Friday, 13 November 2020

अल्लाह करे ज़ोर-ए-शबाब और ज़ियादा


भोजपुरी में एक कथा हम ने बचपन में बार-बार सुनी है। एक गांव में उल्लू अपने को बार-बार लोगों द्वारा उल्लू कहे जाने से बहुत परेशान हो गया। आजिज आ कर वह यह गांव छोड़ कर बहुत दूर के गांव में चला गया। फिर वहां भी लोग उसे उल्लू ही कहने लगे। तो वह बहुत ही चकित हुआ और लोगों से पूछ ही बैठा , अस्सी कोस छोड़लीं हम आपन गांव , तूं कइसे जनल उल्लू नांव ! मतलब हम ने अस्सी कोस अपना गांव छोड़ दिया फिर भी आप ने मेरा उल्लू नाम कैसे जान लिया। तो अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति ओबामा ने जब अपनी नई किताब के बहाने राहुल गांधी को पहचान लिया है तो कोई नई बात तो नहीं ही है। राहुल गांधी की शख्शियत ही ऐसी है भैया। यह ठीक है कि काना को काना , अंधे को अंधा , लंगड़े को लंगड़ा कहने की शराफ़त में रवायत नहीं है। तो उल्लू को उल्लू , पप्पू को पप्पू कहने से भी बचना ही चाहिए , ऐसा कोई ज़रूरी भी तो नहीं है। कहते रहें नरेंद्र मोदी कि मनमोहन सिंह रेनकोट पहन कर नहाते थे। पर ओबामा ने मनमोहन सिंह को ईमानदार बताया है। ओबामा ने मनमोहन सिंह की ईमानदारी की तारीफ़ करते हुए सोनिया गांधी के हुस्न की भी तारीफ़ भी की है। हसरत जयपुरी ने लिखा ही है :

छलके तेरी आँखों से शराब और ज़ियादा 

खिलते रहें होंठों के गुलाब और ज़ियादा 

क्या बात है जाने तेरी महफ़िल में सितमगर 

धड़के है दिल-ए-खाना-खराब और ज़ियादा

इस दिल में अभी और भी ज़ख़्मों की जगह है 

अबरू की कटारी को दो आब और ज़ियादा

तू इश्क़ के तूफ़ान को बाँहों में जकड़ ले 

अल्लाह करे ज़ोर-ए-शबाब और ज़ियादा


तो ज़ोर-ए-शबाब चाहे उल्लूपने की हो या हुस्न की छुपती थोड़े है कहीं। आप कहीं भी चले जाएं। सोनिया अपनी जवानी में वाकई खूबसूरत थीं। खुशकिस्मती से हम ने देखा है। और थोड़ा करीब से देखा है। कई बार यह अवसर प्राप्त हुआ है। अपने हुस्न को हसीन बनाने के लिए क्या-क्या तो जतन भी वह करती थीं , तब के दिनों। लखनऊ जब कभी आतीं थीं तो फ़ार्म से चिकेन के चूजों का ख़ास इंतज़ाम तब के एक कैबिनेट मंत्री के जिम्मे रहता था। वह मंत्री बड़ा रस ले कर बताते थे कि मैडम का वक्ष और उस का एक ख़ास हिस्सा सुडौल बना रहे उस के चिकेन के चूजों का सूप बहुत बेहतर रहता है। सच भी था। इस सच को अंतरराष्ट्रीय पत्रिका टाइम ने साबित भी किया। 

टाइम ने सोनिया गांधी के उत्तेजक वक्ष वाली उन की एक फ़ोटो , लो कट ड्रेस में अपने कवर पेज पर छाप दी उन्हीं दिनों। वह एक फ़िल्मी गाना है न , गोरे-गोरे मुखड़े पर काला-काला चश्मा। तो सोनिया काले रंग की लो कट टी शर्ट में थीं उस फ़ोटो में। काले-गोरे के कंट्रास्ट में बात बन गई थी। फोटोग्राफर भी जो भी कोई था , बहुत शार्प और ग्रेट था। ऐसी उत्तेजक फ़ोटो कि उसे देख कर फ़िल्मों की बड़ी-बड़ी कामुक अभिनेत्रियां आज भी लजा जाएं। फ़ोटो और सेक्स की दुनिया में तब जैसे आग लग गई थी। आग कांग्रेस में भी लगी। राजीव गांधी तब प्रधान मंत्री थे। टाइम पत्रिका के उस अंक को भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया था। 

तब नेट का ज़माना नहीं था। कि बैन लगने के बावजूद वह फ़ोटो हर किसी को सुलभ हो। कि उस फ़ोटो को हर कोई देख ले। फिर भी टाइम के जो वार्षिक या आजीवन सदस्य थे , उन लोगों के पास डाक से अंक आ गए। कुछ लोग जा कर ले आए। तो हम जैसे लोगों ने भी सोनिया की उस उत्तेजक वक्ष वाली दिलकश फोटो का खूब दीदार किया। डरते-डरते सही , खोज-खोज कर लोगों ने देखा। और अब ओबामा भी उन के हुस्न के कसीदे काढ़ रहे हैं तो अनायास नहीं। गौरतलब है कि ओबामा हनुमान भक्त भी हैं फिर भी उन की हुस्न पर नज़र है तो जय हनुमान ! मेरा खयाल है कि टाइम पत्रिका के उस अंक की तरह कांग्रेस ओबामा की इस किताब को बैन करने की मांग नहीं करेगी। न मोदी सरकार कांग्रेस की इस मांग पर अमल करेगी। 


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