Wednesday, 29 January 2025

मृत्यु की डुबकी

दयानंद पांडेय

आस्था में विभोर , भोर में ही मृत्यु की डुबकी के मारे लोग हमारी याद से कैसे जाएंगे भला ?

उन की याद में , कम से कम जिन की ज़िंदगी कुंभ स्नान की लालसा में मौनी अमावस्या ने लील कर अमावस घोल दिया , उन के दुःख , सम्मान और शोक में हेलीकाप्टर से पुष्प वर्षा की अश्लीलता से बचा जाना चाहिए था। हर हाल बचा जाना चाहिए था। मनुष्यता की मांग थी कि तीनों शंकराचार्य और संत जन भी आज शाही स्नान रद्द कर दिए होते। अखाड़ों की भव्यता और शोभा यात्रा का यह अश्लील प्रदर्शन लोगों की लाशों पर इतना ज़रूरी क्यों था ?

भावुक हो कर , गला भर आना , आंख भर आना , रोना , योगी के दुःख , संवेदना और निर्मल मन की थाह ज़रूर देता है पर शुचिता और नैतिकता का तकाज़ा तो यह भी है कि संगम की रेती पर कैबिनेट करने वाली योगी सरकार इस्तीफ़ा दे दे। कह सकते हैं कि जब गोविंद वल्लभ पंत ने , नेहरू ने नहीं दिया इस्तीफ़ा , हरिद्वार के कुंभ की भगदड़ में मरने वालों के शोक में वीर बहादुर सिंह ने नहीं दिया , अखिलेश यादव टाइप लोगों ने नहीं दिया इस्तीफ़ा तो योगी भी क्यों दें ?

कृपया मुझे यह कहने की अनुमति दीजिए कि उन लोगों ने भी राजनीतिक नैतिकता और शुचिता का परिचय नहीं दिया तो क्या आप को भी वही अधिकार है कि पतित पावनी गंगा में राजनीतिक नैतिकता और शुचिता को विसर्जित कर दें ? वह लोग तो संत नहीं थे , आप संत हैं। सचमुच के संत हैं। जिन निर्बल वर्ग के लोगों ने मृत्यु की डुबकी लगाई है , उसी निर्बल वर्ग से आते हैं। यह भी सच है कि आप की मंशा , आप की तैयारी और प्रयास में कोई कमी नहीं रही है पर प्रशासनिक चूक के लिए किसी के ख़िलाफ़ अभी तक कार्रवाई क्यों नहीं हुई ? आयोग भी क्या कर लेगा ? किस को फांसी दे देगा ? मीडिया भी नहीं बता रहा , न ही प्रशासन पर भगदड़ और मृत्यु मेले में सिर्फ़ एक नहीं , अनेक जगह हुई है। अल्ल सुबह से तमाम विघ्नसंतोषी तीन हज़ार से दस हज़ार तक की मृत्यु का पहाड़ा पढ़ते रहे। लेकिन शासन , प्रशासन कहता रहा कि अफ़वाहों पर ध्यान न दें।

यह क्या था ?

तीस की मृत्यु संख्या बताने में भी भोर से शाम क्यों हो गई ? गांव-गांव से शोक की चीत्कार जब आने लगी तभी नींद क्यों खुली , संख्या बताने के लिए। प्रधान मंत्री ने पूर्वान्ह में ही शोक जता दिया दिल्ली के चुनावी भाषण में पर मृतकों की संख्या तब भी क्यों नहीं बता दी गई। पारदर्शिता का यह क्षरण क्या कहता है भला ! मेला प्रशासन बता रहा है कि आज कोई वी आई पी मूवमेंट नहीं था। पर सुबह - सुबह ही स्नान करते हुए संगम से हेमा मालिनी की बाइट दिखी थी। तो क्या वह वी आई पी नहीं हैं ? जनता-जनार्दन की तरह झोला लिए संगम तक पैदल आई थीं ?

