Friday 11 April 2014

मोदी ने परित्यक्ता बनाया, लोगों ने द्रौपदी !

वह कहते रहे, चीखते और चिग्घाड़ते रह गए कि देश नहीं झुकने दूंगा ! पर देश तो जनाब ने झुका दिया ! और खुद भी झुक गए।  देश नहीं झुकने की सौगंध खारी हो गई है। अब जो मंजर सामने है उसे देख लगता है जैसे रामायण, महाभारत और बुद्ध तीनों ही समय की स्त्री हमारे सामने एक साथ उपस्थित हैं। स्त्री की यातना कथा जैसे बदलने का नाम ही नहीं ले रही। यत्र नार्यस्तु पूज्यते, तत्र रम्यते देवता ! जैसी उक्ति मुंह चिढ़ा रही है। जशोदाबेन को नरेंद्र मोदी ने तो अपने स्वार्थ में परित्यक्ता बना दिया। सीता, यशोधरा और शकुंतला की यातना-कथा को दुहरा दिया, और अब लोग दुशासन बन कर उन्हें द्रौपदी बना रहे हैं। उन का चीर हरण कर रहे हैं। देश है कि झुकता ही जा रहा है।

अगर मुड़ कर देखिए तो सच यह है कि देश को तो लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने झुकाया है। कोई एक नहीं बाकी है जिस ने देश न झुकाया हो। पाकीज़ा का वह गाना याद आता है कि इन्हीं लोगों ने ले लीना दुपट्टा मेरा ! हमरी न मानो बजजवा से पूछो, रंगरेजवा से पूछो, सिपहिया आदि-आदि सब से पूछो वाली बात आती है। हर किसी पार्टी के नेता ने ने देश को झुका रखा है। सभी चीर हरण में लगे हैं। बस पाला बदलते रहते हैं। कभी कौरव बन कर सत्ता में बैठ जाते हैं तो कभी पांडव बन कर विपक्ष में बैठ जाते हैं। कभी ये राम बन जाते हैं और वो रावण , कभी वो राम बन जाते है और ये रावण। पर जब जिस को मौका मिलता है देश झुकाने में पूरे यत्न से लग जाते हैं। स्त्री जैसे इन का प्रिय विषय है। देश को झुकाने के लिए। वो कहते हैं न कि जितने रावण मिले राम के वेश में ! रावण तो भिक्छुक बन कर आया था पर यह राजनीति के लोग राम बन कर आते हैं, रावण का मकसद लिए।

स्त्रियों के साथ छल-कपट और अपमान जैसे हमारे समाज की अनिवार्यता हो गई है। पार्वती, शकुंतला, अहिल्या, सीता, द्रौपदी, यशोधरा आदि तमाम-तमाम स्त्रियों की गाथा जैसे एक जैसी ही है। पुरुष किसी से अपमान का बदला लेना चाहता है तो संबंधित व्यक्ति की स्त्री उस की सब से सरल शिकार क्यों हो जाती है? खास कर हमारे भारतीय समाज में? इस का अंत कब होगा?

बताइए कि जितनी भाषाओं में गालियां है सारी की सारी स्त्रियों को ही संबोधित क्यों हैं? जब कि अमूमन उस का उपयोग पुरुष ही करता है एक दूसरे पुरुष को अपमानित करने के लिए। अगर अपवाद स्वरुप कोई स्त्री भी किसी को गाली देती है तो वह भी स्त्री सूचक गाली ही देती है। अजब मंजर है। साहित्य में आइए। ज़्यादातर व्यंग्यकार वह चाहे गद्य लिख रहे हों या पद्य सब के सब अपनी पत्नी, प्रेमिका पर ही क्यों पिले रहते हैं? काका हाथरसी से लगायत, अशोक चक्रधर, सुरेंद्र शर्मा, के पी सक्सेना, आदि सभी औरत को ही अपना शिकार बना कर लोगों को क्यों हंसाते आ रहे हैं? द्रौपदी ही का चीर हरण क्यों होता है? युधिष्ठिर का क्यों नहीं? सीता का ही अपहरण और वनवास क्यों होता है? राम और लक्ष्मण का अपहरण क्यों नहीं होता? आखिर सूर्पनखा की नाक तो इन्हों ने ही काटी थी, सीता ने नहीं।

