Tuesday, 29 March 2016

और तो और ललमुनिया की माई बदल गई



ग़ज़ल / दयानंद पांडेय 

रंगत बदली सूरत बदली मिजाज बदला गांव की हवा बदल गई
होली दीवाली बदली और तो और ललमुनिया की माई बदल गई

लेखपालों ने पहले बदला था चकबंदी में अब नेता बन बिल्डर आए हैं
प्लाटिंग शुरु खेत बाग़ में पाट रहे पोखर सिंघाड़े की लतर बदल गई

वह खोज रहे गांव में गांव की बानी हवा सुहानी कुछ भी नहीं मिला
ट्रैक्टर आए बैल गए खलिहान गए कंबाईन आई तो माटी बदल गई

आहिस्ता आहिस्ता बदल रहा गांव गांव का पानी और  जवानी भी
पहले डाल कटी बाग़ के पेड़ कटे फिर आने जाने की राह बदल गई

धीरे धीरे चिन्ह मिटे प्रतीक बदले बुजुर्ग पीपल बरगद हो गए छू मंतर
शहर की आग में जलते गांव में एक झटके से  सारी परंपरा बदल गई

तोता मैना मछली मेढक गिलहरी गौरैया सब सांस थाम कर डरे हुए
कोयल गाती थी झूम झूम जिस घनेरे बाग में वह अमराई दहल गई

न भोजपुरी है न फ़िल्मी है सारे गाने ही गायब हुए विकास की आंधी में
चुनाव बीतते ही पीपल की तरफ से बहने वाली मस्त पुरवाई बदल गई

कहां जाएं किस से रोएं किस से गाएं कौन सुनेगा घायल गांव का गाना 
नेता बिल्डर मीडिया का नेक्सस है तो फिर अख़बारों की ख़बर बदल गई

पहले नदी की धारा बदली फिर सूख गई धीरे से नदी नाव मिट्टी में धंसी
पुल बनने का बजट आया ठेकेदार स्कार्पियो से गांव की चौहद्दी बदल गई

भैस गाय बैल बछिया गांव के भूगोल से सब के सब गायब दूध दही सपना 
विकास आ गया है शहर से गांव में जब से आने जाने की पगडंडी बदल गई

घाट वही हैं नाव वही पंडे पुजारी सब वही लेकिन आने जाने वाले हुए नए   
पूजा पाठ भी बहुत पुराना लेकिन आरती करवाने वालों की मंडी बदल गई

[ 30 मार्च , 2016 ]

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर सार्थक सामयिक चिंतन प्रस्तुति

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  2. आहिस्ता आहिस्ता बदल रहा गांव गांव का पानी और जवानी भी
    पहले डाल कटी बाग़ के पेड़ कटे फिर आने जाने की राह बदल गई

    कटु सत्य।

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