क्या यह वही कांग्रेस है , जिस के नेता महात्मा गांधी ने एक चौरीचौरा कांड जिस में उग्र भीड़ ने थाना जला दिया था , से आहत हो कर पूरे देश से असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था। यह वही कांग्रेस है ? जो देश के मुसलमानों को भड़काने और बहकाने की हर संभव कोशिश में संलग्न है। देश और मनुष्यता धू-धू कर जले तो उन की बला से। तीन तलाक खत्म हुआ , मुसलमान जो कहते थे कि तीन तलाक खत्म किया तो देश में आग लगा देंगे , वही मुसलमान देश भर में चुप रहे। कश्मीर में 370 खत्म हुआ , देश के मुसलमान चुप रहे। अयोध्या में राम मंदिर के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया , देश के मुसलमान फिर भी चुप रहे। कांग्रेस का दम घुटने लगा। नागरिक संशोधन बिल आया तो कांग्रेस ने सारा धैर्य गंवा कर मुसलमानों को हिंसा के लिए हरी झंडी दिखा दिया।
हिंसा की खुनी ट्रेन , अब चल पड़ी है। गोया ट्रेन टू पाकिस्तान हो। भाजपा और संघ को अफ़वाह का भंडार बताने वाली कांग्रेस अब अफ़वाह का सागर बन चुकी है। हर क्षण अफवाह की कोई न कोई लहर उठाती रहती है। आसाम शांत हुआ तो दिल्ली आसान लगा उसे। जामिया मिलिया सर्वश्रेष्ठ केंद्र दिखा इस काम के लिए। जामिया मिलिया की हिंसा की आग के बावजूद पुलिस ने एक भी गोली नहीं चलाई , एक भी व्यक्ति नहीं मरा। लेकिन कांग्रेस और उस के आई टी सेल ने कइयों की पुलिस की गोली से हत्या की खबर लहका दी। आम आदमी पार्टी ने भी कांग्रेस की इस अफवाह को अपना कंधा दे दिया। बता दिया कि पुलिस ही बसों में आग लगा रही थी। जब कि पुलिस आग बुझा रही थी। जामिया मिलिया की वाइस चांसलर ने अधिकृत बयान जारी कर बता दिया है कि जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी का कोई भी छात्र नहीं मारा गया है। याद रखिए कि बाटला हाऊस कांड में भी जामिया मिलिया का इसी तरह दुरूपयोग किया गया था। खैर , जामिया मिलिया की आग ठंडी भी नहीं हुई कि दिल्ली के ही मुस्लिम बहुल सीलमपुर में आग लगा दी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी , और लखनऊ के नदवा में भी आग भड़का दी। जिस जामिया मिलिया में एक भी नहीं मारा गया , उस के शहीदों के लिए नए भड़काऊ नारे गढ़ लिए। आंदोलन शुरू कर दिया।
क्या विरोध का मतलब हिंसा ही होता है। ग़नीमत है कि सुप्रीम कोर्ट ने आज समझ और विवेक से काम लिया है। कहा है कि पहले हिंसा बंद कीजिए , फिर हाईकोर्ट जाइए। बताइए कि कांग्रेस किस ज़िम्मेदारी से विपक्ष का काम अंजाम दे रही है , सोचने और समझने की बात है। रही बात मुसलमानों और वामपंथियों की तो यह जानिए कि हिंसा , इस्लाम और वाम का चोली-दामन का रिश्ता है। यकीन न हो तो दुनिया भर में इन का समूचा इतिहास उठा कर देख लीजिए। बिना हिंसा के इन का कोई मकसद पूरा नहीं होता। या यूं कहिए कि बिना हिंसा के यह रह नहीं सकते। जैसे दुःख हो , सुख हो , किसी शराबी को पीने का बहाना चाहिए। ठीक वैसे ही मसला कोई भी वाम और इस्लाम को हिंसा का बहाना चाहिए। यह लोग अहिंसा में यकीन नहीं रखते। एक को जेहाद चाहिए , दूसरे को सशस्त्र क्रांति। दिलचस्प यह कि वर्तमान समय में वाम और इस्लाम दोनों ही कांग्रेस के लिए बैटिंग में व्यस्त हैं। कांग्रेस जो चाहे , इन लोगों से करवा ले। तो चकित न हों किसी हिंसा , किसी आगजनी और उपद्रव से। अभी तो समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण का बिल भी आने दीजिए। तो कांग्रेस अभी और भी कमाल करेगी और अपनी ताबूत में कील पर कील ठोंकेगी। यह अनायास नहीं है कि कांग्रेस एक साथ मुस्लिम लीग और शिवसेना दोनों से एक साथ हाथ मिला लेती है। यह कांग्रेस की अंतिम सांसें हैं। अपना जीवन बचाने के लिए लोग पॉजिटिव काम करते हैं। लेकिन कांग्रेस तो निरंतर आत्महत्या पर आमादा है।
