Friday, 28 January 2022

मुक़ाबला सपा और बसपा के बीच है , भाजपा , सपा से मुक़ाबले में नहीं है

दयानंद पांडेय 

पहली और महत्वपूर्ण बात यह कि विकास की तमाम बातों , दावों , वादों , किसान आंदोलन , मंहगाई , बेरोजगारी , परशुराम की मूर्ति और पिछड़ी जाति के ख़ूबसूरत कार्ड के बावजूद उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव हिंदू , मुसलमान के बीच हो गया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह हिंदू-मुसलमान का खेल खुल्ल्मखुल्ला दिखाई देने लगा है। भाजपा की यह पसंदीदा बिसात है। पर शुरुआत अखिलेश ने अपने लवंडपने में जिन्ना के मार्फ़त की थी। कल अमित शाह ने यह कह कर इस पर मुहर लगा दिया है कि जाट और मुगलों की लड़ाई 650 साल पुरानी है। फिर  जिन लोगों को लगता है कि उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में मुख्य मुक़ाबला भाजपा और सपा में है , वह लोग ग़लत सोचते हैं। मुक़ाबला तो दरअसल बसपा और सपा में है। कि नंबर दो पर कौन , नंबर तीन पर कौन। दूसरा मुक़ाबला कांग्रेस और ओवैसी में है कि नंबर चार पर कौन , नंबर पांच पर कौन। 

आप पूछेंगे फिर भाजपा ? तो भाजपा से किसी का कोई मुक़ाबला नहीं है। भाजपा न सिर्फ़ नंबर एक पर है बल्कि उस के आसपास भी कोई नहीं है। न्यूज़ चैनलों पर प्रसारित सर्वे पर बिलकुल मत जाइए। और जान लीजिए यह भी कि सपा लाख मंकी एफर्ट कर ले , रहेगी डबल डिजिट में ही। बसपा भी डबल डिजिट में। गोरखपुर में तो चंद्रशेखर रावण जैसों सभी की एकमुश्त ज़मानत ज़ब्त होने जा रही है। कांग्रेस और ओवैसी अगर खाता खोल लें तो बहुत है। ज़्यादा से ज़्यादा दो से पांच सीट में दोनों सिमट जाएंगे। ज़मीनी हक़ीक़त यही है। मानना हो मान लीजिए , न मानना हो मत मानिए। 

पर मेरा यह लिखा कहीं लिख कर रख ज़रुर लीजिए। कहीं सेव कर लीजिए। स्क्रीन शॉट ले लीजिए। ताकि सनद रहे और वक़्त ज़रुरत काम आए। अगर मैं ग़लत साबित हुआ तो मुझे आइना दिखाने के भी काम आए। अखिलेश यादव के मीडिया मैनेजमेंट पर न जाइए। अखिलेश के पास पैसा बहुत है। पर पैसा रखने और खर्च करने की बुद्धि नहीं। कभी टाइल और टोटी में दीखता है , कभी इत्र की गमक में। क्यों कि अकड़ और हेकड़ी भी बहुत है। अभी से वह अफ़सरों से लगायत पत्रकारों तक को धमका रहे हैं। यह कह कर कि वह सब का नाम नोट कर रहे हैं। सरकार बनने पर सब को देख लेंगे। पत्रकारों को तो प्रेस कांफ्रेंस में ही हड़का ले रहे हैं। अखिलेश की चंपूगिरी में अभ्यस्त टू बी एच के जैसे पत्रकारों की प्रसिद्धि अलग है। सेक्यूलर पत्रकारों को अखिलेश की मिजाजपुर्सी में रहना ही है। इस के लिए अभिशप्त हैं यह लोग। तिस पर कोढ़ में खाज यह कि हताशा में गोदी मीडिया बुदबुदाने वाले लोग भी हैं। लेकिन अखिलेश यादव के इत्र की गमक में मत बहकिए। कन्नौज के नोट अभी बहुत हैं। करोड़ों नहीं , अरबों में। 