शासन से जुड़े लोगों का कहना है कि यह छोटी - मोटी घटना है। कोई शंकराचार्य , किसी अखाड़े का बड़ा संत , कोई मंत्री , कोई अफ़सर , कोई सांसद , विधायक भी अगर इसी तरह मृत्यु की डुबकी मार गया होता तब ? क्या तब भी यही कहा जाता कि छोटी - मोटी घटना है। केंद्रीय गृह मंत्री को जिस तरह संगम के जल में संतों ने निहुरे - निहुरे नहलाया , कोर्निश बजाई क्या वह भी छोटी - मोटी घटना थी ? मृत्यु की डुबकी की बुनियाद उसी दिन पड़ गई थी।

मान सिंह अकबर का दरबारी था। कहा जाता है कि मान सिंह ने अपनी बहन जोधा बाई का विवाह अकबर से किया था। यह सरासर गप्प है। जोधा बाई , अरे किसी भी नाम की कोई बहन मान सिंह की नहीं थी। मुग़लेआज़म फ़िल्म में कमाल अमरोही नाम के एक लेखक और फ़िल्म निर्देशक की कल्पना से उपजा एक चरित्र थी जोधा बाई। बस। मान सिंह को अपमानित करने के लिए यह कमाल अमरोही का कमीनापन था। अलग बात है कि बाद में निर्देशक आशुतोष गोवारिकर ने भी जोधा अकबर नाम की फ़िल्म बनाई और कि एकता कपूर ने टी वी सीरियल।

यही मान सिंह एक बार सोमनाथ मंदिर गया। पुजारियों ने मंदिर में प्रवेश पर रोक लगा दिया। मान सिंह पुजारियों से मिला और पूछा की कारण क्या है ? पुजारियों ने बताया कि तुम एक मलेच्छ की नौकरी करते हो , इस लिए तुम मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकते। मान सिंह ने बताया कि नौकरी भले मलेच्छ की करता हूं। पर अपने धर्म से कभी कोई समझौता नहीं किया। मान सिंह ने बताया कि वह पूजा - पाठी है और कि सर्वदा गंगा जल का ही उपयोग करता है। देश के किसी भी हिस्से में हो , हरिद्वार से नियमित गंगा जल मंगवाता है। गंगा जल ही पीता है , उसी से स्नान करता है और भोजन भी उसी से बनाता है। मान सिंह की इस बात का परीक्षण किया पुजारियों ने और पाया कि मान सिंह सच बोल रहा है। मान सिंह को सोमनाथ मंदिर में प्रवेश और पूजा की अनुमति पुजारियों ने दे दी।

गंगा जल का नियमित सेवन करने वाला कोई शंकराचार्य , कोई संत , कोई राजनीतिज्ञ , कोई उद्योगपति , कोई फ़िल्मी , कोई इल्मी या कोई नागरिक आज की तारीख़ में दुर्लभ है। गंगा किनारे रहने वाले लोग भी नहीं गंगा जल का उपयोग अब नहीं करते। क्यों कि हम सब ने मिलजुल कर उसे प्रदूषित कर बस मैली ही कर रखा है। राम की गंगा ही नहीं , सभी नदियां अब पीने लायक़ तो छोड़िए , आचमन लायक़ भी कोई एक नदी नहीं रह गई है। आज देखा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री बाबू सिंह सैनी , अरविंद केजरीवाल को राजनीतिक जवाब देने के लिए हरियाणा में यमुना के जल का आचमन कर रहे थे। मुंह में पानी लेते ही थूक दिया , घोंटा नहीं। क्यों कि वह जानते थे कि यमुना हरियाणा की ही सही , कितनी स्वच्छ है। हो सकता है मुंह में पानी ले लेने से जीभ या गाल में छाले पड़ गए हों।

