सुधाकर अदीब के कथारस में भींगे कथा विराट की कथा
में इतनी सारी कथाएं हैं कि इसे पढ़ कर मन इनसाइक्लोपीडिया , इनसाइक्लोपीडिया
होने लगता है। विलायत पलट एक कैरियरिस्ट वल्लभ भाई पटेल जो शानोशौकत से रहता है , क्लब की जिंदगी जीता हुआ , सिगार पीता हुआ , ब्रिज
खेलता हुआ अहमदाबाद की कोर्ट में शानदार प्रैक्टिस करता हुआ अंगरेज जजों से
लड़ते-लड़ते कब एक खेड़े की लड़ाई लड़ता हुआ किसानों की लड़ाई लड़ने लगा , पता
ही नहीं चलता। किसानों की लड़ाई लड़ते-लड़ते गांधी के साथ जुड़ कर स्वतंत्रता संग्राम
का योद्धा बन जाता है। गांधी का विश्वसनीय साथी बन जाता है। वह गांधी जिस की कभी वह बहुत नोटिस नहीं लेता था। गांधी अहमदाबाद
क्लब में आते हैं , ब्रिज खेलते पटेल की मेज़ के पास से गुज़र जाते हैं और पटेल उन की
नोटिस नहीं लेते। उन के सम्मान में खड़े नहीं होते । गांधी की सभा में
भी नहीं जाते। बाद के दिनों में पटेल अपने एक दोस्त के साथ गांधी के आश्रम भी जाते
हैं पर गांधी के लिए बहुत सम्मान नहीं जगा पाते अपने मन में। अनमनस्क रहते हैं। तो क्या पटेल के प्रधान
मंत्री न बन पाने का यह प्रस्थान बिंदु था। यही बीज बन गया गांधी के मन में और कि
गुजराती होने के बावजूद , विश्वस्त होने के बावजूद गांधी एक भी वोट न पाने वाले नेहरू को
प्रधान मंत्री बनाना क़ुबूल करते हैं ? सर्वाधिक 12 वोट
पाने के बावजूद वह पटेल की बलि ले लेते हैं। सुधाकर अदीब के कथा विराट का यह
निष्कर्ष भले न हो पर इस बात के पर्याप्त बीज वह ज़रूर कथा विराट में छोड़ गए हैं।
कथा विराट पर मैं अपनी बात कहते हुए |
लक्ष्मण की कथा के बहाने राम कथा का अमृतपान करवाते हैं वह। रामकथा को जिस तरह सुधाकर
अदीब मम अरण्य में बांचते
हैं , ऐसे जैसे हम कोई कथा नहीं पढ़ रहे हों , सिनेमा देख रहे हों।
तब जब कि राम कथा , लक्ष्मण की मुश्किलें हम अनगिन बार पढ़ और सुन चुके हैं , तब
भी लगता है जैसे मम अरण्य में कुछ नए
ढंग से बांच रहे हों। मम अरण्य का नशा अभी टूटा भी नहीं था कि सुधाकर अदीब शाने तारीख़ ले कर उपस्थित हो गए। भारत को पहला इंफ्रास्ट्रक्चर देने
वाले अफगानी शासक शेरशाह सूरी की ज़िंदगी का रोजनामचा , उस का
संघर्ष , उस की सफलता और शान की जो रफ्तार परोसी है सुधाकर अदीब ने वह अदभुत है। शाने तारीख की शान और रफ्तार अभी जारी ही थी कि
यह लीजिए मीरा दीवानी को गाते हुए रंग राची ले कर सुधाकर अदीब हाजिर हो गए।
विश्वनाथ त्रिपाठी जैसे संत और मार्क्सवादी आलोचक रंग राची को देसी घी के लड्डू
बताने लगे। रंग राची की दीवानगी और उस का जादू अभी उतरा भी नहीं था कि सरदार पटेल
की कथा को बांचते हुए कथा विराट की कथा ले कर सुधाकर अदीब अब उपस्थित हैं। मतलब छह साल में
चार कालजयी उपन्यास कोई तपस्वी लेखक ही लिख सकता है। इसी लिए कृपया मुझे फिर से
कहने की अनुमति दीजिए कि सुधाकर अदीब एक तपस्वी लेखक हैं।