अब जशोदाबेन को लीजिए। उन का परित्याग मोदी ने ही किया था उन्हों ने नहीं। पर अब नरेंद्र मोदी को निपटाने के लिए जशोदाबेन एक नया हथियार हैं उन के विरोधियों के लिए। क्या नरेंद्र मोदी से लोग इतना डरते हैं? कि लोग इतना कमजोर हैं नरेंद्र मोदी के आगे? कि उन का सांप्रदायिक चेहरा कम पड़ गया? कि सेक्यूलरिज्म की हाडी काठ की हाडी साबित हो गई? कि जैसे भीष्म पितामह के आगे शिखंडी खड़ा कर के पांडवों ने उन को रास्ते से हटाया था, ौसी तरह अब जशोदा बेन को आगे कर के लोग मोदी को हराएंगे? क्या मोदी के खिलाफ़ राजनीतिक औजार इतने कमजोर हो गए हैं उन के विरोधियों के? कि कभी उन्हें साहेब बना कर एक लड़की के पीछे चलाया जाता है तो कभी उन की परित्यकता पत्नी को आगे कर दिया जाता है। न उस लड़की को कोई दिक्कत है मोदी से न उन की परितयक्ता पत्नी को उन से कोई शिकायत है। पर लोग हैं कि नहा-धो कर जशोदा बेन और उस लड़की के भरोसे मोदी से लड़ने निकल पड़े हैं।

अजब है यह भी।

कांग्रेस के लोग जो खुद तमाम आरोपों से लस्त-पस्त हैं। भ्रष्टाचार, मंहगाई, घोटाले, कुशासन आदि में वह इतना दब गई है कि मोदी या किसी और से लड़ने की उस की राजनीतिक तैयारियां रेत का महल साबित हो रही हैं। कि अब मोदी पर औरत का ब्रह्मास्त्र ही बाकी रह गया है। 'व्यक्तिगत' और चरित्रहनन की राजनीति नई तो नहीं है युगों से इस का उपयोग दुरुपयोग होता आया है। चाणक्य के समय भी विष-कन्या का चलन था ही। और भी राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय प्रसंग हैं, पौराणिक और ऐतिहासिक प्रसंग भी बहुतेर्रे हैं। पर अगर आज के ही संदर्भ में आएं तो मोदी पर यह अस्त्र ले कर कांग्रेस या और पार्टियां जो लाचार हो कर अपनी पराजय में हांफ रही हैं उन को क्या कहें?मुद्दाविहीन राजनीति की यह तो पराकाष्ठा है।

कांग्रेसी सुशील शर्मा का तंदूर कांड लोग भूल गए हैं क्या? कि शशि थरुर का अभी ताज़ा-ताज़ा मामला लोग भूल गए हैं? कि तिवारी जी का पुत्र विवाद और अभिषेक मनु सिंधवी का एक महिला वकील को न्यायाधीश बनवाने की सेक्सी सीडी भूल गए हैं? कि सुरजेवाला के बूढ़े पिता की एक युवती के साथ की सी डी लोग भूल गए हैं? कांग्रेस के दिग्विजय सिंह का टंच माल कहां गया? और फिर सत्ता के अंत:पुर में दिग्विजय सिंह के स्त्री प्रसंगों की कितनी कहानियां है, किसी से छुपी हैं क्या? कि पी चिदंबरम की स्त्रियों की सूची क्या कम है? कांग्रेस में ही उपस्थित संजय सिंह तो स्त्री प्रसंग में हत्या आदि के आरोप मे जेल भी हो आए हैं। और जिस सैयद मोदी की हत्या के आरोप में वह जेल गए उसी सैयद मोदी की विधवा से विवाह भी कर लिया बाद में। और अपनी पत्नी गरिमा सिंह को धोखे से तलाक दे दिया।

भाजपा में भी ऐसे नेताओं की कहानियां आम हैं। कल्याण सिंह तो बदनाम हो गए पर उन को बदनाम करने वाले राजनाथ सिंह के महिला प्रेम के भी अनगिनत किस्से हैं। भाजपा में अगर राघव जी जैसे लोग हैं तो कांग्रेस में तो शीर्ष नेतृत्व में पत्नियों की अदला-बदली जिसे अंगरेजी में वाइफ़ स्वैपिंग कहते हैं के सिलसिले भी बहुत हैं। और कि बहुतेरे हैं। पूर्व रक्षा राज्य मंत्री अरुण सिंह की याद है? अरे राजीव गांधी के सखा अरुण सिंह। कहते हैं स्वैपिंग के ही वह मारे हुए हैं। इतना कि अब बरसों से निर्वासित जीवन जी रहे हैं। किसी परदेसी महिला मित्र के साथ। अल्मोड़ा के बिनसर की पहाड़ियों में। खुद राजीव गांधी के तमाम स्त्री प्रसंग आज भी सत्ता गलियारों में चिंगारी की तरह उड़ते मिलते हैं। राजीव शुक्ल की प्रगति की कहानी जब लिखी जाएगी तब क्या राजीव गांधी के स्त्री प्रेम के बिना लिखी जाएगी क्या? अब अटल बिहारी वाजपेयी बीमार हैं पर फिर जब बात चली है तो इस फ़ेहरिस्त में उन का भी नाम कैसे भला दब सकता है? उन के भी कई स्त्रियों से रागात्मक किस्से दिल्ली, भोपाल, जबलपुर,ग्वालियर से लगायत लखनऊ तक फैले पड़े हैं। किसिम किसिम के। जवाहरलाल नेहरु के लेडी माउंट्बेटन के अलावा भी कई प्रसंग मिलते ही हैं।

