Wednesday 8 August 2018

लेकिन बहुत साफ़-सुथरे पत्रकार नहीं रहे कभी अरुण शौरी

अरुण शौरी

अरुण शौरी को लोग बहुत बड़ा पत्रकार मानते हैं । वर्ल्ड बैंक की नौकरी छोड़ कर इंडियन एक्सप्रेस में संपादक के रुप में एक समय उन की तूती बोलती थी । अरुण शौरी को मैं ब्रिलिएंट व्यक्ति मानता हूं लेकिन बहुत साफ़-सुथरे पत्रकार वह नहीं रहे कभी । बहुत सी प्रायोजित खबरें अरुण शौरी के खाते में दर्ज हैं । रविवार में एक इंटरव्यू में अरुण शौरी ने डींग हांकते हुए कहा कि मैं ख़बरों के लिए कहीं नहीं जाता था । ख़बरें मेरी मेज पर ख़ुद आ जाती थीं । रिपोर्टरों से उस की कोयरी करवा लेता था । रविवार के उसी अंक में रामनाथ गोयनका का भी एक इंटरव्यू छपा था । अरुण शौरी की इस बात को कोट कर गोयनका से सवाल पूछा गया तो गोयनका ने कहा था कि , वह ठीक बोल रहा है । क्यों कि उस की मेज़ पर सारी ख़बरें तो मैं ही भेजता था । इंडिया टुडे हिंदी के प्रवेशांक में एक लेख लिखा था सुरेंद्र प्रताप सिंह ने । उस लेख में हिंदी और भाषाई पत्रकारिता की पैरवी करते हुए अंगरेजी पत्रकारिता की हवा निकालते हुए उन तमाम खबरों का ब्यौरा दिया गया था जिन के लिए अंगरेजी पत्रकारिता तब अपना सीना फुलाती घूमती थी ।

जैसे भागलपुर आंखफोड़ कांड , अंतुले सीमेंट घोटाला कांड आदि का ज़िक्र करते हुए बताया था कि यह अंगरेजी अख़बारों की मूल ख़बरें नहीं थीं । भागलपुर आंख फोड़ कांड सब से पहले बिहार के एक मैथिल अख़बार में छपी थी जहां से अंगरेजी अख़बार ने उठा लिया और बिना उसे क्रेडिट दिए अपनी ख़बर बना लिया । इसी तरह अंतुले सीमेंट घोटाला कांड सब से पहले मुंबई के एक मराठी अख़बार में छपा था जहां से अंगरेजी अख़बार ने उठा कर अपनी ख़बर बना ली । ऐसी और भी तमाम खबरों का व्यौरा था । कहना न होगा कि यह सारी खबरें उठाने वाले अरुण शौरी और इंडियन एक्सप्रेस ही थे । और जो गोयनका ने कहा कि वह ख़बरें अरुण शौरी तक भेजते थे , वह बोफ़ोर्स जैसी प्रायोजित खबरें थीं । जो नुस्ली वाडिया और हिंदुजा के झगड़े में वी पी सिंह को ताकत देने और राजीव गांधी की सत्ता को उखाड़ने की मुहिम में थी । आंबेडकर की किताब उन की बहुत चर्चित हुई लेकिन उस पर भी जब विवाद बहुत बढ़ा तो वह अबाउट टर्न कर गए ।

बतौर इनवेस्टमेंट मिनिस्टर भी अरुण शौरी पर दाग़ बहुत हैं । अटल सरकार से शौरी के फैसलों को ले कर बहुत सवाल किए गए । आरोप लगा कि तमाम पब्लिक सेक्टर कंपनियों को कौड़ियों के दाम बेच दिया गया । तो भी हम अरुण शौरी को एक तेज़-तर्रार पत्रकार के रूप में ही जानते हैं , दल्ला पत्रकार के रूप में नहीं। अलग बात है इंडियन एक्सप्रेस में एक समय में वह इतने ताकतवर थे कि मारे घमंड के वह यूनियन के लोगों से मेज ठोंक कर कहते थे , आई क्रश योर यूनियन ! अलग बात है कि इंडियन एक्सप्रेस की यूनियन तब बहुत ताकतवर थी और उस ने अरुण शौरी को क्रश कर दिया था । बाद में गोयनका भी शौरी से बहुत नाराज हो गए । दो इनिंग इंडियन एक्सप्रेस में बिता कर मज़बूरी में उन्हें टाइम्स आफ़ इंडिया जाना पड़ा । लेकिन जो शान और रफ़्तार शौरी ने इंडियन एक्सप्रेस में देखी , भोगी और पाई थी , टाइम्स आफ इंडिया में वह नहीं नसीब हुई और जल्दी ही यहां से भी विदा हो गए । कुछ समय बाद अटल जी उन पर मेहरबान हुए और उन्हें राज्यसभा में ले गए । फिर मंत्री बना दिया । पद्मभूषण और मैग्सेसे से सम्मानित तमाम फेलोशिप और तमाम सरकारी , गैर सरकारी नौकरियां कर चुके अर्थशास्त्री और पत्रकार अरुण शौरी के पिता हरिदेव शौरी एक बड़े सरकारी अधिकारी थे । लेकिन शौरी के जो एक बेटा है जो मंद बुद्धि है । जो एक बड़ी यातना है उन की । ज़्यादातर समय अब उन का बेटे की देख-रेख और सेवा में बीत जाता है । बेटे से बहुत प्यार करते हैं वह । इस सब से जो समय बचता है , वह नरेंद्र मोदी से नफ़रत भरे बयान देने में बीतता है । भाजपा के भीतर मोदी के विरोधी तो बहुत हैं पर यशवंत सिनहा , शत्रुघन सिनहा और अरुण शौरी की तिकड़ी बहुत मशहूर और मुखर है । अरुण शौरी मोदी को ले कर अकसर हबीब जालिब का एक शेर सुनाते मिलते हैं :

तुझ से पहले जो इक शख़्स यहां तख़त नशीन था 
उसको भी अपने ख़ुदा होने का इतना ही यक़ीन था ।

अरुण शौरी ठीक ही कहते हैं । क्यों की नरेंद्र मोदी ही क्या हर तख़त नशीन को अपने को ख़ुदा मानने का गुमान रहता है । चाहे वह जिस भी फील्ड का तख़त नशीन हो । अरुण शौरी ख़ुद भी जब कभी भी पावर में रहे , ख़ुदा बन कर ही रहे ।

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