कथा विराट पर बोलते लेखक सुधाकर अदीब |
कथा विराट पर संबोधित करते आर विक्रम सिंह |
' ये सभी आरोप आप के कान में अवश्य मृदुला साराभाई द्वारा आप के कान
में डाले गए होंगे , क्यों कि उन्हों ने मेरे ऊपर अपशब्दों की बौछार करने को अपना
मन-बहलाव बना लिया है। वे यह जी मतलाने वाला प्रचार कर रही हैं कि मैं जवाहर से
छुटकारा पाना चाहता हूं और एक नई पार्टी बनाना चाहता हूं। उन्हों ने बहुत सी जगहों
पर इस ढंग से बातें की हैं। वे ऐसे किसी विचार को मानने के लिए बिलकुल तैयार नहीं
हैं , जो जवाहरलाल के विचार से भिन्न हों। '
जिन्ना और माउंटबेटन के नित्य प्रति छल कपट के बीच पिसते लाचार गांधी
की कथा को भी सुधाकर अदीब ने विराट कथा में गूंथा है। लाचार गांधी तो जिन्ना
को देश सौंप देने की बात भी माऊंटबेटन से कर बैठते हैं। फिर दूसरे ही क्षण उन से
अपना वीटो पावर लगाने को भी कह देते हैं। सुधाकर अदीब लिखते
हैं :
' माउंटबेटन हतप्रभ थे। एक तरफ तो यह बूढ़ा व्यक्ति हम से भारत से चले
जाने को कह रहा है और दूसरी तरफ जिन्ना को देश की बागडोर थमा देने को कह रहा है।
ऊपर से मुझ से वायसराय की वीटो-पावर के इस्तेमाल की बात कर रहा है। आखिर ये चाहता
क्या है ? '
नेहरू और पटेल में बंटवारे को ले कर जद्दोजहद होती है। जिन्ना का
अड़ियल रवैया नेहरू की सत्ता पिपासा में दोनों ही जीत जाते हैं। पटेल भी नेहरू को
साफ़ बता देते हैं कि , अब विभाजन टालने का कोई औचित्य नहीं है। मुस्लिम लीग के मंत्रियों को
विध्वंसक बताते हुए बता देते हैं कि ये लोग मुसलमानों को निरंतर भड़का कर देश में
आग लगवाएंगे। एक जगह सुधाकर अदीब लिखते हैं :
' सरदार पटेल उठे। सिर पकड़े बैठे नेहरू जी को देख कर उन्हें तरस आया।
एक बड़े भाई की तरह वे उठ कर नेहरू के पास गए। उन के कंधे पर अपना हाथ रखा। पंडित
नेहरू रो पड़े। '
बंटवारे के बाद की त्रासदी को भी कथा विराट में बड़ी बेकली से बांचा
गया है। रियासतों और राज्यों को भारत में विलीन करने के विवरण भी विराट कथा में
विस्तार से उपस्थित हैं। सुधाकर अदीब ने विवरण देते हुए लिखा है कि भारत के संघ
में तदनुसार 565 में से 555 रियासतों को विलीन होना था। अंत में एक ही दुखता दांत बचा हैदराबाद की रियासत। निजाम हैदराबाद की लुकाछुपी और संघर्ष के भी कई
विवरण कथा विराट में उपस्थित हैं। नेहरू के तमाम विरोध के बावजूद सैन्य अभियान चला
कर हैदराबाद के निजाम को 17 सितंबर , 1948 को फतह करने में पटेल ने कामयाबी हासिल की। रियासतों को भारत में
मिलाने के क्रम में जयपुर में पटेल का भाषण अविस्मरणीय है। तमाम मोर्चों पर लड़ते हुए , एक नया भारत गढ़ते हुए सरदार पटेल 15 दिसंबर , 1950 को 75 बरस की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से दुनिया छोड़ गए। चीन धोखा देगा , इस
बाबत भी लिख कर नेहरू को आगाह कर गए थे पटेल लेकिन नेहरू पटेल की बात मानते कहां थे भला ।
