दयानंद पांडेय
मोदी वार्ड के मुट्ठी भर मरीज अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण से डायरिया के शिकार हो चले हैं। हजम नहीं हो रहा मंदिर। बस मां-बहन की गाली सीधे-सीध नहीं उच्चार पा रहे हैं क्यों कि राम की आस्था से तो वह भी संलग्न हैं। राम उन के भी भगवान हैं। लेकिन उन की भाव-भंगिमा और शब्दों का भाव बिलकुल यही है। एक मित्र की वाल पर उन की पोस्ट पर मेरा प्रतिवाद और प्रतिवाद में आए अन्य प्रतिवाद पर भी मेरे कुछ प्रतिवाद दर्ज हैं। आप अवलोकन कर सकते हैं और आनंद का भान कर सकते हैं :
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चंपत का अर्थ हम सभी जानते हैं , आप भी। लेकिन आप की मंशा जानते हुए , चंपत का शाब्दिक अर्थ भी प्रस्तुत है , रेख्ता के मुताबिक़। फिर जिस चंपत राय की आप ताज़पोशी करते हुए करवाना चाहते हैं , चंद लोग चाह कर भी कर नहीं पा रहे हैं। रामसागर शुक्ल जी भी क्षणिक आनंद ले कर ख़ुश हो गए हैं और फिर खामोश ! इसी से अपने प्रश्न की पावनता की पहचान कर लीजिए। फिर भी उस चंपत राय के जीवन के बारे में कुछ सूचनाएं प्रस्तुत हैं , जो कहीं अन्य से साभार प्रस्तुत है। हालां कि यही सब करते-करवाते कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां दफ़्न हो चुकी हैं। आज की तारीख़ में कांग्रेस और वामपंथी पार्टियां अपनी यह बीमारी छुपाती फिर रही हैं। न्यौता मांग रही हैं। गिड़गिड़ा रही हैं। फिर भी शुभकामनाओं सहित , सूचना ग्रहण करें और अपने आनंद का भी आनंद लें। जानें कि बड़े नसीब से चंपत राय , राम काज के लिए उपस्थित होते हैं। जटायु , शबरी और गिलहरी को याद करते हुए इस चंपत राय को भी याद करेंगे तो और आनंद आएगा। जान लेंगे कि चंपत राय हास्य-व्यंग्य का विषय नहीं हैं। कोलकाता के कोठारी बंधु को लोग इतने बरस बाद भी कैसे याद कर रहे हैं , यह जान लेने में भी नुक़सान नहीं है। [ क्रमशः ]
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कौन है ये चम्पतराय.?? 🌷⛳
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1975 इँदिरा गाँधी द्वारा थोपे आपातकाल के समय बिजनौर के धामपुर स्थित आर एस एम डिग्री कॉलेज में एक युवा प्रोफेसर चंपत राय, बच्चों को फिजिक्स पढ़ा रहे थे, तभी उन्हें गिरफ्तार करने वहां पुलिस पहुंची क्योंकि वह संघ से जुड़े थे।
अपने छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय चंपत राय जानते थे कि उनके वहाँ गिरफ्तार होने पर क्या हो सकता है।
पुलिस को भी अनुमान था कि छात्रों का कितना अधिक प्रतिरोध हो सकता है।
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प्रोफ़ेसर चंपत राय ने पुलिस अधिकारियों से कहा, आप जाइये में बच्चों की क्लास खत्म कर थाने आ जाऊँगा।
पुलिस वाले इस व्यक्ति के शब्दों के वजन को जानते थे अतः वे लौट गए।
क्लास खत्म कर बच्चों को शांति से घर जाने के लिए कह कर प्रोफेसर चंपत राय घर पहुँचे, माता पिता के चरण छू आशीर्वाद लिया और लंबी जेल यात्रा के लिए थाने पहुंच गए।
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18 महीने उत्तर प्रदेश की विभिन्न जेलों में बेहद कष्टकारी जीवन व्यतीत कर जब बाहर निकले तो इस दृढ़प्रतिज्ञ युवा के आत्मबल को संघ के सरसंघचालक श्री रज्जू भैया ने पहचाना और श्री राममंदिर की लड़ाई के लिए अयोध्या जी को तैयार करने का जिम्मा उनके कंधों पर डाल दिया।
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चंपत राय ने अपनी सरकारी नौकरी को लात मार दी और राम काज में जुट गए।
