हम जब रिपोर्टर थे तब चुनाव के समय बहुत सारी हवाई यात्राएं राजनीतिक पार्टियों के सौजन्य से कराई जाती थीं। अब भी करवाई जाती हैं। चुनावी सभाओं के कवरेज के लिए। खास कर मुख्य मंत्री लोग अपना समय बचाने के लिए , आराम के लिए एक ही यात्रा के लिए हेलीकाप्टर और जहाज दोनों इस्तेमाल करते थे। हेलीकाप्टर से पत्रकारों को पहले ही गंतव्य तक के एयरपोर्ट पर पहुंचा दिया जाता था । फिर एयरपोर्ट से जनसभा स्थल तक बाई कार ले जाया जाता था। हेलीकाप्टर एयरपोर्ट पर ही रोक दिया जाता था। बाद में उसी हेलीकाप्टर से मुख्य मंत्री जनसभा स्थल तक आते थे । वापसी में भी यही होता था। उन का समय बच जाता था । इस तरह एक दिन में तीन-चार जनसभाएं हो जाती थीं। इस बचे समय में कार्यकर्ताओं से भी मिल लेते थे , चुनावी रणनीति तय कर लेते थे । जहां कहीं एयरपोर्ट नहीं होता था , वहां फिर मुख्य मंत्री अपने साथ ही पत्रकारों को ले जाते थे। एक बार तो सैफई , इटावा होते हुए गाज़ियाबाद गए।
वापसी में अंधेरा होने लगा तो हेलीकाप्टर के पायलट ने हेलीकाप्टर उड़ाने से इंकार कर दिया । डी एम ने ट्रेन से पत्रकारों की वापसी की व्यवस्था की। वहां ठहरने का भी विकल्प दिया कि सुबह हेलीकाप्टर से चले जाइए। लेकिन मुख्य मंत्री ने आते ही कहा कि सभी पत्रकार हमारे जहाज में साथ जाएंगे । क्यों कि आज ही यह ख़बर लिखी जानी है , कल नहीं। इस के लिए उन्हों ने अपने साथ गए अधिकारियों और नेताओं से कहा कि आप लोग सुबह हेलीकाप्टर से आएं। एक बार तो प्रतापगढ़ में पत्रकारों को हवाई जहाज से ले जाया गया और मुख्य मंत्री को हेलीकाप्टर से। बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रतापगढ़ के पृथ्वीगंज में एक हवाई पट्टी भी है । दूसरे विश्वयुद्ध के समय की। बहुत ही असुरक्षित हवाई पट्टी है । उस बार हम पत्रकार मरते-मरते बचे थे । जहाज उतरने में दुर्घटना होते-होते बची । एक बार तो हम लोग अमर सिंह के साथ हरदोई के संडीला गए। तब वह सपा में थे । पत्रकारों का हेलीकाप्टर पहले पहुंच गया। हेलीपैड पर कार्यकर्ताओं ने सारी मालाएं पत्रकारों के गले में लाद दी । बिना किसी को पहचाने । अब नेताओं के लिए उन के पास कुछ रहा ही नहीं । सकुचाते हुए मालाएं वापसी की बात की कार्यकर्ताओं ने। हंसते हुए हम लोगों ने वापस कर दी।
अब जब नेताओं का हेलीकाप्टर आया तो कार्यकर्ताओं को रस्सी बांध कर रोक दिया गया। हेलीपैड तक सिर्फ़ कुत्ते ही पहुंच सके। ऐसे ही एक बार अमर सिंह आजमगढ़ लिवा ले गए। आज़मगढ़ से बीस किलोमीटर पहले ही किसी कालेज में बने हैलीपैड पर हेलीकाप्टर उतरा। वहां से जुलूस ले कर शहर में वह घुसे। समय रखा था सुबह दस बजे का। ताकि सड़क भरी-भरी लगे। कलक्ट्रेट में उन्हें गिरफ्तारी देनी थी। कलक्ट्रेट के परिसर में पांच सौ लोगों के खड़े होने की भी जगह नहीं थी। बसपा की मायावती का राज था। लेकिन अमर सिंह ने प्रशासन से कहा कि आप हमें बीस हज़ार घोषित कीजिए , तभी जाएंगे। मजिस्ट्रेट ने मजबूर हो कर एक सांस में कहा , बीस हज़ार लोग गिरफ्तार किए गए , बीस हज़ार लोग रिहा किए जाते हैं। वापसी में कलक्ट्रेट के बगल में ही स्थित पुलिस लाईन में बने हेलीपैड पर हमारा हेलीकाप्टर खड़ा था। लखनऊ से गया एक नया-नया फ़ोटोग्राफ़र अमर सिंह पर लगभग सवार हो गया। कि जब हेलीपैड बगल में था , तो इतनी दूर क्यों उतारा था , सुबह ? पहले तो अमर सिंह मुस्कुराए पर जब बहुत हो गया तो हम से बोले , ज़रा संभालिए इन्हें पांडेय जी। मैं ने उसे समझाया कि तब जुलूस और भीड़ तुम्हारे फ़ोटो में नहीं दिखती। शहर के लोगों को पता न चलता इस घटना का। अब बारी फ़ोटोग्राफ़र के मुस्कुराने की थी। ऐसी तमाम चुनावी यात्राओं की ढेरों हवाई यादें हैं। नेताओं द्वारा चुनावी सभाओं में हेलीकाप्टर में जाने का एक बड़ा लाभ यह होता है कि देहाती क्षेत्रों , कस्बों या छोटे शहरों की ज्यादातर जनता हेलीकाप्टर ही देखने आती है । समय की बचत और ग्लैमर तो अपनी जगह है ही।
प्रियंका गांधी के आज प्रयागराज से स्टीमर यात्रा के दौरान कभी सड़क मार्ग , कभी जल मार्ग पर होने से इन यात्राओं का पाखंड याद आ गया।
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