Thursday 26 August 2021

सुरेंद्र वर्मा ने किसी शोधार्थी से इंटरव्यू के लिए पैसा मांग लिया तो हर्ज क्या है

दयानंद पांडेय 

सुरेंद्र वर्मा मेरे पसंदीदा लेखक नहीं हैं। लेकिन अगर किसी शोधार्थी से इंटरव्यू देने के लिए पैसा मांग लिया तो क्या बुरा कर दिया ? बहुत से विदेशी लेखक इंटरव्यू देने के लिए पैसे लेते हैं। लखनऊ में एक बार अमर उजाला अखबार के रिपोर्टर ने श्रीलाल शुक्ल का इंटरव्यू लिया। श्रीलाल शुक्ल का अमर उजाला में छपा वह इंटरव्यू श्रीलाल शुक्ल की किताब मेरे साक्षात्कार में भी संकलित है। खैर , अमर उजाला में इंटरव्यू छपने के बाद श्रीलाल शुक्ल ने अमर उजाला अखबार को पैसे के लिए लीगल नोटिस दे दी। अमर उजाला ने श्रीलाल शुक्ल को पैसा तो नहीं दिया , उलटे रिपोर्टर को ज़िम्मेदारी दी कि श्रीलाल शुक्ल का इंटरव्यू उन्हों ने लिया है तो उन्हें पैसा न लेने के लिए मनाएं भी। 

रिपोर्टर ने किसी तरह उन्हें मना लिया। बाद में एक मदिरा महफ़िल में मैं ने श्रीलाल जी से इस बाबत ज़िक्र किया तो वह बोले हिंदुस्तान के अखबार चोर और बेईमान हैं। यूरोप के देशों में अखबारों के लिए इंटरव्यू देने के लिए लेखक को पैसा देने की परंपरा है। बहुत से और देशों में। भारत में भी फूलन देवी को इंटरव्यू देने के लिए विदेशी पत्रकारों ने पैसे दिए थे। ऐसे कई प्रसंग हैं। अभिनेता दिलीप कुमार से मैं ने इंटरव्यू लिया तो इंटरव्यू के बाद वह बहुत गंभीर हो कर बोले , मेरी फीस कहां है ? मैं ने छूटते ही उन से विनयवत कहा कि आप की फीस मैं आप को दे सकूं , ऐसी मेरी हैसियत नहीं है ! दिलीप कुमार हंसते हुए बोले , जाइए , जीते रहिए ! 

ऐसे भी कई सारे प्रसंग मेरी जानकारी में हैं कि लोगों ने इंटरव्यू देने और छपवाने के लिए भी भारी भुगतान दिए हैं। देते ही रहते हैं। ख़ास कर उद्योगपति , व्यवसाई , फ़िल्मी लोग और खिलाड़ी। कुछ लेखक भी पैसा दे कर इंटरव्यू छपवाते हैं। किस-किस का नाम लूं  ?  ऐसे में किसी शोध करने वाले से कोई लेखक पैसा मांग लेता है तो मुझे यह बात कतई गलत नहीं लगती। हिंदी के लेखक को लोगों ने जाने क्या समझ रखा है कि उसे किसी काम के लिए , पैसा देना लोगों को बुरा लगता है। अब तो अख़बार और पत्रिकाएं भी लेखक को कोई भुगतान नहीं देते। तमाम वेबसाइटें भरपेट और भरपूर पैसा कमा रही हैं पर लेखक को एक पैसा नहीं देतीं। क्यों भाई , क्यों ? तमाम सेमीनार और अब वेबिनार में भी आयोजक खुद तो पैसा कमाते हैं लेकिन लेखक को पैसा नहीं देते। मार्ग व्यय भी नहीं। 

और तो और प्रकाशक काग़ज़ , छपाई , बाइंडर , प्रूफ रीडर , अनुवादक हर किसी को मुंह माँगा भुगतान देते हैं। कई बार एडवांस भी। लेकिन लेखक को पैसा देने में प्रकाशक के प्राण निकल जाते हैं। अब अलग बात है , बहुत सारे गिरे हुए लेखक प्रकाशक को पैसा दे कर , लेखिकाएं देह और पैसा दोनों दे कर किताब छपवाने में संलग्न हैं। ऐसे में अगर कोई लेखक इंटरव्यू देने के लिए पैसे मांग बैठे तो लोग चौंकेंगे ज़रूर। पर इस पूरे प्रसंग में देख रहा हूं कि तमाम फतवेबाज लेखक पैसे मांगने वाले लेखक सुरेंद्र वर्मा की हजामत बनाने में लग गए हैं। यह गुड बात नहीं है। अरे सीधी सी बात है कि लेखक अपने श्रम , अपने कार्य का पारिश्रमिक मांग रहा है तो उसे यह सहर्ष दिया जाना चाहिए। न मांगे तो भी देना चाहिए। आप पैसा कमाएं और आगे पैसा कमाने के लिए आप किसी का श्रम का मूल्य हड़प जाएं , यह कोई स्वस्थ बात तो हरगिज नहीं है। लेखक को हर बात के लिए , उस के श्रम के लिए सम्मानजनक पैसा देने की परंपरा अब से ही सही , शुरू हो जानी चाहिए। क्यों कि हिंदी का हर लेखक दिलीप कुमार नहीं है। 


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