भले कुछ मुट्ठी भर लोग इस बात को स्वीकार करने में कमीनापन करें लेकिन यह तो सत्य और तथ्य है कि जवाहरलाल नेहरू ने देश के जिन दो बड़े मामले को ले कर देश को गंभीर संकट में डाला था नरेंद्र मोदी ने उन दोनों संकट से देश को निकाल लिया है। कश्मीर से 370 और 35 ए हटा कर एक कैंसर खत्म कर दिया। दूसरे चीन को पूरी तरह औक़ात में ला दिया है।
भारत जो चीन से 1962 में हार कर निरंतर घुटने टेके रहता था चीन के सामने , घुटने टेकना बंद कर उस की औक़ात बता दी है। गौरतलब है कि नेहरू , चीन से हार के सदमे ही में ज़िंदगी से कूच कर गए थे। अब उसी भारत ने चीन को दांव पार दांव दे कर उस का गुरुर चकनाचूर कर दिया है। चीनी सरहद से आने वाली तमाम खबरें इस बात की पुष्टि करती हैं। न सिर्फ इतना कूटनीतिक और व्यापारिक स्तर पर भी भारत ने चीन को चीनी-चीनी कर दिया है , निरंतर। और साफ़ बता दिया है कि बतर्ज नेहरू हिंदी-चीनी भाई-भाई नहीं हैं। इन दिनों चीन से निकलते अरबों रुपए का इनवेस्टमेंट , भारत जाते देख , चीन ने अपने बाहुबली होने का प्रदर्शन करते हुए सरहद पर तनाव बढ़ाने का कुचक्र रचा।
भारत में उपस्थित कम्युनिस्टों के मार्फत देश भर के मज़दूरों को भड़काने का काम किया और गांव-गांव कोरोना गिफ्ट करवा दिया। मज़दूरों के मार्फत बग़ावत और जनविद्रोह का कुचक्र रच कर गृहयुद्ध के हालात निर्मित किए। फिर मज़दूरों का पलायन और उन की भूख को मोदी सरकार ने भी ठीक से हैंडिल नहीं किया। यह बहुत बड़ा पाप और अपराध किया है मोदी सरकार ने। निश्चित रूप से मोदी सरकार मज़दूरों के मोर्चे पर पूरी तरह ध्वस्त रही है , जिस की कीमत वह देर-सवेर भुगतेगी भी। जैसे मुफ्तखोरी का फ़ास्ट फ़ूड खिला कर चुनाव जीतने वाली अरविंद केजरीवाल सरकार आज भुगत रही है।
इतना कि चीख़-चीख़ कर कह रही है कि कर्मचारियों को वेतन देने के लिए पैसा नहीं रह गया है। कोरोना काल में भी रोज करोड़ों का विज्ञापन देने वाली दिल्ली की केजरीवाल सरकार के अभी और दुर्दिन आने वाले हैं। जिन लोगों ने मुफ्त बिजली , पानी और बस के चक्कर में वोट दिया है , उन से जब यह मुफ्तखोरी छिनेगी तो यह लोग क्या करेंगे , सब लोग जानते हैं। तब्लीगियों और शाहीनबाग का पाप भी अभी केजरीवाल सरकार के सिर फूट ही रहा है। खैर , बात मोदी सरकार द्वारा चीन को औक़ात में लाने की हो रही थी।
तो इस कोरोना काल में मज़दूरों के पलायन और उन की भूख को न संभाल पाने वाली मोदी सरकार ने नेहरू के ज़माने का हिंदी-चीनी भाई-भाई का मुग़ालता और कश्मीर का कैंसर समाप्त कर दिया है। यह बात तो स्वीकार करनी ही होगी। अभी ऐसे ही कुछ मुग़ालते तथा कैंसर , मोदी सरकार को और खत्म करने हैं। समय रहते देश में उपस्थित चीन के कमीने पैरोकारों को दुरुस्त करना भी एक ज़रूरी काम है। ये पैरोकार भी वैसे ही हैं जैसे देश में उपस्थित पाकिस्तान के पैरोकार। रहते हैं भारत में ,खाते हैं भारत का पर गाते पाकिस्तान का हैं। ठीक वैसे ही यह कमीने भी रहते भारत में हैं , खाते भारत का हैं पर गाते चीन का हैं।
अंकल जी मजदूरों के मामले में मैं थोड़ा अलग सोचता हूँ ,गैर बीजेपी राज्य सरकारों ने हर कोशिश की सरकार को फँँसाने की। एक साथ अगर इतने सारे लोग सड़कों पर आ जाएं तो कोई भी व्यवस्था फेल हो जाएगी ये हमें समझना चाहिए।
ReplyDeleteदयानंद पांडेय जी अच्छा लिखा आपने...परंंतु कुछ बाते हम नजरंदाज नहीं कर सकते...और व्यवस्था फेल नहीं कहा जा सकता इसे, अभी जुम्मा जुम्मा दिन ही कितने हुए हैं मजदूरो के पलायन को , कम से कम यूपी की बात तो हम कर ही सकते हैं कि उनके रोजगार और राशन की व्यवस्था लगातार की जा रही है... फिर मजदूरों ने भी देख लिया कि दूसरे प्रदेशों में जाकर अपनाश्रम देकर भी उन्होंने क्या हासिल कयिा, बस यही सोच और उनके जख्म पूरे देश में नए सिरे से कार्यपद्धति को बदल देगा औश्र मोदी सरकार इसे भुनाने में पीछे नहीं हटेगी। धन्यवाद
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