मेरे उपन्यास लोक कवि अब गाते नहीं में एक उपकथा है दफ़ा 604 की । वर्ष 2003 में यह उपन्यास छपने के बाद लगा कि यह एक अलग और स्वतंत्र कथा थी जो उपन्यास में रह कर दब सी गई है । लेकिन कोई कथा कहीं भी रहे दबती कहां है भला ? पढ़ने वाले लोग दबने नहीं देते । राजकमल प्रकाशन ने क़ानूनी दांव-पेंच से जुड़ी कहानियों के दो अलग-अलग संग्रह अभी , बिलकुल अभी छापे हैं । जिन में से एक संग्रह का नाम ही मेरी उस उपकथा पर रखा है दफ़ा 604 । और यह उपकथा बतौर एक कथा इस संग्रह में छापा है । इस संग्रह में प्रेमचंद, भीष्म साहनी , हृदयेश , विष्णु प्रभाकर , अभय, अरविंद जैन , मीनाक्षी स्वामी और दयानंद पांडेय की कहानियां संकलित हैं ।
दूसरे संग्रह मिस्टर क़ानूनवालाज चैंबर में भी वर्ष 2000 में कथादेश में धारावाहिक छपी मेरी एक लंबी कहानी मुजरिम चांद का एक हिस्सा वकील साहब की किताब शीर्षक से छापा है । उत्तर प्रदेश में कभी राज्यपाल रहे रोमेश भंडारी से जुड़ी कथा है यह । इस संग्रह में प्रेमचंद, विश्वंभरनाथ शर्मा ' कौशिक ' , विष्णु प्रभाकर , विद्यासागर नौटियाल , हृदयेश , दयानंद पांडेय , पद्मज पाल और उदय प्रकाश की कहानियां संकलित हैं। सुप्रसिद्ध डाक्टर यतीश अग्रवाल के सुपुत्र और कानूनविद अपूर्व अग्रवाल ने इन दोनों किताबों को संपादित किया है । बहुत शुक्रिया , बहुत आभार अपूर्व अग्रवाल ।
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