बड़ी बात यह भी है कि सुधाकर अदीब ने विराट कथा को
जाति , धर्म , क्षेत्रीयता और सांप्रदायिक पचड़ों में पड़ने से अनायास बचा लिया है। इस के लिए
उन्हें कोई बहुत कोशिश नहीं करनी पड़ी है तो इस लिए भी कि सरदार पटेल के जीवन में , उन की राजनीति में इन सब चीज़ों के लिए कोई जगह नहीं थी। अलग बात है
आज की राजनीति में पटेल जातिवादी खाने में बंट चुके हैं।
सरदार पटेल भाग्यशाली थे कि उन के पास एक विदुषी बेटी मणिबेन थी जो
उन के संघर्ष में कंधे से कंधा मिला कर खड़ी थी , सहयोग और सेवा के
लिए सर्वदा उपस्थित। पर सरदार पटेल इस मामले में भी
भाग्यशाली हैं कि उन के पास सिर्फ मणिबेन जैसी साहसी बेटी ही नहीं एक तपस्वी और साधक लेखक
सुधाकर अदीब भी है। जिस सुधाकर अदीब ने कथा विराट में सरदार
पटेल की अनन्य कथा लिख कर उन की लौह कथा को इस तरह जीवंत कर दिया है कि यह कथा
सोने की कथा बन गई है। इतनी कि विराट कथा की तमाम कथाएं आने वाले दिनों में दंत कथा बन कर दिग दिगंत
में झूमेंगी। विचरेंगी। जानी-पहचानी कथा को रोमांचक और दिलचस्प अंदाज़ में 536 पृष्ठों में
लिखना आसान नहीं है। सरदार पटेल का
जीवन इतना विराट और अनुभव इतना विस्तृत है , स्वतंत्रता संग्राम इतना विस्तार लिए
है कि इसे पांच लाख पन्नों में भी लिखा जाए तो कम है । लेकिन बिना कुछ छोड़े , सब
कुछ समेटते हुए 536 पृष्ठ में कथा विराट को लिखना भी एक साधना ही है।
मैं तो चाहता हूं कि अपने अगले उपन्यास का विषय सुधाकर अदीब अपने वतन कश्मीर को बनाएं। अपने कश्मीरी पंडितों के
विस्थापन की व्यथा पर लिखने के लिए जिस शोध , अध्ययन
, मेहनत और भावनात्मकता की लौ की ज़रूरत है , उसे
मैं सिर्फ़ और सिर्फ़ सुधाकर अदीब में ही देखता हूं , किसी और में नहीं।
पांडेय जी ने कथा विराट पर एक सुंदर ललित निबन्ध लिखा है ,यह काव्यात्मक आनंद देने वाली समीक्षा है । यह रचना की पुनर्रचना है । आखिर आलोचना को रचना की पुनर्रचना ही तो कहा गया है । एक रचनाकार द्वारा ही ऐसा कर पाना संभव है । यह एक रिपोर्ताज की तरह भी है आखिर एक पत्रकार की लिखनी का कमाल है । कथा विराट की यह विराट समीक्षा है , यह सहृदय द्वारा रचना के आस्वाद की फलश्रुति है । सदानंद गुप्त ।
ReplyDeleteकथा विराट से इतना सुंदर परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत आभार, पुस्तक पढ़ने की उत्सुकता समीक्षा पढ़ते-पढ़ते ही बढ़ती जा रही थी. हमारे सभी जननायक आखिर तो मनुष्य ही थे, ईर्ष्या, द्वेष आदि के शिकार वे भी होते होंगे. वे सभी हमारे लिए परम आदरणीय हैं.
ReplyDeleteआपकी इस सारगर्भित समीक्षा ने मेरा काम सहज कर दिया। आपने उपन्यास का मर्म स्पर्श किया है और उसे यथावत अभिव्यक्त किया है। सचमुच एक सच्चा कथाकार दूसरे कथाकार के श्रम के महत्त्व और सोच के सूत्र को बेहतर ढंग से समझ सकता है। अत्यंत आभार।
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