कभी दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले , अब दिल्ली में रहने वाले , एक पाखंडी ब्राह्मण वामपंथी आलोचक , प्रोफ़ेसर इन दिनों अपने घर प्रयाग आए हुए हैं। लगभग रोज ही कुंभ पर एक-दो विष भरी पोस्ट फ़ेसबुक पर डालते रहते हैं। आज सुबह उन की बांछें खिल गईं। मुराद पूरी हो गई तो धकाधक पोस्ट लिखने लगे। ढाई हज़ार से अधिक की मौत सुबह आठ बजे ही बता गए। यह भी लिखा कि पत्नी बड़ी धार्मिक हैं आज अमावस्या स्नान के लिए उन्हें जाना था। आदि - इत्यादि। फिर यह भी लिखा कि संगम के गंदे पानी में नहाने के बाद बिना बाथरूम में नहाए रहा नहीं जाता। ऐसे विष भरी बातें लिखने के वह अभ्यस्त हैं। मथुरा के भी एक वामपंथी लेखक भी यही सब रोज करते हैं। राजनीतिक दलाली का गले में पट्टा बांधे ज़्यादातर लेखक , पत्रकार कुंभ को ले कर विष - वमन के आचार्य बने बैठे हैं। यह विष - वमन उन की ख़ुराक़ है। न करें खाना न पचे , पाख़ाना न हो। अखिलेश यादव , राहुल गांधी , पप्पू यादव टाइप के राजनीतिक लाखैरे टाइप के लोगों के तो ख़ैर क्या कहने !

मुख्य मंत्री योगी ने अपने अश्रु भरे उदबोधन में मृतकों के परिजनों को पचीस लाख रुपए के मदद की घोषणा की है। यह सुन कर अयोध्या के एक पंचकोसी परिक्रमा की याद आ गई है। कांग्रेस के वीर बहादुर सिंह तब मुख्यमंत्री थे। गोरखपुर के ही थे। पंचकोशी परिक्रमा की भगदड़ में कुछ लोग मर गए थे , ज़्यादातर घायल थे। एक ग्रामीण और ग़रीब वृद्ध की पत्नी की भी मृत्यु हो गई थी। दूरदर्शन के एक समाचार बुलेटिन में नंगी देह , मटमैली सी धोती लपेटे , रिपोर्टर से बात करते हुए वह बहुत ख़ुश था। कह रहा था कि बुढ़िया को तो मरना ही था। उम्र हो गई थी। पर बड़ी ख़ुशक़िस्मत थी। भाग्यशाली थी। आकाश की तरफ आंख और हाथ उठा कर बोला कि अयोध्या में मर कर ख़ुद स्वर्ग चली गई और जाते-जाते हमें भी पांच हज़ार रुपए मुआवज़े में दे गई। और का चाही ! यह 1986 या 1987 की बात है। रघुवीर सहाय याद आते हैं :

राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य-विधाता है

राष्ट्रगीत में भला कौन वह भारत-भाग्य-विधाता है फटा सुथन्ना पहने जिसका गुन हरचरना गाता है मखमल टमटम बल्लम तुरही पगड़ी छत्र चंवर के साथ तोप छुड़ाकर ढोल बजाकर जय-जय कौन कराता है पूरब-पश्चिम से आते हैं नंगे-बूचे नरकंकाल सिंहासन पर बैठा उनके तमगे कौन लगाता है कौन-कौन है वह जन-गण-मन अधिनायक वह महाबली डरा हुआ मन बेमन जिसका
बाजा रोज बजाता है

किसी ग़रीब के लिए तब पांच हज़ार बहुत था। आज पचीस लाख तो बहुत ही ज़्यादा है। लगते रहें कुंभ। परिक्रमा होती रहे। होती रहे भगदड़। मरते रहें लोग। मिलते रहें पचीस लाख। मृत्यु की डुबकी हरचरना लगाता रहेगा। किसी के बाप का क्या जाता है ! स्वर्ग का स्वर्ग , मुआवज़ा का मुआवज़ा !



3 comments:

  1. सटीक विश्लेषण ।

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  2. लिख डाला बहुत दुखी है

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  3. बहुत सही लिखा है .. निष्पक्ष लेखन

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