और अब रिपब्लिक पर तो खैर अर्णब गोस्वामी ने अपनी चीख-पुकार और बदतमीजी की सारी हदें पार कर दी हैं। वह अचानक किसी से कह देंगे , आप खड़े हो जाइए और यह देखिए वह खड़ा भी हो जाता है। बैठ जाइए कह देते हैं तो वह बैठ जाता है। मनमुताबिक बोल रहा हो तो बोलने देंगे नहीं बोलने ही नहीं देंगे। उलटे कह देंगे , तुम चोर हो। तुम देशद्रोही हो। तुम गद्दार हो। चमचे हो। सोनिया सेना के हो। आदि-इत्यादि। बस मां , बहन की गाली भर नहीं देते। बाक़ी सब। समझ नहीं आता कि इस कदर बेइज्जत होने के लिए अर्णब गोस्वामी के शो पर लोग जाते ही क्यों हैं।
चीख-पुकार रवीश भी करते हैं और अर्णब गोस्वामी भी। रवीश खीझते और झल्लाते भी बहुत हैं। पर रवीश अपने एजेंडे में नमक मिर्च बहुत तेज़ नहीं रखते। एक परदेदारी रखते हैं। जब कि अर्णब का एजेंडा खुली किताब की तरह सामने रहता है। कह सकते हैं कि वह सारे कपडे उतार कर खड़े रहते हैं। बतर्ज हमाम में सभी नंगे हैं। अर्णब सारे कार्ड खोल कर खेलते हैं। याद रखिए कि अर्णब गोस्वामी भी एन डी टी वी के ही प्रोडक्ट हैं। और रवीश कुमार अभी भी एन डी टी वी में हैं।
अर्णब गोस्वामी और रवीश कुमार दोनों ही एजेंडाधारी हैं। लेकिन इन दोनों में एक बड़ा फर्क यह है कि अर्णब गोस्वामी सत्ता की आंख से काजल इस दबंगई से निकाल कर उस के चेहरे पर पोत देते हैं कि सत्ता का चेहरा काला पड़ जाता है। कहिए कि अर्णब गोस्वामी सत्ता के मुंह पर कालिख पोत देते हैं , उसी की आंख से काजल निकाल कर। आप मानिए न मानिए अर्णब गोस्वामी ने महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार की नींद उड़ा दी है। एक पर एक मामला उठा कर उद्धव ठाकरे सरकार का जीना हराम कर दिया है। तमाम लेखक पत्रकार कहते नहीं अघाते कि मीडिया को विपक्ष की भूमिका में रहना चाहिए। यह लोग बताएंगे कि रवीश कुमार या एन डी टी वी विपक्ष की भूमिका में , अगर हैं तो केंद्र या कितनी प्रदेश सरकारों ने उन पर पुलिस में रिपोर्ट या मुकदमे दर्ज किए हैं ? अर्णब गोस्वामी और रिपब्लिक भारत पर तो महाराष्ट्र सरकार ने पुलिस रिपोर्ट और मुकदमों की बरसात कर दी है। तो क्या मुफ्त में ? कि शौकिया ?
इस बीच अर्णब गोस्वामी ने कुछ स्टिंग भी दिखाए हैं जिन में महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मिनिस्टर और एन सी पी के नेता नवाब मलिक तो कह रहे हैं कि अर्णब गोस्वामी को इतना परेशान कर दिया जाएगा कि वह आत्महत्या कर लेगा। एक कांग्रेस नेता कह रहे हैं कि इतने मामलों में अर्णब को फंसा दिया जाएगा कि वह जेल से निकल नहीं पाएगा। यह सब क्या है ? टी आर पी के खेल में कौन चैनल नहीं शामिल है। फिर क्या रिपब्लिक भारत सिर्फ मुंबई में ही देखा जाता है। बाकी देश में नहीं ? तो मुकदमा तो पूरे देश में लिखा जाना चाहिए। फिर क्या बाकी चैनल दूध के धोए हुए हैं ?
