Monday, 1 August 2022

प्रेमचंद के साहित्य और जीवन दोनों ही में खूबियां , खामियां दोनों हैं

दयानंद पांडेय 



प्रेमचंद के जीवन में दो पत्नियों के अलावा और भी कई सारी स्त्रियां थीं। यहां तक कि उन की सौतेली मां भी। शिवरानी देवी लिखित प्रेमचंद घर में यह बात उभर कर सामने आई है। निर्मला उपन्यास उन की ही कहानी है। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के शैलेश ज़ैदी ने तो अपनी किताब में प्रेमचंद को औरतबाज बताया है। वेश्या गमन के तथ्य भी रखे हैं और बताया है कि प्रेमचंद निर्धन कतई नहीं थे। कभी नहीं थे। प्रेमचंद के समय में फ़ोटो खिंचवाना बहुत बड़ी अमीरी थी। इस बात को सर्वदा ध्यान रखिए।

मेरी इस टिप्पणी को ले कर मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिली हैं। कुछ निरापद हैं तो कुछ संतुलित तो कुछ प्रतिशोध से भरी हुई। कुछ छुद्र जनों को मुझे निपटा देने और अपमानित करने का एक मार्ग मिल गया है बरास्ता इस टिप्पणी। इन मानसिक विकलांगों को क्या ही कुछ कहूं। 

सभी मित्रों से निवेदन है कि प्रेमचंद बड़े लेखक हैं , इस में कोई दो राय नहीं है। लेकिन अगर उन की पत्नी शिवरानी देवी उन के बारे में अपनी पुस्तक , प्रेमचंद घर में पुस्तक में कोई तथ्य लिखती हैं तो उन की चर्चा करना अपराध नहीं है। शैलेश ज़ैदी ने भी अगर अपनी पुस्तक में कुछ ऐसा , वैसा लिखा है तो तार्किक और तथ्यात्मक ढंग से लिखा है। प्रामाणिक ढंग से लिखा है। कुछ भी अनर्गल नहीं लिखा है। आप सभी मित्रों को यह बात ज़रूर जान लेनी चाहिए कि प्रेमचंद के पिता भी गोरखपुर में पोस्ट मास्टर थे। पोस्ट मास्टर तब के दिनों में भी , अब के दिनों में भी निर्धन नहीं होता। फिर पढ़ाई के बाद प्रेमचंद भी एस डी आई थे , वह भी निर्धन नहीं होता। आज की तारीख़ में वह पी सी एस एलायड कहलाता है। बनारस जैसी जगह में  प्रिंटिंग प्रेस चलाने वाला भी निर्धन नहीं होता। फिर पत्रिकाएं छापने वाला या मुम्बई में फ़िल्में लिखने वाला भी निर्धन नहीं होता। मैं प्रेमचंद के गांव लमही भी गया हूं। ठीक-ठाक खेती बारी और घर दुआर भी था उन का। कच्चे मकान की जगह अपना पक्का मकान बनवा कर वह दिवंगत हुए थे ।   

फिर आप लोगों ने खुद पढ़ा होगा , छात्र जीवन में भी प्रेमचंद रामलीला की आरती में भी बीस आना दे देते हैं। तब के समय एक सरकारी अध्यापक का एक महीने का वेतन हुआ करता था , बीस आना। ऐसे तमाम किस्से हैं । लेकिन मैं ब्राह्मण हूं , इस लिए उन के खिलाफ लिख रहा हूं , ऐसा कहना आप लोगों की मूर्खता ही है। प्रेमचंद को हिंदी में छापा किस ने मालूम है ? पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरस्वती में। हिंदी साहित्य में प्रतिष्ठित किया आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने। तब जब कि उन के तमाम खल पात्र ब्राह्मण ही हैं।   प्रेमचंद की एक प्रसिद्ध कहानी है , पंच परमेश्वर। प्रेमचंद ने सरस्वती में इसे छपने भेजा था और शीर्षक दिया था , पंचों के भगवान। सरस्वती के तब के संपादक महावीर प्रसाद द्विवेदी ने न सिर्फ़ इस कहानी को रिराईट किया बल्कि इस का शीर्षक पंच परमेश्वर कर दिया। पंचों के भगवान और पंच परमेश्वर में क्या फर्क और क्या ध्वनि है , आप मित्रों में अगर समझ हो तो ज़रूर समझ सकते हैं। समझ से दरिद्र और पैदल हैं तो मुझे कुछ नहीं कहना। 