ख़ैर चुनाव पर आते हैं। अभी तक जो काम भाजपा डोर टू डोर कार्यक्रम कर के कर रही है , अखिलेश यादव प्रेस कांफ्रेंस कर के कर रहे हैं। उन के पास डोर टू डोर जाने के लिए लोग ही नहीं हैं। जो दलबदलू पहुंचे हैं , अपनी ही सीट पर फंसे हुए हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ओमप्रकाश राजभर जैसों की सीट ही नहीं घोषित हो पाई है। देरी क्यों हो रही है ? कोई पत्रकार प्रेस कांफ्रेंस में भी अखिलेश से नहीं पूछ रहा है। पूछ लेगा तो अखिलेश उस का नाम नोट कर लेंगे। 

पूर्व मंत्री सैनी को आज जय श्री राम कह कर उन्हीं के क्षेत्र में लोगों ने घेर लिया। वह कहने लगे कि मैं फिर भाजपा के लोगों को भी ऐसे ही घेरवा दूंगा। बाद में बयान दिया कि वह मेरे ही कार्यकर्ता थे। रेलवे में नौकरियों के इम्तहान के बहाने आऊटसोर्सिंग कर वाया पटना उत्तर प्रदेश में माहौल ख़राब करने की योजना भी काम नहीं आई। पप्पू यादव और तेजस्वी यादव उत्तर प्रदेश तक वह चिंगारी नहीं भेज पाए जो यहां शोला बन जाती। प्रयाग में ही फुलझड़ी फुस्स हो गई। 

मध्य प्रदेश में कई यादव पकड़े गए जो छात्र ही नहीं थे। वहां के एक कलक्टर ने जो आंदोलनकारी छात्रों से पूछताछ की है , उस में साफ़ हुआ है कि कौन क्या है। यह वीडियो आज वायरल है। उत्तर प्रदेश की सरहद से भी कोई चिंगारी अखिलेश नहीं मंगा पा रहे हैं। उत्तर प्रदेश में योगी की बुलडोजर पुलिस पहले ही से सतर्क है। लाचार अखिलेश ने आज मुजफ्फर नगर की प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि भाजपा उन का हेलीकाप्टर ही नहीं उड़ने दे रही है। यह नहीं बताया कि फ्यूल भरने में देरी हुई। अखिलेश ने कहा कि भाजपा पुराने मुद्दे उठा रही है। नए मुद्दे पर बात करे भाजपा। आदि-इत्यादि। 

पुराने मुद्दे क्या हैं भला ? उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव राज के दंगे , बिजली , क़ानून व्यवस्था , जातिवाद , भ्रष्टाचार आदि। एक मसला राज्य कर्मचारियों की पुरानी पेंशन का है। जिसे मुलायम सिंह यादव ने ख़त्म किया था। अब अखिलेश कह रहे हैं कि वह पुरानी पेंशन बहाल करेंगे। अच्छी बात है। पता नहीं क्यों योगी के मुंह में दही जमी हुई है कि इस पुरानी पेंशन को बहाल करने पर ख़ामोश हैं। सिर्फ़ यही कह रहे हैं कि इन के अब्बा जान ने खत्म की थी , पुरानी पेंशन। 

हक़ीक़त यह है कि जो भी नई सरकार उत्तर प्रदेश में बनेगी , पुरानी पेंशन उसे बहाल करनी ही पड़ेगी। दैनिक वेतन भोगी और संविदा के कुछ मामलों में हाईकोर्ट ने आदेश जारी कर दिए हैं। बाकी मामले भी हाईकोर्ट में लंबित हैं। जब आदेश आ जाएं। रही बात रोजगार आदि की तो बिहार में नौवीं फेल तेजस्वी यादव के फार्मूले को आस्ट्रेलिया से एम टेक अखिलेश यादव आजमा रहे हैं। अखिलेश यादव अभी डोर टू डोर कर नहीं पा रहे। जब तक उन की यह डोर टू डोर योजना बनेगी तब तक चुनाव आयोग शायद छोटी रैलियों की अनुमति दे दे। और ज़्यादा नहीं नरेंद्र मोदी की पांच-सात रैलियां सब के तंबू कनात उखाड़ने में काफी होंगी। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में नेता विपक्ष भी नहीं होंगे। करहल से चुनाव जितने के बावजूद। क्यों कि विधान सभा में मायावती की तरह बिना मुख्य मंत्री बने वह बैठना नहीं चाहेंगे। आज़मगढ़ से सांसद बने रहेंगे ,करहल विधानसभा से इस्तीफ़ा देना उन की विवशता होगी।

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