वे अवध के गाँव गाँव गये हर द्वार खटखटाया।
स्थानीय स्तर पर ऐसी युवा फौज खड़ी की जो हर स्थिति से लड़ने को तत्पर थी।
अयोध्या के हर गली कूँचे ने चंपत राय को पहचान लिया और हर गली कूंचे को उन्होंने भी पहचान लिया।
उन्हें अवध का इतिहास, वर्तमान, भूगोल की ऐसी जानकारी हो गई कि उनके साथी उन्हें "अयोध्या की इनसाइक्लोपीडिया" उपनाम से बुलाने लगे।
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बाबरी ध्वंस से पूर्व से ही चंपत राय जी ने राम मंदिर पर "डॉक्यूमेंटल एविडेंस" जुटाने प्रारम्भ किये।
लाखों पेज के डॉक्यूमेंट पढ़े और सहेजे, एक एक ग्रंथ पढ़ा और संभाला उनका घर इन कागजातों से भर गया, साथ ही हर जानकारी उंन्हे कंठस्थ भी हो गई।
के. परासरण जी और अन्य साथी वकील जब जन्मभूमि की कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे तो उन्हें अकाट्य सबूत देने वाले यही व्यक्ति थे।
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6 दिसंबर 1992 को मंच से बड़े बड़े दिग्गज नेता कारसेवकों को अनुशासन का पाठ पढ़ा रहे थे।
तमाम निर्देश दिए जा रहे थे।
बाबरी ढांचे को नुकसान न पहुचाने की कसमें दी जा रहीं थीं, उस समय चंपत राय जी मंच से कुछ दूर स्थानीय युवाओं के साथ थे।
एक पत्रकार ने चंपत राय से पूछा?
"अब क्या होगा?"
उन्होंने हँस कर उत्तर दिया
"ये राम की वानर सेना है, सीटी की आवाज पर पी टी करने यहां नहीं आयी...
ये जो करने आयी है करके ही जाएगी"
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इतना कह उन्होंने एक बेलचा अपने हाथ में लिया और बाबरी ढांचे की ओर बढ़ गये, फिर सिर्फ जय श्री राम का नारा गूंजा और... इतिहास रचा गया।
आदरणीय चंपत राय को यूं ही राम मंदिर ट्रस्ट का सचिव नहीं बना दिया गया है।
उन्होंने रामलला के श्रीचरणों में अपना सम्पूर्ण जीवन अर्पित किया है। प्यार से उन्हें लोग "रामलला का पटवारी" भी कहते हैं। यह व्यक्ति सनातन का योद्धा है। कोई मुंह फाड़ बकवास करता कायर नहीं... [ क्रमश : ]
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बाबरी ध्वंस के मुकदमों में कल्याण सिंह जी के बाद चंपत राय ने ही अदालत और जनसामान्य दोनों के सामने सदैव खुल कर उस घटना का दायित्व अपने ऊपर लिया है। चम्पत राय जी कह चुके हैं, जैसे ही राममंदिर का शिखर देख लेंगे युवा पीढ़ी को मथुरा की ज़िमेदारी निभाने को प्रेरित करने में जुट जाएंगे"।
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चंपत राय जी धर्म की छोटी से छोटी चीजों का ध्यान रखने वाले तपस्वी और विद्वान हैं।
एक बार वे किसी काम से काशी में किन्हीं के यहां रुके, तब रात्रि में देखा तो पाया कि बैड का डायरेक्शन कुछ ऐसा था कि सोते हुए पैर दक्षिण की तरफ हो जा रहे थे, उन्हें एक रात को भी यह स्वीकार नहीं था, रात में ही उन्होंने बैड का डायरेक्शन ठीक करवाया, तभी सोए।
जो धोती कुर्ता पहनकर भारत का गाँव गाँव नापने वाला व्यक्ति अपने निजी जीवन में हिन्दू जीवनचर्या की छोटी छोटी बातों का हठ के साथ पालन करता है वह श्रीराममंदिर के संदर्भ में किस हद तक विचारशील और जुझारू होगा, समझा जा सकता है।
वास्तव में इनपर उंगली उठाने वाले इनकी पाँव की धूल समान भी नहीं....।
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उम्मीद है कि चंपत का अर्थ कुछ समझ आ गया होगा। कुछ कसर रह गई हो तो कृपया बताएं , शंका समाधान आगे भी करने का प्रयास करुंगा।
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आप शायद इन्हीं चंपत राय का आनंद लेने में संलग्न हैं। है न ?