रही बात चीनी के लिए तरसने की तो , बचपन में चीनी के लिए मैं भी तरसा हूं। घर में चीनी चुरा कर मैं ने भी खाई है । मध्यवर्गीय परिवार की दिक्कत है यह। फिर तब के दिनों में चीनी , नहीं गुड़ का चलन ज़्यादा था। बाक़ी प्रेमचंद के जीवन में कुछ स्त्रियों की बातें , शिवरानी देवी ने ही लिखी हैं। प्रेमचंद के वार्तालाप के सौजन्य से । मैं ने तो सिर्फ़ हल्का सा ज़िक्र भर किया है इस का । तमाम लेखकों और पुरुषों के जीवन में स्त्रियां रहती हैं , यह अपराध नहीं है । तो कायस्थ कुलोदभव लोगों से कहना चाहता हूं कि प्रेमचंद को कायस्थ लेखक बना कर उन्हें कायस्थ समुदाय तक सीमित कर अपने जहर का बुखार मत उतारिए। प्रेमचंद जैसे भी हैं , अपनी तमाम खामियों और खूबियों के साथ विश्वस्तरीय लेखक हैं , सभी समुदाय के लेखक हैं। उन्हें कायस्थीय कुएं में कैद करने से बचिए। 

दिलचस्प यह भी देखिए कि जातीय जहर के मारे महाबीमार दिलीप मंडल [ Dilip C Mandal ] भी इस पोस्ट पर ,' दयानंद पांडे की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है। कथा सम्राट प्रेमचंद पर ऐसे आरोप लगाने से पहले उनकी ज़ुबान को लकवा क्यों न मार गया? '  बताने के लिए उपस्थित हो गए। गुड है , यह भी। 

मित्रों जान लीजिए कि प्रेमचंद भगवान नहीं थे। जान लीजिए कि प्रेमचंद के साहित्य और जीवन दोनों ही में खूबियां , खामियां दोनों हैं। सभी के साथ होता है । प्रेमचंद के जीवन में ही नहीं , साहित्य में भी बहुत सी कमज़ोर कड़ियां हैं। प्रेमचंद पर साहित्यिक चोरी तक के आरोप , अवध उपाध्याय जैसे आलोचकों ने लगाए हैं। कई कमज़ोर और अंतर्विरोधी रचनाएं भी हैं प्रेमचंद के पास। नमक का दारोगा जैसी अंतर्विरोध में सनी कहानियां भी हैं प्रेमचंद के पास। सारी की सारी रचनाएं किसी भी लेखक की महान नहीं होतीं। प्रेमचंद की भी नहीं हैं। कोई तीन सौ से अधिक कहानियां प्रेमचंद ने लिखी हैं। लेकिन  दो दर्जन कहानियों की ही चर्चा घूम फिर कर होती है। प्रेमचंद के कहानियों के अंतर्विरोध पर मुद्राराक्षस जैसे लेखकों ने बहुत गंभीरता से लिखा है। दलित विरोधी तक बताया है प्रेमचंद को। और भी लोगों ने। कई बार तो मुझे लगता है कि प्रेमचंद के लिखे संपादकीय और तमाम लेख , उन के साहित्य से ज़्यादा मारक और प्रासंगिक हैं। बावजूद इस सब के प्रेमचंद हिंदी , उर्दू ही नहीं , विश्व के महान लेखक हैं और रहेंगे। मेरी जानकारी में दुनिया में दो ही लेखक ऐसे हैं जो प्राइमरी से लगायत एम ए तक पढ़ाए जाते हैं। एक शेक्सपीयर , दूसरे प्रेमचंद। इस लिए आप लोग इस बहाने अपनी-अपनी बीमारियां यहां न ही बताएं तो बेहतर। प्रेमचंद के बारे में कुछ बोलने के पहले उन्हें और उन के बारे में पढ़ना सीखें। पढ़ लेंगे तो , अनर्गल बोलना भूल जाएंगे।


5 comments:


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 3 अगस्त 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
    >>>>>>><<<<<<<
    पुन: भेंट होगी...

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  2. गज़ब ..... बहुत सी बातें सच ही नहीं पता थीं ।

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  3. वैसे तो भगवान भी हम मनुष्य की ही रचना है।
    मनुष्य के पहले भगवान को किसने जाना होगा..खैर
    प्रेमचंद भगवान हो न हो,
    पर ये अजब दौर है आज, प्रेमचंद जैसे साहित्यकार जिनके समकक्ष कोई नहीं है,हिंदी साहित्य को समृद्ध करने वाले,सुदृढ करने वाले कालजयी साहित्यकार जिनकी कृतियाँ वर्तमान में भी प्रासंगिक हैं, चलिए उन की कृतियों की आलोचना तो समझ आती है, तर्कपूर्ण और तथ्य पूर्ण आलोचना बौद्धिक रूप से समृद्ध बनाती है, किंतु उनके व्यक्तिगत जीवन पर वाद-विवाद से क्या समृद्ध हो रहा है?
    उनके व्यक्तिगत जीवन का,रहन-सहन का एकतरफा विश्लेषण करके वर्तमान में साहित्य को क्या हासिल हो रहा?
    बहुत दुःख होता है प्रेमचंद जैसे साहित्यकार के लिए बेमतलब का विश्लेषण पढ़कर।

    सादर।

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  4. कालजयी साहित्यकार के बारे में अशोभनीय बातें अच्छी नहीं लगी

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