एक पुराना किस्सा है कि। किसी गांव की एक औरत ने अपने गले के लिए चांदी की हंसुली खरीदी। वह हंसुली पहन कर गांव में घूमती रही लेकिन किसी ने उस की नोटिस नहीं ली। वह औरत परेशान हो गई। अंतत: उस ने अपनी झोपड़ी में खुद आग लगा ली। गांव के लोग आग बुझाने में लग गए। एक आदमी से अचानक उस औरत ने कहा कि , झोपड़ी में से मेरी हंसुली भी निकाल लाना। वह आदमी झोपड़ी में से हंसुली निकाल लाया और औरत से पूछा , कि यह हंसुली कब खरीदी ? तो वह औरत बोली , यही बात पहले पूछ ली होती तो , झोपड़ी में आग ही क्यों लगाती मैं ? वह आदमी यह सुन कर हकबका गया। कांग्रेस आज की राजनीति में वह औरत है। मुस्लिम वोट की दुकानदारी खातिर वह देश जला देना चाहती है। कभी मुस्लिम , कभी दलित को वह हथियार बनाती है। गनीमत है कि दृढ़ संकल्प से लबरेज एक बहुमत की सरकार है देश में। कोई अपनी महत्वाकांक्षा में , अपने महत्वोन्माद की बीमारी में अपनी झोपड़ी भले जला ले , पर यह सरकार देश नहीं जलने देगी।
अरे गलत या सही , सरकार ने संसद में एक बिल पास कर क़ानून बनाया। आप अगर उस बिल से , क़ानून से असहमत हैं तो यह आप का नागरिक अधिकार है। उस को कानूनी लड़ाई से ही समाप्त कीजिए। आंदोलन कीजिए , लड़ाई लड़िए। सब कुछ कीजिए। लेकिन हिंसा तो मत कीजिए। देश को तो मत जलाइए। जनता है , सुप्रीम कोर्ट है , संसद है। तमाम लोकतांत्रिक तरीक़े हैं। उन्हें आजमाइए। यह बुद्ध और गांधी का देश है। लोकतांत्रिक देश है। लोकतांत्रिक औज़ार से ही अपनी लड़ाई लड़िए। यह देश आप का है। अपना देश समझिए। आक्रमणकारी बनने से परहेज़ कीजिए। देश की संपत्ति नष्ट मत कीजिए। यह आप की भी उतनी ही है , जितनी किसी और की। देश के भविष्य नौजवानों को पढ़ने दीजिए। अपना मुस्तकबिल संवारने दीजिए। अपनी सत्ता पिपासा के लिए उन्हें हिंसा की आग में झोंकने से बचिए। आप मारिए नरेंद्र मोदी और अमित शाह को गोली। गांधी को याद कीजिए। उन की अहिंसा और सत्य को याद कीजिए। देश को हिंसा की आग में मत झोंकिए। मुसलमानों को अब्दुल हमीद , मौलाना आज़ाद और ए पी जे अबुल कलाम की राह पर चलने को प्रेरित कीजिए। औरंगज़ेब , आज़म खान और ओवैसी की राह पर नहीं। गांधी कहते ही थे कि ईंट का जवाब , पत्थर से देने से दुनिया खत्म हो जाएगी।
पाकिस्तान , अफगानिस्तान , बांग्लादेश बरबाद देश हैं। वहां के मुसलमानों की शिनाख्त आतंकी , बलात्कारी और अत्याचारी की है। उन के लिए क्यों अपने को कुर्बान करने पर आमादा हैं। अपने ही प्रधानमंत्री रहे ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को पाकिस्तान फांसी दे देता है। अपने ही राष्ट्रपति ज़ियाउल हक़ को दुर्घटना के बहाने मार देता है। प्रधानमंत्री रही बेनज़ीर भुट्टो को सैनिक तानाशाह और राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ मरवा देता है। और इसी तानाशाह राष्ट्रपति रहे परवेज़ मुशर्रफ को भी आज फांसी की सज़ा सुना दी गई है। अफगानिस्तान बुद्ध की मूर्ति को डाइनामाइट से उड़ा देता है। पूरी दुनिया अपील करती रहती है , पर वह नहीं मानता। बांग्लादेश की लड़ाई लड़ने वाले शेख मुजीबुर्रहमान को वही बांग्लादेशी हत्या कर देते हैं।
म्यांमार एक बौद्ध देश है। बुद्ध , जिस ने दुनिया भर को अहिंसा का पाठ सिखाया। गांधी ने बुद्ध से ही अहिंसा सीखी। उस म्यांमार में रोहिंग्या ने इतनी हिंसा की और बलात्कार का अत्याचार किया कि वहां की सेना ने उन्हें चुन-चुन कर देश से बाहर किया। उन पाकिस्तानियों , बांग्लादेशियों , रोहिंग्या और अफगानिस्तान के तालिबानों को अपने भारत का नागरिक बनाने के लिए आप क्यों अपनी जान पर खेल रहे हैं ? सिर्फ कांग्रेस की सत्ता संतुष्टि के लिए ? फिर तो आप को यह हिंसा मुबारक ! लेकिन ध्यान रखिए आप की हिंसा को कुचलने के लिए देश की सेना तैयार खड़ी है। कश्मीर इस इस्लामिक हिंसा को कुचलने का नायाब उदहारण है। तय आप को करना है कि सभ्य , शांत और सम्मानित नागरिक होना क़ुबूल है या हिंसक और जेहादी पहचान के साथ मर मिटना। यह आप के हाथ है।
हिंसा को भड़काकर जो अपने ही देश की सम्पत्ति का नुकसान कर रहे हैं वे देश के वफादार कैसे हो सकते हैं
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (19-12-2019) को "इक चाय मिल जाए" चर्चा - 3554 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'