पेंटिंग : डाक्टर लाल रत्नाकर |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
पाखंड के दरबान तुम्हारी ऐसी-तैसी
सहिष्णुता के शैतान तुम्हारी ऐसी तैसी
दुनिया दहल रही है फिर भी तुम ख़ामोश
डबल स्टैंडर्ड के निगहबान तुम्हारी ऐसी तैसी
आतंकवादियों की पैरवी में तुम लगाते जी जान
मनुष्यता को करते लहूलुहान तुम्हारी ऐसी तैसी
धर्म तुम्हारा हथियार , मनुष्यता तुम्हारी दुश्मन
हिप्पोक्रेसी की हो खान तुम्हारी ऐसी तैसी
जाति तुम्हारा वोट , दंगाई तुम्हारी ताकत
निरंकुश सत्ता के सुलतान तुम्हारी ऐसी तैसी
सरकार तुम्हारी रखैल , देश तुम्हारे ठेंगे पर
कारपोरेट के बेईमान तुम्हारी ऐसी तैसी
कुत्ता तुम्हारा दोस्त , गाय तुम्हारी दुश्मन
दोगलई है पहचान तुम्हारी ऐसी तैसी
[ 14 नवंबर , 2015 ]
यथार्थ है।
ReplyDeleteसटीक एवं सार्थक कविता .....सर
ReplyDeleteधर्म तुम्हारा हथियार , मनुष्यता तुम्हारी दुश्मन
ReplyDeleteहिप्पोक्रेसी की हो खान तुम्हारी ऐसी तैसी
बहुत खूब
का लिखे हैं प्रभु!
ReplyDeleteहमको तो बनारस में सुनि हुआ एक ठो बहुतै जनप्रिय कविता याद आ गया:
बड़े-बड़े बिद्वान् तुम्हारी-----/-