इंदिरा गांधी स्त्री थीं। पर उन के भी देसी-परदेसी संबंध के किस्से आन रिकार्ड हैं। उन के पति फ़िरोज गांधी भी बहुत सारे अपने अंतरंग किस्से छोड़ गए हैं। उन के बेटे संजय गांधी ने तो जैसे राजनीति में औरतों को यह रंग खुलेआम दे कर उन्हें एक ग्लैमर ही दे दिया था।  याद कीजिए अंबिका सोनी से रुखसाना सुलताना तक के नाम। मेनका गांधी ने उस छोटी सी उम्र में ही इन बेशुमार औरतों से कैसे तो संघर्ष किया था। वह अब बस एक याद करने का ही विषय है। राहुल गांधी के भी स्त्री प्रसंग आम भले न हों पर कुछ फ़ोटो उन की भी विदेशों में छुट्टियां मनाते हुए एक महिला मित्र के साथ देखी गई हैं। जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम के नाम तो पूरा एक सेक्स कांड ही दर्ज है।

वामपंथी पार्टियों में भ्रष्टाचार के तो आरोप कम मिलते हैं पर स्त्री प्रसंग और मदिरा प्रसंग के अनगिनत किस्से भरे पड़े हैं उन के गलियारों में। छोड़िए अभी मुंबई में कुछ मुस्लिम लड़कों को बलात्कार पर फांसी की सज़ा पर बिदके मुलायम ने बयान दिया है कि लड़कों से गलती हो जाती है, उन्हें फांसी नहीं दी जानी चाहिए। और कि वह सरकार में आएंगे तो इस कानून को बदल देंगे। इन मुलायम का भी जीवन तो ऐसे कई स्त्री-पुरुष प्रसंगों से भरा पड़ा है। यहां तक की पहली पत्नी के जीवित रहते ही उन के एक दूसरी स्त्री से एक पुत्र हो गया। उस पुत्र को उन्हों ने समय रहते न सिर्फ़ स्वीकार कर लिया बल्कि तिवारी जी की तरह अपनी छिछालेदर भी नहीं होने दी। पर साधना गुप्ता के पुत्र प्रतीक को उन्हों ने अपनाया यह तो लोगों ने जाना पर साधना गुप्ता से उन्हों ने विवाह कब किया यह कितने लोग जानते हैं? या कि मुलायम सिंह यादव को भी अखिलेश यादव की माता जी के साथ कितने लोगों ने दिल्ली लखनऊ या इटावा में उन के साथ देखा है? तब जब वह मुख्य मंत्री या रक्षा मंत्री थे? अमर सिंह तो आन रिकार्ड कह चुके हैं कि वह मुलायम के दलाल थे। अमर सिंह के अपने स्त्री प्रसंग भी अनेक हैं। नीरा राडिया टेप में कुछ फ़िल्मी हीरोइनों से उन की अंतरंग बातचीत तो बातचीत के अधोवस्त्र भी उतार देती है।

समाजवादी चंद्रशेखर भी प्रधान मंत्री थे। उन के भी तमाम स्त्री-पुरुष संबंध क्या लोग नहीं जानते? पर कितने लोग उन की पत्नी को भी उन के साथ देखा है? वह तो खुले आम एक नेपाली महिला मित्र के साथ दिल्ली में रहते थे। उन की पत्नी बलिया में। प्रधान मंत्री होने के बाद प्रोटोकालवश वह उन को कुछ दिन के लिए दिल्ली ले आए थे।

लालू प्रसाद यादव को लोग बकलोल समझते हैं। पर उन के खाते में भी ऐसे कई किस्से पाए जाते हैं। अपनी एक महिला मित्र को तो वह केंद्र में मंत्री तक बनवा दिए। यह कौन नहीं जानता? दलित पुरोधा और सामाजिक न्याय के हामीदार रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान को आज सब लोग जानने लगे हैं। पर वह राम विलास पासवान की दूसरी पत्नी के पुत्र हैं, यह कितने लोग जानते हैं? उन की पहली पत्नी तो अभी भी गांव में किसी तरह गुज़र-बसर करती हैं। काशीराम और मायावती की गाथाएं कौन नहीं जानता। उमा भारती और गोविंदाचार्य के किस्से भी किसी से छुपे नहीं हैं।

