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पेंटिंग : पिकासो |
ग़ज़ल / दयानंद पांडेय
नौकरी नहीं है नया साल लिखना चाहता हूं
बेईमानों के नाम नया साल लिखना चाहता हूं
चार सौ बीसों के हाथ में हैं सब नौकरियां
देशद्रोहियों के हाथ देश लिखना चाहता हूं
तिजोरी जैसे भी हो भरती रहे तुम्हारी हरदम
देश जाए भाड़ में यह गीत लिखना चाहता हूं
बेरोजगारी का दंश नपुंसक बना देता है
प्रेम पत्र में यह बात ख़ास लिखना चाहता हूं
नदी कोहरा धुंध सब कुछ है इस ठंड में
माशूका नहीं है बेक़रार लिखना चाहता हूं
[ 2 जनवरी , 2016 ]
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-01-2016) को "बेईमानों के नाम नया साल" (चर्चा अंक-2210) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
behtarin
ReplyDeleteसुन्दर और सशक्त रचना......
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