असल में पालघर , सुशांत सिंह राजपूत और कंगना रानावत जैसे मामलों में अर्णब ने जिस तरह उद्धव ठाकरे के खिलाफ आक्रमण कर , छीछालेदर की है , और टी आर पी में बढ़त ली है , उस से उद्धव ठाकरे सरकार पूरी नंगी हो कर बौखला गई है। ठीक है कि अर्णब गोस्वामी ने यह सब अपने एजेंडे के तहत किया है। कोई दो राय नहीं। मैं पूरी तरह इस बात से सहमत हूं। पर सवाल यह है कि एन डी टी वी और रवीश कुमार का एजेंडा भी नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ खुल्ल्मखुल्ला है। बीमारी की हद तक। मोदी वार्ड के सारे मरीज इसी लिए एन डी टी वी और रवीश कुमार पर फ़िदा हैं। पर यह मुट्ठी भर लोग एन डी टी वी की टी आर पी को उछाल नहीं दे पाते। अच्छा रवीश कुमार के तमाम शीर्षासन के बावजूद कितने मुकदमे किए हैं मोदी सरकार ने रवीश कुमार पर ? कितने हमले करवाए हैं ? सोशल मीडिया पर गाली खाने का रोना रवीश जब-तब ज़रूर रोते हुए दीखते हैं। इस का दो ही मतलब है कि या तो सरकार पर आप हमला करने में कामयाब नहीं हैं। सरकार पर चोट नहीं ठीक से कर पा रहे। सिर्फ लफ्फाजी की ढोल बजा रहे हैं। या सरकार आप के प्रति फिर भी सहिष्णुता अख्तियार किए हुए है।
एक बात यह भी है कि रवीश के पास समाचार की जगह विचार ज़्यादा होते हैं। जिसे लफ्फाजी की जुगाली में परोस कर वह मोदी विरोधियों की मिजाजपुर्सी करते हैं। ईगो मसाज करते हैं , अपना भी और प्रणव रॉय का भी। सीधे-सीध हमला हमला कभी नहीं करते मोदी सरकार पर अर्णब की तरह। सेफर साइड बहुत चलते हैं। कुछ इस तरह कि मुट्ठी भी तनी रहे और कांख भी छुपी रहे। खैर , जो भी हो अर्णब गोस्वामी और रवीश कुमार दोनों ही एजेंडाधारी हैं। पर अर्णब टी आर पी में टॉप पर हैं और रवीश टी आर पी में बॉटम पर। लेकिन मुझे दोनों ही का एजेंडा बिलकुल नहीं भाता। दोनों एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं। कोई किसी का लाऊडस्पीकर है , कोई किसी का। स्वाधीन कोई नहीं। कई बार तो दोनों ही को देख कर लगता है कि अगर यह अभिनेता नहीं हैं , अभिनय नहीं कर रहे हैं तो ज़रूर इन दोनों को किसी योग्य मानसिक चिकित्सक की सख्त ज़रूरत है।
नहीं इन्हीं अर्णब गोस्वामी को एक समय मोदी की निंदा करते और योगी को बहुत बड़ा खतरा , डेंजर बताते हुए भी अर्णब गोस्वामी को देखा है। पर कभी किसी बिंदु पर कांग्रेस या राहुल गांधी की आलोचना करते हुए किसी ने रवीश कुमार या एन डी टी वी को देखा हो तो बताए भी। कभी किसी ममता बनर्जी , किसी अखिलेश यादव , किसी तेजस्वी यादव की आलोचना करते रवीश को किसी ने देखा हो तो बताए। दरअसल पत्रकारिता दोनों ही नहीं कर रहे। अपने-अपने राजा का बाजा बजा रहे हैं। अर्णब गोस्वामी भी , रवीश कुमार भी। राजा बदलते इन को देर नहीं लगती। राजा ही इन का एजेंडा तय करते हैं यह लोग नहीं। यह पत्रकार नहीं। पत्रकारिता के नाम पर दलाल लोग हैं। राजा की चाकरी करने वाले लोग। गोरख पांडेय याद आते हैं :
राजा बोला रात है
रानी बोली रात है
मंत्री बोला रात है
संतरी बोला रात है
सब ने बोला रात है
यह सुबह सुबह की बात है
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