कमलापति त्रिपाठी, देवीलाल, भजन लाल के बेटे कुलदीप विश्नोई, कल्पनाथ राय, प्रमोद तिवारी, आदि तमाम-तमाम राजनीतिज्ञों के किस्से दर किस्से आम हैं। तमाम लेखकों, कलाकारों, अभिनेताओं, निर्देशकों आदि के ऐसे किस्से भी आम हैं। जिन्हों ने अपनी पत्नी को छोड़ दिया है भूखा-प्यासा मरने के लिए। और दूसरी स्त्री के साथ रहने लगे। लोहिया जो खुद भी कुंवारे थे और कि जिन के कई स्त्रियों से संबंध भी थे, वह कहते थे कि अगर शोषण या जबरदस्ती नहीं है किसी संबंध में तो वह जायज है। फिर यहां तो त्याग-परित्याग का मामला है। शकुंतला-दुष्यंत की कहानी जैसे दुहराई जा रही है पर लोग परेशान बहुत हैं। तो क्यों? यह समझ नहीं आता। तब जब कि हमाम में सभी नंगे हैं।

तो भी मिया बीवी राजी तो क्या करेगा काजी ! वाली कहावत लोग भूल गए हैं शायद और कोहराम मचाए बैठे हैं।
यह राजनीतिक दुर्भाग्य कहिए या कुछ और पर सच यह है कि हमारी राजनीतिक ताकतें मोदी से राजनीतिक लड़ाई में हारा हुआ महसूस कर रही हैं और इसी हताशा में वह जशोदा बेन को हथियार बना बैठी हैं। गो कि चुनावी वैतरणी में उन के काम नहीं आ रहा यह हथियार। यह बहुत बड़ी राजनीतिक शून्यता है। और कि किसी औरत का चीर हरण। उस के जले पर नमक। राजनीतिक पार्टियों को चाहिए कि मोदी को हराने के लिए कोई कारगर राजनीति हथियार से लड़ें। तभी वह उन्हें हरा पाएंगे। द्रौपदी का चीर हरण अब प्रासंगिक नहीं है न ही किसी स्त्री की अस्मिता के लिए शुभ है। निजी जीवन, जैसा भी हो, किसी भी का हो, वह राजनीति करने के लिए नहीं बना। राजनीतिक औजार तो कतई नहीं। बिल क्लिंटन की याद है किसी को? और मोनिका लेविंस्की की भी? अच्छा नेल्सन मंडेला भी अपनी पत्नी को परित्यकता छोड़ गए, क्या लोग भूल गए हैं? 

महात्मा गांधी के तमाम स्त्री प्रसंग भी हमारे सामने हैं और कि कस्तूरबा से उन की अनबन भी। पर वह सार्वजनिक चर्चा या राजनीति का सबब नहीं है। नहीं, मैं नरेंद्र मोदी का तनिक भी पक्ष नहीं ले रहा। हरगिज नहीं ले रहा। आप उन्हें हराइए। मैं आप के साथ हूं। मैं तो उस पीड़िता बिचारी यशोदा बेन के साथ हूं, उन के ही पक्ष में हूं और कि पूरी ताकत से हूं। इस लिए कि उस स्त्री के साथ नरेंद्र मोदी ने जो भी किया ठीक नहीं किया पर आप को भी कोई अधिकार नहीं है कि जशोदाबेन की अस्मिता के साथ खेलें। कृपया मोदी को नीचा दिखाने के लिए जशोदाबेन को द्रौपदी की भूमिका में शिफ़्ट नहीं करें। यह चीर हरण बंद करें। दुशासन नहीं बनें। मोदी से निपटें पर बिना जशोदा बेन के। देश नहीं झुकने दूंगा की सौगंध अ्भी और कितनी खारी होगी ! यह देखना भी शेष है।

7 comments:

  1. अब ये कहना तो मूर्खता होगी कि आपने अच्छा लिखा है। आप अच्छा लिखते ही हैं। आप एक बेहतरीन पत्रकार और कलमकार दोनों हैं। तर्क से परिपूर्ण जानकारी परक आलेख। धन्यवाद

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  2. सच , आप ने बहुत सुन्दर बात कही है .आप की लेखनी का कोई जवाब नहीं है पाण्डेय जी .सटीक टिपण्णी से मन गद -गद हो उठा ,

    प्रदीप श्रीवास्तव
    संपादक , दिव्यता (हिंदी मासिक)
    UG-38, goel palece
    sanjay gandhi puram
    faizabad road
    indara nagar ,lucknow
    mail editor.divyata@gmail.com
    cell 0522 6555568
    लखनऊ

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  3. बहुत खूब लिखा है

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  4. बहुत खूब लिखा है

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  5. लिखने का साहस अब बहुत कम लोगों के पास है...... आप साहसिक लिखते रहिए, हम जैसे लोगों को प्रेरणा मिलती है...........

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  6. अद्भुत लिखते है आप। इतना क्रांतिकारी लिखेँगे तो तमाम लोगों को हजम नही होगा ।

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