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आडवाणी या जोशी नहीं बुलाए गए हैं , इस बात को कहने का कोई आधार भी है या मोदी वार्ड की सर्वकालिक बीमारी का प्रदर्शन मात्र है। राम तो सब के हैं पर ख़बरों के मुताबिक़ बुलाया तो ऐसे-ऐसे लोगों को भी गया है जो घोषित रुप से राम के नहीं हैं। राम से दिली नफ़रत है , जिन्हें , उन्हें भी बुला लिया गया है। फिर आडवाणी और जोशी तो राम के लिए सर्वस्व लुटा देने वालों में हैं। अधिकृत ख़बरों के मुताबिक़ आडवाणी , जोशी भी बुलाएं गए हैं। ख़बरें बताती हैं कि आठ हज़ार लोगों को बुलाया गया है। सोनिया गांधी को भी। उस सोनिया , जिन से संसद भवन परिसर में रिपोर्टरों ने पूछा , बुलाया गया है , अयोध्या जाएंगी ? सवाल की नोटिस लिए बिना तेज़ी से निकल गईं। ऐसे जैसे पांव नाबदान में पड़ गया हो। ईश्वर , अल्ला तेरो नाम , सब को सन्मति दे भगवान ! सहिष्णुता की इस से बढ़िया मिसाल सोनिया दे भी नहीं सकती थीं। बाक़ी मोदी वार्ड के मरीजों को क्या कहना , क्या सुनना ! हक़ीम लुकमान के पास भी नो इलाज ! एक से एक सीताराम हैं। 2024 ? अरे बीमारी इसी तरह बढ़ती रही तो 2029 में भी कोई वैक्सीन मिलने के आसार नहीं दिखते। बड़ा मासूम सा यह सवाल भी है कि कौन वाले राय हैं ? जाहिर है , बंगाली नहीं हैं तो भूमिहार भी हो सकते हैं और कायस्थ भी। मोदी वार्ड के मरीजों से आर्थिक मदद ले कर एक शोध पीठ बनवाइए , शोध करवा लीजिए। कुछ तो आराम मिलेगा ही। काम भी।
आमीन !
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तथ्य और मोदियापा का फ़र्क़ समझ में आता भी है ? चुनौती दे कर कह रहा हूं , एक भी तथ्य ग़लत साबित कर दीजिए। लिखना और सार्वजनिक जीवन छोड़ दूंगा।
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अपनी बात कहने का अधिकार हर किसी को है। बात तथ्य की , की है। हुज्जत की नहीं। मोदी ने क्या कहा , किस ने क्या सुना , मेरा उस से कोई सरोकार फिलहाल यहां बिलकुल नहीं है। और मैं न मोदी हूं , न मोदी का प्रवक्ता। अपनी बात से मतलब है। मोदियापा के आपत्तिजनक आरोप पर प्रतिवाद किया है। तथ्य से बात करने का हामीदार हूं।
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फ़िलहाल वाद-विवाद-संवाद जारी है !
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