ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
अभिनय हो नहीं पाता सो सीन से निकल लेता हूं
संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं
संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं
दिख जाते हैं अब भी कभी कभार वह चौराहे पर
सिगरेट सुलगाता हूं सुलगता हूं और चल देता हूं
जो मिलते कम जलाते ज़्यादा उन से दूरी भली
होता मुश्किल है लेकिन फ़ैसला अटल लेता हूं
होता मुश्किल है लेकिन फ़ैसला अटल लेता हूं
सपना मुहब्बत मरना जीना गगन बिहारी बातें हैं
बहुत प्यार आता है तो दर्पण देख मचल लेता हूं
बहुत प्यार आता है तो दर्पण देख मचल लेता हूं
मौसम उदासी मूड तनहाई और तंज में डूबी बात
याद करता हूं बेसबब बिना वजह उछल लेता हूं
आकाश उड़ान गुमान सब दुःख देने के लिए बने
कहना सुनना बेमानी बर्फ़ की तरह गल लेता हूं
बहुत प्यार कर लेने के बाद पर्वत बन जाती है वह
मुश्किल हो जाती जब बहुत समंदर में ढल लेता हूं
जल जंगल ज़मीन सब अपने हैं बस एक वह नहीं
एक सपना बुनता हूं स्वेटर की तरह पहन लेता हूं
घुटन बहुत हो जाती ज़िंदगी में तो कभी रोता नहीं
मन की खिड़की सारी बहुत प्यार से खोल लेता हूं
जैसे वृक्ष में कोंपल जैसे दूब में दूध जैसे नभ में सूर्य
तुम्हारी श्रद्धा में डूब अपनी अंजुरी भर जल लेता हूं
[ 7 मई , 2016 ]
लाजवाब ग़ज़ल।
ReplyDeleteअभिनय हो नहीं पाता सो सीन से निकल लेता हूं
संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं
दिख जाते हैं अब भी कभी कभार वह चौराहे पर
सिगरेट सुलगाता हूं सुलगता हूं और चल देता हूं
लाजवाब ग़ज़ल।
ReplyDeleteअभिनय हो नहीं पाता सो सीन से निकल लेता हूं
संबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं
दिख जाते हैं अब भी कभी कभार वह चौराहे पर
सिगरेट सुलगाता हूं सुलगता हूं और चल देता हूं
अभिनय हो नहीं पाता सो सीन से निकल लेता हूं
ReplyDeleteसंबंधों में लड़ नहीं पाता बस रास्ता बदल लेता हूं
बहुत सुन्दर