ोटो : गौतम चटर्जी

ग़ज़ल / दयानंद पांडेय

प्यार का पक्षी कब उड़ता नहीं आकाश में 
खिड़कियां प्यार की खुल गईं मधुमास में 

हर दिन हर क्षण तुम्हारी याद लहराती है
सुगंध बन मन में भर जाओ सांस-सांस में

हवाएं सोने नहीं देतीं कलेजा काढ़ लेती हैं
बहकती हुई ही आ जाओ इस मधुमास में

सोचता हूं तुम्हारे घर चला आऊं पूजा करूं  
मंदिर में मन भटकता है बहुत मधुमास में

कीर्तन तुम्हारा कर रहा घर में ही बैठ कर
आओ तुम भी मिल जाओ इस मधुमास में

[ 15 मार्च , 2016 ]

3 comments:

  1. Pyari si aur behtreen rachna ke liye badhayi

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  2. Pyari si aur behtreen rachna ke liye badhayi

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  3. हवाएं सोने नहीं देतीं कलेजा काढ़ लेती हैं
    बहकती हुई ही आ जाओ इस मधुमास में

    बेहतरीन लिखा

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