Saturday, 19 February 2022

जंगलराज के पर्याय एम वाई फैक्टर को चकनाचूर करना बहुत ज़रुरी हो गया है

दयानंद पांडेय 

बुलडोजर राज कहना आसान होता है। लेकिन जंगलराज ? यह कहते हुए कई हिप्पोक्रेट्स की जीभ लटपटा जाती है। शुचिता , नैतिकता और प्रतिबद्धता की डींग हांकना भी बहुत आसान होता है। लेकिन किसी प्रदेश को जंगल राज में जाने से बचाना आसान नहीं होता। जैसे योगी ने उत्तर प्रदेश को जंगल राज का ग्रास होने से बचाया। योगी नहीं आए होते तो तय मानिए मुलायम परिवार उत्तर प्रदेश को जंगल राज में धकेल चुका था। जैसे बिहार को लालू परिवार ने जंगल राज के हवाले कर दिया था। 

सोचिए कि नीतीश कुमार नहीं आए होते तो बिहार अभी किस स्थिति में होता ? बिहार के लिए जंगल राज अब छोटा शब्द बन गया होता। कोई और अराजक शब्द आ गया होता। यह सिर्फ़ संयोग नहीं है कि लालू और मुलायम ने अपराधियों के हाथ में जिस तरह बिहार और उत्तर प्रदेश को सौंपा और सेक्यूलर चैंपियंस ने जिस तरह लालू , मुलायम , अखिलेश के क़सीदे पढ़े , वह अद्भुत था। मुलायम राज को गैप देते हुए अगर मायावती बीच-बीच में न आई होतीं तो उत्तर प्रदेश की हालत तो बिहार से भी बदतर हो गई होती। लालू को जैसे प्रछन्न राज मिला , राबड़ी यादव का कार्यकाल भी लालू का ही कार्यकाल था। नाम भर राबड़ी का था। 

उधर बिहार में शहाबुद्दीन , पप्पू यादव जैसे हत्यारे थे , लालू के दोनों साले थे। इधर उत्तर प्रदेश में मुख्तार अंसारी , अतीक अहमद , आज़म खान , डी पी यादव जैसे थे। कहिए कि जनता समय पर चेत गई। उधर नीतीश कुमार आ गए , इधर योगी। जंगल राज की तपिश से दोनों प्रदेश निकल आए। लेकिन एम वाई फैक्टर यानी मुस्लिम , यादव गठजोड़ ने बिहार और उत्तर प्रदेश की राजनीति को जिस तरह जंगल राज दिया वह बहुत ही तकलीफदेह था। उत्तर प्रदेश और बिहार को इस जंगल राज से बचाए रखने के लिए एम वाई फैक्टर को चकनाचूर करना अब प्राथमिक ज़रुरत है। यह बात लोग जितनी जल्दी समझ लेंगे , उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों के लिए शुभ होगा। 

क्यों कि एम वाई फैक्टर दोनों प्रदेशों के विकास की राह से मोड़ कर जंगल राज से परिचित करवाने के पर्याय हो गए हैं। बिहार में लालू की राष्ट्रीय जनता दल पार्टी और उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए भाजपा के लोग परिवारवादी पार्टी बताते हैं। गलत बताते हैं। राजद और सपा दोनों ही अपराधियों को पालने-पोसने वाली अपराधी पार्टियां हैं। मुलायम तो खुद अपराधी रहे हैं। हत्या और डकैती के 36 मुकदमे थे , इटावा में। हिस्ट्रीशीट थी। लालू के खिलाफ हत्या और डकैती की धाराएं तो नहीं लगीं पर भ्रष्टाचार की इतनी आग मूती की सज़ायाफ्ता हो गए हैं। चुनाव लड़ने के लायक़ नहीं रह गए हैं। मुलायम ने हत्या , डकैती के मुकदमे खुद ही खत्म करवा लिए। आय से अधिक संपत्ति का मामला अभी नहीं खत्म करवा पाए हैं। लगे हुए हैं। बड़े ज़ोर-शोर से। 

बिहार में लालू ने जितने हिंदू-मुस्लिम दंगे करवाए , किसी ने नहीं। यही हाल मुलायम का भी है। मुलायम ने भी उत्तर प्रदेश में सब से ज़्यादा हिंदू-मुसलमान दंगे करवाए। अखिलेश यादव ने भी। लोकतंत्र के नाम पर कलंक हैं यह दोनों पार्टियां। राजद हो या सपा। सेक्यूलर होने की चाशनी में अपराधियों और दंगाइयों का भरण-पोषण करती रही हैं। इस पाप और अपराध को अंजाम देने के लिए राजद और सपा दोनों ही ने एम वाई यानी मुस्लिम और यादव वोट बैंक का दुर्ग बनाया। कवच-कुण्डल बनाया। बिहार और उत्तर प्रदेश को जंगल राज में धकेल दिया। तो जंगल राज से बचाने के लिए दोनों ही प्रदेशों के जागरुक लोगों को यह एम वाई फैक्टर तोड़ना पड़ेगा। चकनाचूर करना पड़ेगा। यादव और मुस्लिम समाज को ख़ुद आगे बढ़ कर एम वाई फैक्टर को ध्वस्त कर देना चाहिए। जो एम वाई फैक्टर प्रदेश को जंगल राज बनाता हो , अपहरण उद्योग और हत्यारों की राजधानी बनाता हो , किसी सभ्य समाज को उस फैक्टर की ज़रुरत ही क्या है। 

किसी भी सभ्य और विकसित हो रहे समाज को जंगल राज नहीं , अमन-चैन का राज चाहिए। मुसलमानों को खुद सोचना चाहिए कि 2013 के मुज़फ़्फ़र नगर दंगे के समय अखिलेश यादव सैफई महोत्सव में जश्न कैसे और क्यों मनाते रहे ? अगर मुस्लिम समाज के सुरक्षा की चिंता होती तो क्या सैफई महोत्सव कैंसिल नहीं हो सकता था ? ऐसे तमाम प्रश्न हैं जो मुस्लिम समाज अखिलेश या मुलायम से कर सकता है। यादव समाज और मुस्लिम समाज दोनों को ही आज की तारीख़ में अखिलेश यादव और लालू परिवार से पूछना चाहिए कि यादव समाज और मुस्लिम समाज को उन्हों ने अराजकता के अलावा सचमुच में दिया क्या है ? भाजपा का डर दिखा कर शोषण करने के अलावा किया क्या है ?

कोई जवाब नहीं मिलेगा। 



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