अब यह देखना भी दिलचस्प है कि किसान झुकते हैं कि सरकार। जो भी हो अगर कृषि बिल रद्द होता है तो तय मानिए कि मोदी सरकार का काउंट डाऊन शुरू। क्यों कि अभी सी ए ए पर शहर-दर-शहर शाहीन बाग़ और दंगों का प्रयोग हमारे सामने है। अलग बात है वह एक अर्थ में सफल नहीं हुआ। इस के सफल न हो पाने का बहुत बड़ा श्रेय कोरोना को भी जाता है। फिर कृषि बिल रद्द करने के लिए जिस तरह दिल्ली बार्डर का चौतरफा घेराव किया गया है , सरकार को घेरने के लिए वह भी शाहीन बाग़ से आगे का प्रयोग है। वह यह कि जब भी कोई अध्यादेश आए , क़ानून बने दिल्ली को बंधक बना लीजिए और सरकार का गला दबा दीजिए। सरकार असहाय , निकम्मी और लाचार हो कर हाथ पर हाथ धरे बैठी रहे।
क्यों कि कांग्रेस सरकारों की तरह किसानों या किसी भी आंदोलनकारी पर गोली चलाने के प्रयोग से यह सरकार अभी तक तो बची हुई है। लोकतंत्र का तकाजा भी यही है किसी भी आंदोलनकारी पर गोली या लाठी न चले। फिर यह आंदोलनकारी तो अन्नदाता के वेश में हैं। जनरल डायर बन कर तो कोई सरकार अब सांस भी नहीं ले सकती।
बाकी मोदी सरकार तो वैसे भी ऐसे मामलों में कायर है। तब्लीगी जमात के मौलाना साद को तो यह सरकार छू भी नहीं पाई है। बाकी मामलों का क्या कहना। सो मुझे लगता है कि अब देर-सवेर किसान आंदोलन मामले पर सुप्रीम कोर्ट के दखल से ही कुछ आर-पार या बीच का मामला निकले तो निकले। क्यों कि सरकार न तो घुटने टेकेगी , न सख्ती करेगी। फिर किसान भी अब मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों ! पर अड़ गए हैं।
चीन , पाकिस्तान , कांग्रेस और कम्युनिस्टों से तो यह मोदी सरकार हज़ार बार लड़ सकती है , जीत सकती है पर किसान और मुसलमान से किसी सूरत नहीं। लड़ना , अरे लड़ने का सपना भी नहीं देख सकती। यह मोदी सरकार कूटनीति जानती है , युद्ध नहीं। इस सरकार की सारी फतह इस की कूटनीति में है , युद्ध में नहीं। और पंजाब के किसान कूटनीति नहीं , कुटाई जानते हैं। 15 दिन से दिल्ली की छाती पर बैठ कर बेभाव मोदी सरकार को कूट रहे हैं। मोदी भी गलती पर गलती किए जा रहे हैं। अपनी ही सरकार के नंबर दो राजनाथ सिंह को जाने क्यों आज़मा नहीं रहे।
राजनाथ सिंह कूटनीति को कुटिलता की हद तक ले जाने में प्रवीण हैं। उत्तर प्रदेश में बतौर मुख्य मंत्री वह अपनी इसी कुटिलता के बूते एक समय बेहद आग मूतने वाले महेंद्र सिंह टिकैत का पानी उतार चुके हैं। जब कि बतौर भाजपा अध्यक्ष , उत्तर प्रदेश मायावती का काम तमाम इसी कुटिलता के बूते कर चुके हैं , जो मुलायम सिंह यादव बहुत चाह कर भी कभी नहीं कर पाए। और तो और यह राजनाथ सिंह की कुटिलता भरी कूटनीति ही थी कि कल्याण सिंह जैसे बड़े कद के नेता जो कभी अटल , आडवाणी के बाद भाजपा में तीसरे नंबर के नेता के नाते शुमार थे , उन कल्याण का कद नागफनी की तरह काट कर , न सिर्फ मुख्य मंत्री पद से उन को चलता किया बल्कि पार्टी से भी बाहर का रास्ता इस तरह दिखाया कि कल्याण सिंह को मुलायम सिंह यादव की शरण में जाना पड़ा था। और तो और कल्याण सिंह जब चौतरफा अपमानित हो कर भाजपा में लौटे भी तो बतौर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कल्याण सिंह को राज्यपाल नियुक्त कर दिया ताकि उत्तर प्रदेश की राजनीति में वह फिर सिर न उठा पाएं।
राजनाथ सिंह अपनी कुटिलता की कूटनीति अभी तक अगर किसी से हारे हैं तो वह अकेले नरेंद्र मोदी हैं। अगर 2014 में मोदी का करिश्मा सिर चढ़ कर नहीं बोलता तो राजनाथ सिंह की पूरी तैयारी प्रधान मंत्री बनने की ही थी। यह उन की कुटिलता भरी बढ़ती महत्वाकांक्षाएं ही थीं कि मोदी ने पहले तो उन्हें अध्यक्ष पद से हटा कर गृह मंत्री बना कर लाचार किया।अक्षम साबित किया। कड़ी निंदा के सिवाय उन के पास कोई काम ही नहीं छोड़ा। फिर 2019 में पर काट कर रक्षा मंत्री बना कर पिंजरे में डाल दिया। अपने बचाव के लिए इतना सब करना तो गुड था पर किसान आंदोलन को बेअसर करने के लिए राजनाथ सिंह की कुटिल कूटनीति को आज़मा लेने में कोई हर्ज तो नहीं दीखता।
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